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________________ कि गीता दर्शन भाग-60 और एक बार आपको झलक मिल जाए, तो आप दूसरे आदमी | बड़ी तैयारियां और बड़ी सजावट करते हैं। और हम परमात्मा को हो जाएंगे। आपका नया जन्म हो जाएगा। और जब तक आपका बुलाते हैं बिना किसी तैयारी के। वहां हमारी कोई सजावट नहीं है। नया जन्म न हो, तब तक आपका आज का जीवन और जन्म | और ध्यान रहे, वह अतिथि आने को तैयार है, लेकिन मेजबान बिलकुल व्यर्थ है। | तैयार नहीं है। इस मुल्क में हम उस आदमी को पूजते रहे हैं, जिसको हम द्विज | __ थोड़ा इसे तैयार करें। जैसा शरीर को धोते हैं, ऐसा रोज मन को कहते हैं, ट्वाइस बॉर्न। द्विज हम उसे कहते हैं...। एक जन्म तो | | भी धोते रहें। धुलते-धुलते मन दर्पण बन जाता है और उस दर्पण वह है, जो मां-बाप से मिलता है। वह असली जन्म नहीं है। एक में परमात्मा की छवि उतरनी शरू हो जाती है। जन्म वह है, जो आप और परमात्मा के बीच संपर्क से मिलता है। परमात्मा कोई सिद्धांत नहीं है। दर्शनशास्त्र से उसका कोई संबंध वही असली जन्म है। क्योंकि उसके बाद ही आप जीवन को | नहीं है। परमात्मा एक अनुभव है। और सारे शास्त्र भी आपके पास उपलब्ध होते हैं। हों, तो व्यर्थ हैं, जब तक परमात्मा की अपनी निजी एकाध प्रतीति मां-बाप से जो जन्म मिलता है, वह तो मृत्यु में ले जाता है और न हो। और एक छोटी-सी प्रतीति और दुनिया दूसरी हो जाती है। कहीं नहीं ले जाता। उसको जीवन कहना व्यर्थ है। एक और जीवन | फिर इस दुनिया में कोई दुख नहीं है, और कोई चिंता नहीं है, और है, जो कभी नष्ट नहीं होता। और जब तक उसकी सुगंध, उसकी कोई मृत्यु नहीं है। सुवास, आपको उसका संस्पर्श न हो जाए, तब तक आप जानना अमृत की तरफ एक इशारा हमने यहां किया है। एक प्रयोग कि आप व्यर्थ ही भटक रहे हैं। और जहां हीरे कमाए जा सकते थे, छोटा-सा किया है। जिन्होंने हिम्मत की, वे उसे दोहराएं। जिन्होंने वहां आप कंकड़ इकट्ठे करने में समय को नष्ट कर रहे हैं। हिम्मत नहीं की, वे भी घर जाकर एकांत में हिम्मत करने की घर जाकर इस प्रयोग को कर लेना। और ऐसा नहीं है कि एक | कोशिश करें। अगर आपने ठीक श्रम किया, तो एक बात पक्की दफे प्रयोग कर लिया, तो काम पूरा हो गया। इसे आप रोज सुबह | है, परमात्मा की तरफ उठाया गया कोई भी कदम व्यर्थ नहीं जाता र ले सकते हैं। अगर एक तीन महीने आपने इसको नियमित रूप है। कोई भी कदम व्यर्थ नहीं जाता है। और छोटा-सा भी प्रयास से किया. आप दसरे आदमी हो जाएंगे. द्विज हो जाएंगे। और आप परस्कत होता है। अनुभव करेंगे कि पहली बार खुले आकाश में, खुली हवाओं में, हमारी बैठक पूरी हुई। खुले सूरज में, आपकी यात्रा शुरू हुई। और आप पहली दफा अनुभव करेंगे कि पृथ्वी पर होना धन्यभाग है; और यह जीवन एक सौभाग्य है, अभिशाप नहीं है। और परमात्मा ने इसे एक शिक्षण के लिए दिया है। जिन मित्रों ने प्रयोग किया है, उनमें से बहुत-से मित्र गहरी झलक लिए हैं। वे इस प्रयोग को घर जारी रखेंगे, तो उनकी गहराई तो बहुत बढ़ जाएगी। एक बात ध्यान रखें, ध्यान को स्नान जैसा बना लें, रोज का कृत्य। जैसे शरीर को रोज धो लेना पड़ता है, तभी वह ताजा और साफ होता है। ऐसे ही मन को भी रोज धो लें, तभी वह ताजा और साफ होता है। और जिनके मन ताजे और साफ नहीं हैं, वे भगवान का आवास नहीं बन सकते हैं। उसे हम बुलाते हैं, लेकिन हम तैयार नहीं हैं। उसे हम चाहते हैं। कि वह मेहमान बने, लेकिन हमारे भीतर गंदगी और कचरे के सिवाय कुछ भी नहीं है। साधारण अतिथि घर में आता है, तो हम 166
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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