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0 गीता दर्शन भाग-60
तुल्यनिन्दास्तुतिमांनी संतुष्टो येन केनचित्।। | थक जाएगा और शांत होकर बैठ जाएगा। वह शांति अलग होगी; अनिकेतः स्थिरमतिभक्तिमान्मे प्रियो नरः ।। १९ ।। ऊपर से दबाकर आ गई शांति अलग होगी। ये तु धामृतमिदं यथोक्तं पर्युपासते।
आज मनोविज्ञान इस बात को बड़ी गहराई से स्वीकार करता है श्रद्दधाना मत्परमा भक्तास्तेऽतीव मे प्रियाः ।। २० ।। कि आदमी के भीतर जो भी मनोवेग हैं, उनका रिप्रेशन, उनका दमन
तथा जो निंदा-स्तुति को समान समझने वाला और खतरनाक है। उनकी अभिव्यक्ति योग्य है। मननशील है एवं जिस-किस प्रकार से भी शरीर का निर्वाह | लेकिन अभिव्यक्ति का मतलब किसी पर क्रोध करना नहीं है, होने में सदा ही संतुष्ट है और रहने के स्थान में ममता से | किसी पर हिंसा करना नहीं है। अभिव्यक्ति का अर्थ है, बिना किसी रहित है, वह स्थिर बुद्धि वाला भक्तिमान पुरुष के संदर्भ में मनोवेग को आकाश में समर्पित कर देना। और जब __ मेरे को प्रिय है।
मनोवेग समर्पित हो जाता है और भीतर की दबी हुई शक्ति छूट और जो मेरे को परायण हुए श्रद्धायुक्त पुरुष इस अपर कहे जाती है, मुक्त हो जाती है, तो एक शांति भीतर फलित होती है। हुए धर्ममय अमृत को निष्काम भाव से सेवन करते हैं, वे | उस शांति में ध्यान की तरफ जाना आसान है। भक्त मेरे को अतिशय प्रिय हैं।
। यह उछल-कद ध्यान नहीं है। लेकिन उछल-कद से आपके भीतर की उछल-कूद थोड़ी देर को फिक जाती है, बाहर हट जाती
है। उस मौन के क्षण में, जब बंदर थक गया है, भीतर उतरना पहले कुछ प्रश्न। एक मित्र ने पूछा है, क्या बंदरों की | आसान है। तरह उछल-कूद से ध्यान उपलब्ध हो सकेगा? जो लोग आधुनिक मनोविज्ञान से परिचित हैं, वे इस बात को
बहुत ठीक से समझ सकेंगे। पश्चिम में अभी एक नई थैरेपी, एक
नया मनोचिकित्सा का ढंग विकसित हुआ है। उस थैरेपी का नाम कि आप बंदर हैं, इसलिए बिना उछल-कूद के । | है, स्क्रीम थैरेपी। और पश्चिम के बड़े से बड़े मनोवैज्ञानिक उसके आपके भीतर के बंदर से छुटकारा नहीं है। यह | परिणामों से आश्चर्यचकित रह गए हैं। इस थैरेपी, इस चिकित्सा
ध्यान के कारण उछल-कूद की जरूरत नहीं है, की मूल खोज यह है कि बचपन से ही प्रत्येक व्यक्ति अपने रोने के आपके बंदरपन के कारण है।
भाव को दबा रहा है। रोने का उसे मौका नहीं मिला है। पैदा होने जो आपके भीतर छिपा है, उसे जन्मों-जन्मों तक दबाए रहें, तो के बाद पहला काम बच्चा करता है, रोने का। आपको पता है, भी उससे छुटकारा नहीं है। उसे झाड़ ही देना होगा, उसे बाहर फेंक | अगर आप उसको भी दबा दें, तो बच्चा मर ही जाएगा। ही देना होगा। कचरे को दबा लेने से कोई मुक्ति नहीं होती। उसे ___ पहला काम बच्चा करता है रोने का, क्योंकि रोने की प्रक्रिया में झाड़-बुहारकर बाहर कर देना जरूरी है।
ही उसकी श्वास चलनी शुरू होती है। अगर हम उसे वहीं रोक दें शांत करने के दो रास्ते हैं, एक रास्ता है कि किरो मत, तो वह मरा हआ ही रहेगा, वह जिंदा ही नहीं हो पाएगा। जोर-जबरदस्ती से उसे बिठा दो, डंडे के डर से कि हिलना मत, इसलिए बच्चा पैदा हो और अगर न रोए, तो मां-बाप चिंतित हो डुलना मत, नाचना मत, कूदना मत। ऊपर से बंदर अपने को जाएंगे, डाक्टर परेशान हो जाएगा। रुलाने की कोशिश की जाएगी सम्हाल लेगा, लेकिन भीतर के बंदर का क्या होगा? ऊपर से बंदर कि वह रो ले, क्योंकि रोने से उसकी जीवन प्रक्रिया शुरू होगी। अपने को रोक लेगा, लेकिन भीतर और शक्ति इकट्ठी हो जाएगी। लेकिन बच्चे को तो हम रोकते भी नहीं। और अगर इस तरह बंदर को दबाया. तो बंदर पागल हो जाएगा। | लेकिन जैसे-जैसे बच्चा बढ़ने लगता है, हम उसके रोने की बहुत लोग इसी तरह पागल हुए हैं। पागलखाने उनसे भरे पड़े हैं। प्रक्रिया को रोकने लगते हैं। हमें इस बात का पता नहीं है कि इस क्योंकि भीतर जो शक्ति थी, उसने उसको जबरदस्ती दबा लिया, | जगत में ऐसी कोई भी चीज नहीं है, जिसका जीवन के लिए कोई वह शक्ति विस्फोटक हो गई है।
| उपयोग न हो। अगर उपयोग न होता, तो वह होती ही न। एक रास्ता यह है कि बंदर को नचाओ, कुदाओ, दौड़ाओ। बंदर मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि बच्चे के रोने की जो कला है, वह
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