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________________ o आधुनिक मनुष्य की साधना 0 की कोशिश में ही लगे हुए हैं। है। उसके लिए जो आनंदपूर्ण होता है, वह करता है। जैसे-जैसे बड़ा तीन महीने इस प्रयोग को करके देखें। तीन दिन के बाद आपको | | होता है, खुद के आनंद की फिक्र छोड़ देता है, दूसरे क्या कहेंगे, फर्क दिखाई पड़ने शुरू हो जाएंगे। और ऐसा नहीं कि इन एक मित्र | इसका चिंतन करने लगता है। बस, यही बच्चे की विकृति है। ने ही पत्र लिखा है। पांच-सात उन मित्रों के भी पत्र हैं, जिनको | आप फिर बच्चे हो गए और आपने सारी फिक्र छोड़ दी। आप कल, पहली दफे ही परिणाम दिखाई पड़ना शुरू हुआ। पुनः अकेले हो गए, समाज से मुक्त हो गए। जैसे ही आपने चिंता वे बुद्धिमान लोग हैं। हालांकि इन मित्र ने लिखा है कि हम | छोड़ी कि कोई क्या कहेगा, यह जो हलकापन भीतर आया, इस बुद्धिमानों को आप धोखा न दे पाएंगे। मगर बुद्धिमान वह है, जो हलकेपन में आनंद की झलक बिलकुल आसान है। और बच्चे की प्रयोग करके कुछ कहता है। बुद्धिहीन वह है, जो बिना प्रयोग तरह जो फिर से हो जाए, वह परमात्मा को यहीं अनुभव करने लगेगा किए कुछ कहता है। बिना प्रयोग किए आपकी बात का कोई मूल्य अपने चारों ओर। लेकिन बुद्धिमान, अतिशय बुद्धिमान...।। ही नहीं है। मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन को एक लाटरी मिल गई थी। पांच-सात मित्रों ने लिखा है। एक मित्र ने लिखा है कि मुझे | | पांच लाख रुपये जीत लिए थे। सारा गांव चकित था। सारे गांव के इतनी शांति कभी अनुभव नहीं हुई। लेकिन बीस मिनट तक मुझसे | | लोग इकट्ठे हो गए। और लोग मुल्ला से पूछने लगे कि तुमने यही आवाजें निकलती रहीं, जिनका मुझे ही भरोसा नहीं कि मेरे भीतर नंबर कैसे चुना! गांव का.जो बुद्धिमान था, सबने कहा कि हमारी कहां से आईं! क्योंकि इस तरह की आवाजें मैंने कभी नहीं की हैं। तरफ से तुम ही पूछ लो। तो गांव का जो बुद्धिमान आदमी था उसने आपने न की हों, लेकिन आप करना चाहते हैं। आपके भीतर वे सबकी तरफ से मुल्ला से पूछा कि पूरा गांव एक ही जिज्ञासा से दबी पड़ी हैं। और आप कहीं भी कर नहीं सकते थे। कहीं भी करते, भरा है कि तुमने यह उनहत्तर, सिक्सटी नाइन नंबर तुमने कैसे तो आप पागल समझे जाते। यहां आप कर रहे थे, तो आपको चुना? किस तरकीब से? खयाल था कि आप ध्यान में जा रहे हैं, तो आपने अपने को खुला | | तो मुल्ला ने कहा, अब तुम पूछते हो, तो मैं तुम्हें बता देता हूं। छोड़ दिया। इस खुले भाव से जो भीतर दबा था, वह निकल गया। | एक स्वप्न में मुझे यह नंबर प्रकट हुआ। एक स्वप्न मैंने देखा रात जैसे मवाद निकल गई हो घाव से। और भीतर घाव हलका और में कि मैं एक नाटक देख रहा हूं। और वहां मंच पर सात कतारें भरने के लिए तैयार हो गया हो। तो उन मित्र ने लिखा है कि ऐसी | नर्तकियों की खड़ी हैं और हर कतार में सात नर्तकियां हैं। वे सब शांति मुझे जीवन में कभी भी नहीं मिली। नाच रही हैं। तो सात सतैयां उनहत्तर, ऐसा मैंने सोचा और सुबह एक मित्र ने लिखा है कि आश्चर्यचकित हूं कि इस भांति | | मैंने उनहत्तर नंबर की टिकट खरीद ली। नाचने-कूदने से आनंद का कैसे भाव आया! पर, उस आदमी ने कहा, अरे, पागल. सात सतैयां उनहत्तर होते . जब आप नाचते-कूदते हैं हृदयपूर्वक-नकली नाचते-कूदते ही नहीं। सात सतैयां तो होते हैं उनचास, फोर्टी नाइन! हों तो कोई बहुत फर्क नहीं होगा, कवायद होगी, थोड़ा व्यायाम हो तो मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा, ओ.के., सो यू बी दि मैथमेटीशियन। जाएगा–लेकिन अगर हृदयपूर्वक नाचते हों, तो आप पुनः बच्चे तो तुम गणितज्ञ हो जाओ, लेकिन लाटरी मैंने जीती है। हो गए। आप फिर बचपन में लौट गए। आप फिर छोटे बच्चे की - वह जो नाच रहा है, कूद रहा है, वह आपसे कहेगा, सो यू बी दि तरह सरल हो गए। और बच्चे जिस आनंद की झलक को देख पाते | | वाइज मैन, यू बी दि मैथमेटीशियन। वह आपकी फिक्र नहीं करेगा। हैं, उसको आप भी देख पा रहे हैं। न मीरा ने आपकी फिक्र की है, न चैतन्य ने आपकी फिक्र की है। वे संतों ने कहा है कि बुढ़ापे में जो पुनः बच्चों की भांति हो जाएं, नाच लिए हैं और वे आपसे कहते हैं, आप हो जाओ बुद्धिमान, हमें वे ही संत हैं। आप छोटे बच्चे की भांति हो गए। इतने लोगों के रहने दो पागल। क्योंकि हमें पागलपन में जो मिल रहा है, वह हमें सामने छोटा बच्चा भी शर्माएगा नाचने में। और आप नाचे-कूदे। नहीं दिखता कि तुम्हारी बुद्धिमानी में भी तुम्हें मिल रहा है। तो आपने भय छोड़ दिया। दूसरों के मंतव्य का भय छोड़ दिया। । और एक ही सबूत है बुद्धिमानी का, क्या मिल रहा है? दूसरे क्या कहेंगे, यह भय छोड़ दिया। बुद्धिमान कौन है ? बुद्धिमानी का एक ही सबूत है कि क्या मिल रहा बच्चे में यह भय नहीं होता। दूसरे क्या कहेंगे, उसे प्रयोजन नहीं है जीवन में कितना आनंद, कितना रस, कितना सौंदर्य, कितना [173]
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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