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ॐ आधुनिक मनुष्य की साधना
क्यों नहीं देते? और उनके खिलाफ कुछ किया क्यों कर दूं। वह थोड़ा और जटिल है। उन्होंने मुझे आकर नहीं जाता?
पूछा कि श्रीमती निर्मला देवी श्रीवास्तव के पास गया था, तो वह आपके खिलाफ बड़ी बातें कहती हैं। और
वे तो आपके पास आती थीं, आपकी शिष्या थीं और 1 हली बात, कि वे मेरा ही काम कर रहे हैं, इसलिए | आपके खिलाफ इतनी बातें कहती हैं! 4 उनके खिलाफ कुछ किया नहीं जाना चाहिए। काम के
बड़े अनूठे ढंग हैं। और कई दफा मैं सोचता था कि | तो मैं अब तक इस संबंध में चुप रहा हूं, क्योंकि वह बड़ा काम अगर कोई मेरा विरोध न करता हो, तो अपने ही किसी मित्र को | कर रही हैं। वह दूसरे ढंग का काम है। कहूं कि तू विरोध कर। क्योंकि बहुत-से लोगों को मैं अपने पास | जैसा मैंने कहा कि कुछ ऐसे लोग हैं, जो मेरे विरोध के कारण नहीं ला सकता हूं। बहुत-से लोग मेरे विरोध के जरिए ही मेरे पास | | मेरे पास आते हैं। कुछ ऐसे गलत लोग मेरे पास आ जाते हैं, आ सकते हैं।
जिनको दूर हटाने की भी जरूरत पड़ती है। कुछ अपात्र भी मेरे पास कुछ लोग हैं, जो विरोध से ही पास आ सकते हैं। विरोध के | आ जाते हैं, जो समय खराब करेंगे और बहुत काम के इस जन्म में कारण ही उनको उत्सुकता पैदा होती है। कोई विरोध करता है, तो ही | | तो नहीं हो सकते। उनको भी दूर करने की जरूरत पड़ती है। उनको उनको लगता है कि जाकर देखें, मामला क्या है! कई दफा वे देखने | | मैं श्रीमती निर्मला देवी श्रीवास्तव के पास भेजता हूं। वह मुझे उनसे आते हैं और रुक जाते हैं और उनका जीवन भी बदल जाता है। | | छुटकारा दिलाती रहती हैं। उनको पता नहीं है कि वह मेरा काम कर
तो बहुत बार मैं सोचता था, किसी मित्र को कहूं कि मेरे खिलाफ | | रही हैं। और अगर उनको यह पता चल जाएगा जो मैं कह रहा हूं, कुछ लिखो, कुछ चर्चा चलाओ, ताकि वे जो सीधे-सीधे नहीं तो वह और जोर से मेरे विरोध में लग जाएंगी। वह मेरा काम है। आते, जिनकी आंखें तिरछी हैं, वे विरोध के जरिए आ जाएं। फिर उन्हें लग जाना चाहिए। अचानक सूर्योदय गौड़ ने वह काम करना शुरू कर दिया, तो मैं | | मेरी प्रक्रिया में दो बातें हैं। जो भी लोग जीवन-क्रांति के लिए भीतर बड़ा प्रसन्न हुआ। मैंने कहा कि नाहक मैं किसी को कहता, | उत्सुक हैं, मैं चाहता हूं कि मेरे पास आएं, किसी भी बहाने, किसी तो मेरा मित्र कोई कितनी ही कोशिश भी करता, तो भी विरोध में | भी कारण से। लेकिन जो लोग मेरे पास आ जाते हैं, उनमें अनेक वह जान न रहती। बेजान रहता, भीतर से झूठा-झूठा रहता। अब लोग गलत कारणों से मेरे पास आ जाते हैं। उनको भी पता नहीं है। ठीक आदमी अपने आप हाजिर हो गया है। यह जगत कुछ ऐसा है और फिर वे मेरा समय भी व्यर्थ करते हैं, मेरी शक्ति भी खराब कि यहां जो भी चाहो, वह हाजिर हो जाता है। चाहने की देर है कि करते हैं। उनको मैं अपने से दूर भी करना चाहता हूं। उनको मैं लोग मिल जाते हैं। .
अनेक तरह से दूर करता हूं। कभी किसी तरकीब से, कभी किसी अब उन पर नाराज होने का कोई कारण नहीं। मैं प्रसन्न हूं। तरकीब से उनको दूर कर देता हूं। दिनभर मेहनत करते हैं। गरीब आदमी मालूम पड़ते हैं। अपना मेरे पास जैनियों का एक जत्था इकट्ठा हो गया था। तो उससे मैं धंधा, काम छोड़कर इसी काम में लग गए हैं। उनका जीवन मेरे | परेशान हो गया। परेशान इसलिए हो गया कि उन्हें कुछ भी करना लिए ही समर्पित हो गया है। तो इसलिए उनका कोई विरोध नहीं | | नहीं है, सिर्फ बातें करनी हैं। तो मैंने कोई एक वक्तव्य दे दिया, करता हूं। और उनके विरोध से कुछ हानि नहीं होती है। उससे वे लोग छंटकर गिर गए।
सत्य की कोई हानि नहीं है। विरोध से और निखरता है, साफ - फिर मेरे पास गांधीवादियों का एक जत्था इकट्ठा हो गया। उनको होता है। और अगर सत्य को भय हो विरोध का, तो जानना चाहिए| | सेवा करनी है, साधना नहीं करनी है। मुझे सेवा में उत्सुकता नहीं कि वह सत्य ही नहीं है।
है। क्योंकि मैं मानता हूं कि साधना में जो जाए, वही सेवक हो
| सकता है। और जो साधना में न जाए, उसकी सेवा सब झूठी है एक मित्र और दो-तीन दिन पहले आए थे। उनका और व्यर्थ है। तो मुझे गांधी की आलोचना कर देनी पड़ी। आलोचना भी प्रश्न ऐसा ही है। इसी संदर्भ में उनकी भी बात करते से ही वे भाग गए। जमीन साफ कर दी; मेरे पास नई जगह बन
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