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________________ 0 सामूहिक शक्तिपात ध्यान के जीवन को गंवा देते हैं। पड़ोसी क्या कहेंगे! कोई आपको नाचते | से बंद था, कोई चालीस वर्ष से, कोई पचास वर्ष से भी बंद था। और गाते और आनंदित होते देख लेगा, तो क्या कहेगा! पत्नी क्या | | उनके हाथों और पैरों की जंजीरें सदा के लिए डाली गई थीं। जब वे कहेगी; पति क्या कहेगा; बच्चे आपके क्या कहेंगे! तो आप दूसरों मरेंगे, तभी उनकी जंजीरें निकलेंगी। के मंतव्य इकट्ठे करते रहना और जीवन की धार आपके पास से | - क्रांतिकारियों ने उनकी जंजीरें तोड़ दीं; उन्हें मुक्त कर दिया। और बही जा रही है। सोचा कि वे बड़े आनंदित होंगे। लेकिन आपको पता है क्या हुआ! आपके पास से बुद्ध भी गुजरे हैं, और आप उनसे भी चूक गए। आधे कैदी सांझ होते तक वापस लौट आए और उन्होंने कहा, बाहर और आपके पास से कृष्ण भी गुजरे हैं, और उनसे भी आप चूक हमें अच्छा नहीं लगता है। और उन्होंने कहा कि बिना जंजीरों के गए। और क्राइस्ट भी आपके पास से निकले हैं, लेकिन आपको हम सो भी न सकेंगे। तीस साल, चालीस साल से जंजीरों के साथ उनकी कोई सगंध न लगी। क्योंकि आप हमेशा यह खयाल कर रहे सो रहे थे। अब हमें नींद भी न आएगी। और जंजीरें अब जंजीरें नहीं हैं कि कोई क्या कहेगा! आप नाहक ही वंचित हो जाते हैं। हैं, हमारे शरीर का हिस्सा हो गई हैं। हमारी जंजीरें वापस लौटा दो। फिर एक बात ध्यान रखनी चाहिए कि धर्म तो एक प्रयोग है। और हमारी जो काली कोठरियां हैं, वे ठीक हैं, क्योंकि सूरज की और जब तक आप प्रयोग करके न देखें, तब तक आप कुछ भी | रोशनी आंख को बहुत खलती है। और फिर इस बाहर की दुनिया नहीं कह सकते कि क्या हो सकता है। नए के प्रयोग को करके, | में जाकर हम करें भी क्या? हमारे सारे संबंध टूट चुके हैं। हमें कोई देखकर ही निर्णय लेना चाहिए। पहचानता नहीं। हमारा कोई नाता-रिश्ता नहीं है। यह कारागृह ही यहां दो तरह के लोग हैं। एक जिन्होंने प्रयोग किया है; और एक हमारा अब घर है। और हम यहीं मरना चाहते हैं। जो बिना प्रयोग यहां खड़े रहे। और मजे की बात यह है कि जिन्होंने क्रांतिकारियों ने कभी सोचा भी नहीं था कि कारागह के कैदी भी प्रयोग किया है, वे शायद किसी से कुछ भी न कहें। लेकिन जिन्होंने वापस लौट आएंगे। उन्होंने सोचा भी नहीं था कि स्वतंत्रता को कोई प्रयोग नहीं किया है, वे तैयार हैं। उनका मन अब बिलकुल तैयार ठुकराकर वापस लौट आएगा। लेकिन कारागृह से भी मोह हो है कि वे जाकर लोगों को कहें कि वहां क्या हुआ। जाता है और जंजीरों से भी प्रेम बन जाता है। अगर आपने प्रयोग न किया हो, तो किसी से मत कहना कि वहां | हम इसी तरह के लोग हैं। हमारा दुख भी हम से छोड़ते नहीं क्या हुआ। क्योंकि जो भी आप बोलोगे, वह झूठ होगा। वह बनता। अगर आप रोना भी चाहते हैं, तो भी रोकते हैं। हंसना भी आपका अनुभव नहीं है। आपने अनुभव किया हो, तो ही लोगों को | चाहते हैं, तो भी रोकते हैं। आप कुछ भी छोड़ नहीं सकते। आपकी कहना कि क्या हुआ, क्योंकि उस बात में कोई सच्चाई है। लेकिन जंजीरें बड़ी प्रीतिकर हो गई हैं। वे आभूषण मालूम होती हैं। और हम ईमानदारी से जैसे जरा भी संबंधित नहीं रहे हैं। और हमारा सारा | | जब तक आप इन जंजीरों से भरे रहेंगे, परमात्मा का, स्वतंत्रता का व्यक्तित्व झूठा हो गया है। आकाश आपको उपलब्ध नहीं हो सकेगा। आपको जंजीरें तोड़नी इधर मैं देखता हूं। इधर मैंने देखा, सैकड़ों लोग थे जो हिल रहे ही पड़ेंगी। आपको कटघरे तोड़ने ही पड़ेंगे। आपको फेंकना ही थे, लेकिन रोक भी रहे थे। कहीं सच में ही कोई चीज कंपा न जाए! पड़ेगा बोझ, जो आप सिर पर लिए हैं। क्योंकि परमात्मा की यात्रा क्या रोक रहे हैं? आपके पास बचाने को भी क्या है? बड़ा मजा केवल उनके लिए है, जो निर्बोझ हैं, जो हलके हैं। भारी लोगों के तो यह है कि बचाने को भी कुछ होता, तो भी कोई बात थी। बचाने लिए वह यात्रा नहीं है। को कुछ भी नहीं है। आप खो क्या देंगे? आपके पास है क्या, जो एक छोटा-सा प्रयोग था, आप न भी कर पाए हों हिम्मत, तो नष्ट हो जाएगा? जो भी आपके पास है, वह नष्ट होने योग्य है। कुछ खो नहीं दिया। घर जाकर अकेले में हिम्मत करने की कोशिश लेकिन उसी को बचा रहे हैं! करना। यहां दूसरों का डर रहा होगा। घर चले जाना। द्वार बंद कर सुना है मैंने कि फ्रांस में क्रांति हुई, तो बेस्टिले के किले में, जहां लेना। मैं वहां भी आपके साथ काम कर सकता हूं। जैसा प्रयोग कि आजन्म अपराधियों को रखा जाता था, क्रांतिकारियों ने दीवालें | यहां किया है, एक फूल को रख लेना। उसमें भाव करना, अहंकार तोड़ दी, और वहां के हजारों कैदियों की जंजीरें तोड़ दी, और उन्हें | को छोड़ देना। और ठीक तीन चरणों में इस प्रयोग को घर पर होने मुक्त कर दिया। लेकिन वे कैदी आजन्म कैदी थे। कोई बीस वर्ष देना। मैं वहां भी आ सकता हूं। [165]
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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