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________________ गीता दर्शन भाग-6 हैं, आप हमें धोखा न दे पाओगे। तो आने की कोई जरूरत नहीं है। आप अपने घर मजे में हैं। किसी दिन मुझे जरूरत होगी, मैं आपके घर आ जाऊंगा। लेकिन आप मत आएं। आप अपने को बचाएं। आप जितना अपने को बचाएंगे, उतना ही लाभ होगा ! क्योंकि उतने ही आप परेशान होंगे, पीड़ित होंगे, पागल होंगे। और जिस दिन बात सीमा के बाहर चली जाए, उस दिन कहीं बिजली के शॉक आपको लगाने पड़ेंगे। मैं कहता हूं, अभी कूद लें, ताकि बिजली के शॉक न लगाने पड़ें। और अभी कूद लें, ताकि पागलखाने में न बिठालना पड़े। अपने पागलपन को अपने ही हाथ से बाहर फेंक दें, ताकि किसी और को आपके पागलपन को फेंकने के लिए कोई उपाय और कोई सर्जरी न करनी पड़े। लेकिन आप नहीं सोचते । इसे हम कई तरह से समझने की कोशिश करें। सिर्फ इंगलैंड एक मुल्क है, जहां के स्कूल के बच्चे पत्थर नहीं फेंक रहे हैं; सारी दुनिया में फेंके जा रहे हैं। सिर्फ इंगलैंड अकेला मुल्क है, जहां के बच्चे स्कूल में शिक्षकों को पत्थर नहीं मार रहे हैं, गाली नहीं दे रहे हैं, परेशान नहीं कर रहे हैं। तो सारी दुनिया के विचारशील लोग परेशान हैं कि इंगलैंड में यह क्यों नहीं हो रहा है ! सारी दुनिया में बड़े पैमाने पर हो रहा है। तो एक बात खोजी गई और वह यह कि इंगलैंड के हर स्कूल में बच्चों को कम से कम दो घंटे खेल खेलना पड़ रहा है। वही कारण है, और कोई कारण नहीं है। जो बच्चा दो घंटे तक हाकी की चोट मार रहा है, वह पत्थर फेंकने में उत्सुक नहीं रह जाता। उसने फेंकने का काम पूरा कर लिया। जो बच्चा फुटबाल को लात मार रहा है दो घंटे तक, उसकी इच्छा नहीं रह जाती अब किसी को लात मारने की। लात मारने की वासना निकल गई। इंगलैंड के मनोवैज्ञानिकों का सुझाव है कि सारी दुनिया में अगर बच्चों के उपद्रव रोकने हैं, तो उनको खेलने की गहन प्रक्रियाएं देनी होंगी, जिनमें उनकी हिंसा निकल जाए। और बच्चों में बड़ी हिंसा है, क्योंकि बच्चों में बड़ी ताकत है। हमारे स्कूल में बच्चा क्या कर रहा है? पांच-छः घंटे आप उसको बिठा रखते हैं। कोई बच्चा प्रकृति से पांच-छः घंटे एक क्लास के रूम में बैठने को पैदा नहीं हुआ है। प्रकृति ने कोई इंतजाम नहीं किया है, कोई बिल्ट-इन व्यवस्था नहीं है भीतर कि छः घंटे बच्चे को बिठाया जा सके। छः घंटे बच्चे को बिठाने का मतलब है कि छः घंटे जो शक्ति प्रकट होनी चाहती थी, वह रुक रही है, वह रुक रही है। जरा स्कूल से बच्चे जब छूटते हैं, उनको देखें। जैसे ही छुट्टी होती है, लगता है, वे नरक से छूटे। उछाल रहे हैं बस्ते को, फेंक रहे हैं किताबों को, और इतने आनंदित हो रहे हैं कि जैसे जीवन मिल गया! आपने जरूर उनके साथ कोई अपराध किया है पांच-छः घंटे नहीं तो इतनी खुशी स्कूल से छूटकर न मिलती।' I और यह अपराध जारी रहेगा। यह बीस साल की उम्र, पच्चीस | साल की उम्र तक जारी रहेगा। धीरे-धीरे वे इसी दबी हुई व्यवस्था के लिए राजी हो जाएंगे। फिर उनका सारा जीवन गड़बड़ हो | जाएगा। क्योंकि ऊर्जा जो दब गई और प्रकट होने का जिसे मार्ग न . मिला, वह क्रोध बन जाती है, हिंसा बन जाती है, फिर नए-नए मार्गों से मार्ग खोजती है। फिर वे सब तरह के उपद्रव करेंगे। फिर कोई छोटी भी बात का बहाना ले लेंगे और उनकी हिंसा बाहर होने लगेगी। हम सब हिंसा से भरे हुए लोग हैं। लेकिन अगर समझपूर्वक समझा जाए और जीवन को बदलने की ठीक व्यवस्था का खयाल रखा जाए, तो हिंसा भी सृजनात्मक हो सकती है। हिंसा भी क्रिएटिव हो सकती है। और क्रोध से भी फूल खिल सकते हैं, अगर अकल हो । 172 यह जो मैं आपसे कह रहा हूं ध्यान का प्रयोग, यह आपकी हिंसा, आपके क्रोध, आपकी कामवासना, आपकी घृणा, इनको सृजनात्मक रूप से रूपांतरित करने का प्रयोग है। यह एक क्रिएटिव ट्रांसफार्मेशन है। क्योंकि आपका लक्ष्य ध्यान है। अगर आप चीख भी रहे हैं, तो आपका लक्ष्य ध्यान है। आपके चीखने की ऊर्जा भी ध्यान की तरफ प्रवाहित हो रही है। अगर आप अपने क्रोध को भी फेंक रहे हैं, नाराजगी को भी फेंक रहे हैं, रोने और दुख को भी फेंक रहे हैं, तो भी आपका लक्ष्य ध्यान है। यह ऊर्जा ध्यान की तरफ प्रवाहित हो रही है। अगर आप थोड़े दिन तैयार हो जाएं मुझसे धोखा खाने को... आप अपने से तो धोखा खा ही रहे हैं बहुत दिन से ! यह भी प्रयोग कर लेने जैसा है। तीन महीने में आपसे मैं कुछ छीन न लूंगा, क्योंकि आपके पास कुछ है भी नहीं, जो छीना जा सके। मेरी दृष्टि में तो आपके पास ऐसी कोई मूल्यवान चीज नहीं है, जो छीनी जा सके। आपके पास हो, तो उसे सम्हालकर आप रखें, मेरे जैसे लोगों के पास न आएं, क्योंकि ऐसे लोग आपको बदलने
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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