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गीता दर्शन भाग-6
पर थोड़ा वक्त लगेगा।
आप जिसको अपना व्यक्तित्व समझ रहे हैं, आप समझ रहे हैं जिसको मेरा होना, वह आपका होना नहीं है। वह केवल सिखावन है, आपका स्वभाव नहीं है।
आप एक घर में पैदा हुए। जब आप पैदा होते हैं, तो न तो आप हिंदू होते हैं, न मुसलमान होते हैं, न ईसाई होते हैं, न जैन होते हैं। आप सिर्फ होते हैं। अगर आपको मुसलमान घर में बड़ा किया जाए, आप मुसलमान हो जाएंगे। और अगर हिंदू घर में बड़ा किया जाए, हिंदू हो जाएंगे। हिंदू का अलग व्यक्तित्व है, मुसलमान का अलग व्यक्तित्व है। अगर जैन घर में बड़ा किया जाए, तो आप जैन हो जाएंगे। उसका अलग व्यक्तित्व है।
लेकिन जब आप पैदा हुए थे, तो आप बिना व्यक्तित्व के पैदा थे। हिंदू, मुसलमान, ईसाइयत, ऊपर से सीखी गई बातें हैं । हुए फिर आप हिंदी सीखें, मराठी सीखें, अंग्रेजी सीखें। जो भाषा आप सीखेंगे, वह आपकी भाषा हो जाएगी। लेकिन जब आप पैदा हुए थे, तो मौन पैदा हुए थे। आपकी कोई भाषा न थी।
फिर आप सीखते चले जाएंगे। और आप जब पचास साल के होंगे, तो आपके चारों तरफ एक ढांचा निर्मित हो जाएगा। भाषा का, व्यवहार का, व्यक्तित्व का, राष्ट्र का, जाति का, आचरण का, धर्म का एक ढांचा खड़ा हो जाएगा। और इसी ढांचे को आप समझेंगे, मैं हूं।
यही ढांचा टूटता है परमात्मा को पाने में, आप नहीं टूटते । वह जो आप लेकर पैदा हुए थे, वह नहीं टूटता। वह तो आप रहेंगे सदा । उसे तो छीनने का कोई उपाय नहीं है। उसे तो परमात्मा भी नहीं छीनेगा ।
सच तो यह है कि आप जिसको अभी समझ रहे हैं मेरा होना, इसी ने आपसे आपका असली व्यक्तित्व छीन लिया है। इस नकली को उतारने की प्रक्रिया है धर्म । जब यह उतर जाता है और जो स्वभाव है सहज, जो जन्म के पहले भी आपके पास था और आप मर जाएंगे तब भी आपके पास होगा, वह जब शुद्धतम आपके पास रह जाता है, तो आप परमात्मा से मिलते हैं।
जीसस ने कहा है, जो बचाएगा, वह खो देगा; और जो खोने को राजी है, वही बचाएगा, उसका ही बच रहेगा।
यह जो झूठा है, इसके खोने की बात है। आपके खोने की तो कोई बात ही नहीं है। लेकिन उस आपका आपको ही कोई पता नहीं है, जो नहीं खोएगा। इसलिए घबड़ाहट होती है। इससे डर लगता
| है। इससे भय होता है।
यह तो हालत हमारी ऐसी है कि जैसे एक अंधा आदमी आए और वह कहे कि मैं अपनी आंखें तो ठीक करवा लूं, लेकिन तब जिस लकड़ी को मैं टेककर चलता हूं, उसका क्या होगा? और मेरी आंखें ठीक हो जाएंगी, तो चिकित्सक कहता है कि यह टेकने वाली | लकड़ी तुझे छोड़ देनी पड़ेगी। तो इसको मैं कैसे छोड़ सकता हूं! यही लकड़ी तो मेरा प्राण है। इसी के सहारे तो मैं चलता हूं, जीता हूं, उठता हूं, रास्ता खोजता हूं!
तो उस अंधे आदमी को पता नहीं कि जब आंखें ही मिल जाएं, तो लकड़ी को टेकने की जरूरत ही नहीं रह जाती, और न लकड़ी से खोजने की जरूरत रह जाती है।
जिस दिन आपको परमात्मा मिल जाए, उस दिन आपके अंधेपन जो व्यक्तित्व काम देता था, उसकी कोई जरूरत नहीं रह जाती। घबड़ाएं मत। आपसे वही छीना जा सकता है, जो आपका नहीं है। | जो आपका है, उसे छीना ही नहीं जा सकता।
इस सूत्र को, इस महासूत्र को स्मरण रखें सदा, कि आप वही खो सकते हैं, जो आपका है ही नहीं। आपका है, उसको छीनने का कोई उपाय नहीं है । स्वभाव का यही अर्थ होता है, जो आपसे छीना न जा सके। जो छीना जा सकता है, उसको आप चाहे पकड़े भी रहें, तो भी वह आपका नहीं है।
एक आदमी धन को पकड़े हुए है; सोचता है, धन छिन जाएगा। लेकिन धन छिनेगा ही, क्योंकि वह आप हैं। ज्ञानी इसीलिए शरीर को भी नहीं पकड़ते, क्योंकि वे कहते हैं, मौत उसे छीन लेगी। ज्ञानी मन को भी नहीं पकड़ते, क्योंकि ज्ञानी कहते हैं, ध्यान उसे भी छीन लेगा । ज्ञानी तो केवल उसको ही पकड़ते हैं, जो छीना नहीं जा | सकता। न ध्यान छीन सकता है, न मृत्यु छीन सकती है, न समाधि छीन सकती है। वह कौन है आपके भीतर, जो कभी भी छीना नहीं जा सकता ? वही आप हैं।
इसलिए भयभीत न हों। जो व्यर्थ है, ऊपर-ऊपर है, उसे छोड़ने की तैयारी रखें, ताकि भीतर जो है उसे पाया जा सके।
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एक प्रश्न और। एक मित्र बार- बार पूछते हैं- आखिरी दिन के लिए उनका सवाल मैं टालता रहा - - पूछते हैं बार-बार कि एक मित्र, श्री सूर्योदय गौड़, आपके खिलाफ पर्चे छापते हैं। आप जवाब