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________________ o आधुनिक मनुष्य की साधना * उसके तनाव से मुक्त होने की व्यवस्था है। और बच्चे पर बहुत जाए। आप भूल ही जाएं कि आप चीत्कार से अलग हैं; आप एक तनाव हैं। बच्चे को भूख लगी है और मां दूर है या मां काम में | चीत्कार ही हो जाएं। उलझी है। बच्चे को भी क्रोध आता है। और अगर बच्चा रो ले, तो | | तो कोई तीन महीने लगते हैं मनोवैज्ञानिकों को, आपको रुलाना उसका क्रोध बह जाता है और बच्चा हलका हो जाता है। लेकिन | | सिखाने के लिए। तीन महीने निरंतर प्रयोग करके आपको गहरा मां उसे रोने नहीं देगी। किया जाता है। मनसविद कहते हैं कि उसे रोने देना. उसे प्रेम देना, लेकिन करते क्या हैं इस थैरेपी वाले लोग? आपको छाती के बल लिटा उसके रोने को रोकने की कोशिश मत करना। हम क्या करेंगे? | | देते हैं जमीन पर। और आपसे कहते हैं कि जमीन पर लेटे रहें और बच्चे को खिलौना पकड़ा देंगे कि मत रोओ। बच्चे का मन डाइवर्ट | | जो भी दुख मन में आता हो, उसे रोकें मत, उसे निकालें। रोने का हो जाएगा। वह खिलौना पकड़ लेगा। लेकिन रोने की जो प्रक्रिया | | मन हो, रोएं; चिल्लाने का मन हो, चिल्लाएं। भीतर चल रही थी, वह रुक गई। और जो आंसू बहने चाहिए थे, तीन महीने तक ऐसा बच्चे की भांति आदमी लेटा रहता है जमीन वे अटक गए। और जो हृदय हलका हो जाता बोझ से, वह हलका | | पर रोज घंटे, दो घंटे। एक दिन, किसी दिन वह घड़ी आ जाती है नहीं हो पाया। वह खिलौने से खेल लेगा, लेकिन यह जो रोना रुक | कि उसके हाथ-पैर कंपने लगते हैं विद्युत के प्रवाह से। वह आदमी गया, इसका क्या होगा? यह विष इकट्ठा हो रहा है। | आंख बंद कर लेता है, वह आदमी जैसे होश में नहीं रह जाता, और मनसविद कहते हैं कि बच्चा इतना विष इकट्ठा कर लेता है, वही | एक भयंकर चीत्कार उठनी शुरू होती है। कभी-कभी घंटों वह उसकी जिंदगी में दुख का कारण है। और वह उदास रहेगा। आप | | चीत्कार चलती है। आदमी बिलकुल पागल मालूम पड़ता है। इतने उदास दिख रहे हैं, आपको पता नहीं कि यह उदासी हो सकता | | लेकिन उस चीत्कार के बाद उसकी जो-जो मानसिक तकलीफें थीं, था न होती; अगर आप हृदयपूर्वक जीवन में रोए होते, तो ये आंसू वे सब तिरोहित हो जाती हैं। आपकी पूरी जिंदगी पर न छाते; ये निकल गए होते। और सब तरह । यह जो ध्यान का प्रयोग मैं आपको कहा हूं, ये आपके जब तक का रोना थैराप्यूटिक है। हृदय हलका हो जाता है। रोने में सिर्फ मनोवेग-रोने के, हंसने के, नाचने के, चिल्लाने के, चीखने के, आंसू ही नहीं बहते, भीतर का शोक, भीतर का क्रोध, भीतर का | | पागल होने के—इनका निरसन न हो जाए, तब तक आप ध्यान में हर्ष, भीतर के मनोवेग भी आंसुओं के सहारे बाहर निकल जाते हैं। जा नहीं सकते। यही तो बाधाएं हैं। और भीतर कुछ इकट्ठा नहीं होता है। आप शांत होने की कोशिश कर रहे हैं और आपके भीतर वेग तो स्क्रीम थैरेपी के लोग कहते हैं कि जब भी कोई आदमी भरे हुए हैं, जो बाहर निकलना चाहते हैं। आपकी हालत ऐसी है, मानसिक रूप से बीमार हो, तो उसे इतने गहरे में रोने की जैसे केतली चढ़ी है चाय की। ढक्कन बंद है। ढक्कन पर पत्थर आवश्यकता है कि उसका रो-रोआं, उसके हृदय का रखे हैं। केतली का मुंह भी बंद किया हुआ है और नीचे से आग कण-कण, श्वास, धड़कन-धड़कन रोने में सम्मिलित हो जाए। | भी जल रही है। वह जो भाप इकट्ठी हो रही है, वह फोड़ देगी केतली एक ऐसे चीत्कार की जरूरत है, जो उसके पूरे प्राणों से निकले, | को। विस्फोट होगा। दस-पांच लोगों की हत्या भी हो सकती है। जिसमें वह चीत्कार ही बन जाए। इस भाप को निकल जाने दें। इस भाप के निकलते ही आप नए हजारों मानसिक रोगी ठीक हुए हैं चीत्कार से। और एक चीत्कार | हो जाएंगे और तब ध्यान की तरफ प्रयोग शुरू हो सकता है। भी उनके न मालूम कितने रोगों से उन्हें मुक्त कर जाती है। लेकिन उस चीत्कार को पैदा करवाना बड़ी कठिन बात है। क्योंकि आप इतना दबाए हैं कि आप अगर रोते भी हैं, तो रोना भी आपका झूठा | | उन मित्र ने यह भी पूछा है कि बुद्ध ने, महावीर ने होता है। उसमें आपके पूरे प्राण सम्मिलित नहीं होते। आपका रोना | | और लाओत्से ने भी क्या ऐसी ही बात सिखाई है? भी बनावटी होता है। ऊपर-ऊपर रो लेते हैं। आंख से ही आंसू बह जाते हैं, हृदय से नहीं आते। लेकिन चीत्कार ऐसी चाहिए, जो आपकी नाभि से उठे और आपका पूरा शरीर उसमें समाविष्ट हो | न ही; लाओत्से, और बुद्ध, और महावीर ने ऐसी बात 1169
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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