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________________ सामूहिक शक्तिपात ध्यान बीमारियां मुझे दे सकते हैं। वे बीमारियां आपसे छूट सकती हैं, उसका स्पर्श आह्लादकारी होगा। मैं एक विद्युत प्रवाह की तरह क्योंकि आप बीमारियां नहीं हैं, बीमारियां केवल आपकी आदत हैं। आपके भीतर आ सकता हूं, उसमें बहुत-सा कचरा जल जाएगा आदतें बदली जा सकती हैं। उन्हें आपने बनाया है, आप उन्हें मिटा | | और सोना निखर उठेगा। लेकिन एक साहस आपको करना जरूरी सकते हैं। है कि आप अपनी बुद्धिमानी नहीं बरतेंगे। आपकी बिलकुल लेकिन हमारे पास बीमारियों की राशि है। जन्मों-जन्मों से हमने | । जन्मा-जन्मा से हमने जरूरत नहीं है। न मालूम कितना उपद्रव भीतर इकट्ठा कर रखा है। कितने आंसू हैं। | वह जो फूल मैंने आपसे लाने को कहा है और कहा है कि ध्यान भीतर, जो बहना चाहते थे और नहीं बह सके। कितनी चीख-पुकार करते आना कि यह मेरा अहंकार है, वह इसीलिए कहा है। अगर है भीतर, जो प्रकट होना चाहती थी, और प्रकट नहीं हो पाई। पूरा भाव आपने किया है कि यह फूल मेरा अहंकार है, तो थोड़ी कितना क्रोध है, कितनी आग है, जो भीतर जल रही है। और उस देर बाद जब मैं आपको कहूंगा कि अपने दोनों हाथ उठाकर पूरे मन आग, घृणा, क्रोध, विक्षिप्तता के कारण आपका जीवन सदा एक से भाव करके कि यह फूल मेरा अहंकार है, उसे छोड़ दें। तो उस ज्वालामुखी के ऊपर है। जिसमें कभी भी विस्फोट हो सकता है। फूल के गिरते ही आपके भीतर का न मालूम कितना बोझ उसके मनसविद कहते हैं कि हर आदमी पागल होने के किनारे ही खड़ा | | साथ गिर जाएगा। आप हलके हो जाएंगे। है। और कभी भी पागल हो सकता है। और वे ठीक कहते हैं। ___आपका अहंकार बाधा है। वह हट जाए, तो मैं एक तूफान की पागलपन करीब-करीब सामान्य हालत है। लेकिन मैं आपको एक | तरह यहां बह सकता हूं। और जो मैं कह रहा हूं, वह कोई प्रतीक रास्ता बताता हूं कि आपके भीतर जो भी दबा हो, उसे आप खुले | की भाषा नहीं है। मैं कोई साहित्य की बात नहीं कह रहा हूं। मैं कोई आकाश में छोड़ दें। मेटाफर में नहीं बोल रहा हूं। वस्तुतः एक तूफान की तरह मैं आपके किसी के ऊपर क्रोध करने की जरूरत नहीं है, क्रोध खुले आस-पास घूमूंगा। और जैसे कोई तूफान एक वृक्ष को पकड़ ले आकाश में भी छोड़ा जा सकता है। भीतर जो पागलपन है, उससे | और उसे हिलाने लगे, और उसके सारे सूखे पत्ते गिर जाएं, और किसी को नुकसान पहुंचाने की जरूरत नहीं है। पागलपन को हवा उसकी सारी धूल झड़ जाए, वैसा मैं आपको पकड़ लूंगा। और में एवोपरेट, वाष्पीभूत किया जा सकता है। आप एक वृक्ष की तरह ही कंपने लगेंगे और आपका रो-रोआं और जैसे ही आप अपने इस उपद्रव को फेंकने लगेंगे. वैसे ही। | स्पंदित हो उठेगा। आपकी प्राण-ऊर्जा जागने लगेगी और आपके आप पाएंगे, आपके सिर का बोझ हलका हुआ जा रहा है। और | भीतर शक्ति का एक प्रवाह शुरू हो जाएगा। आपके आस-पास की दीवाल टूटती जा रही है। और आप आकाश | जैसे ही आप अपने को छोड़ेंगे, मैं काम करना शुरू कर दूंगा। के लिए खुल रहे हैं। और परमात्मा के लिए रास्ता बन रहा है। | आपका छोड़ना पहली शर्त है। और उसके बाद आपको कुछ भी ... यह प्रयोग समर्पण का प्रयोग है। इसमें आप अपने को छोड़ेंगे, नहीं करना है। चीजें होनी शुरू हो जाएंगी। आपको एक ही काम तो ही कुछ हो पाएगा। आपकी बुद्धिमत्ता की इसमें जरूरत नहीं है। करना है कि आप कुछ मत करना। आप सिर्फ छोड़ देना और आप अपनी बुद्धिमत्ता से तो जी ही रहे हैं। परिणाम आपके सामने | प्रतीक्षा करना। है। आप जो हैं, वह आपकी बुद्धिमत्ता का परिणाम है। उसे | | जैसे ही मेरी शक्ति आपकी शक्ति से मिलेगी, आपकी श्वास में बुद्धिमत्ता कहें या बुद्धिहीनता कहें, कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन | परिवर्तन शुरू होगा। वह पहला लक्षण होगा कि आप मुझसे मिल जो भी आप हैं, आपकी बुद्धिमानी का परिणाम है। | गए हैं। ठीक रास्ते पर हैं। आपने मेरी तरफ छोड़ दिया है अपने यह प्रयोग आपकी बुद्धिमानी का नहीं है। आपको अपनी आपको। जैसे ही आप छोड़ेंगे, आपकी श्वास बदलने लगेगी। बुद्धिमानी छोड़ देनी है। उससे आप जीकर काफी देख लिए। एक | आपकी श्वास तेज और गहरी होने लगेगी। जब यह श्वास तेज घंटेभर के लिए मुझे मौका दें कि मैं आपके भीतर प्रवेश कर सकें | और गहरी होने लगे, तो समझना कि पहला लक्षण है। और उसे और आपको बदल सकूँ। रोकना मत। उसे और गहरा हो जाने देना। उसे और सहयोग दे अगर आप राजी हुए, और थोड़ा-सा भी झरोखा आपने खोला, | देना, ताकि वह पूरी तरह आपको कंपाने लगे, और आपके भीतर तो मैं एक ताजी हवा की तरह आपके भीतर प्रवेश कर सकता हूं। । चलने लगे, जैसे कि लोहार की धौंकनी चलती है। 161
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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