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0 गीता दर्शन भाग-60
'वन उतना ही नहीं है, जितना आप उसे जानते हैं। का आना और डूब जाना, और पत्थरों का गिरना और मौत घटित UII आपको जीवन की सतह का भी पूरा पता नहीं है, होना, और जूझते-जूझते जन्मना और जूझते-जूझते मर जाना, यही
उसकी गहराइयों का, अनंत गहराइयों का तो आपको | | उनके सारे पुराण थे। स्वप्न भी नहीं आया है। लेकिन आपने मान रखा है कि आप जैसे | लेकिन एक बार एक भटकता हुआ यात्री उस पहाड़ी गांव में हैं, वह होने का अंत है।
| पहुंच गया। और उसने कहा कि तुम नासमझ हो। तुम्हारी अगर ऐसा आपने मान रखा है कि आप जैसे हैं, वही होने का समस्याओं को हल करने का यह कोई उपाय नहीं है। तुम थोड़े अंत है, तो फिर आपके जीवन में आनंद की कोई संभावना नहीं है। | अपने मकान ऊंचाइयों पर बनाओ। इस खाई-खंदक को छोड़ो। फिर आप नरक में ही जीएंगे और नरक में ही समाप्त होंगे। । और इतने सुंदर पहाड़ तुम्हारे चारों तरफ हैं, इनके उतार पर अपने
जीवन बहुत ज्यादा है। लेकिन उस ज्यादा जीवन को जानने के | मकान बनाओ। लिए ज्यादा खला हृदय चाहिए। जीवन अनंत है। पर उस अनंत को ___ गांव के लोगों ने पूछा, क्या उससे हमारी समस्याएं हल हो देखने के लिए बंद आंखें काम न देंगी। जीवन विराट है और अभी | जाएंगी? क्योंकि ऊंचे मकान बनाने से समस्याओं का क्या हल .
और यहीं जीवन की गहराई मौजूद है। लेकिन आप अपने द्वार बंद | | होगा! वर्षा तो आएगी, तूफान तो होंगे, नदियां तो बहेंगी। ये तो किए बैठे हैं। और अगर कोई आपके द्वार भी खटखटाए, तो आप| | नहीं रुक जाएंगी! भयभीत हो जाते हैं। और भी मजबूती से द्वार बंद कर लेते हैं। । उनका सवाल ठीक था। लेकिन उस यात्री ने हंसकर कहा कि
मैंने आज आपको बुलाया है। मैं आपके द्वार नहीं खटखटाऊंगा, तुम घबड़ाओ मत। तुम्हारी समस्याएं बदल जाएंगी, क्योंकि तुम बल्कि आपके द्वार तोड़ ही डालूंगा। पर आपकी तैयारी चाहिए। आप | ऊंचाई पर चले जाओगे। तुम नीचाई पर हो, इसलिए समस्याएं हैं। अगर भयभीत रहे, तो आप वंचित रह जाएंगे। भय से अगर आपने | | और यहीं, नीचाई पर रहकर अगर तुम समस्याओं को हल करना आंखें बंद रखीं, तो सूरज निकलेगा भी, तो भी आपके लिए नहीं | चाहते हो, तो तुम कभी हल न कर पाओगे। निकलेगा। आप अंधेरे में ही रह जाएंगे।
___ गांव के लोग हिम्मतवर रहे होंगे। बड़ी हिम्मत की जरूरत है यह प्रयोग तो साहस का प्रयोग है। और केवल उन लोगों के परानी आदतों को बदलने के लिए। उन्होंने ऊंचाइयों पर मकाने लिए है, जो अपने से ऊब चुके हैं भलीभांति। और जो अपने से बनाने शुरू कर दिए। और तब उस गांव के लोगों ने एक उत्सव अच्छी तरह परेशान हो चुके हैं। और जिन्होंने यह भलीभांति समझ मनाया और उन्होंने कहा, हमें आश्चर्य है कि हमें यह खयाल पहले लिया है कि जैसे वे हैं, वैसे ही रहने से कोई भी मार्ग नहीं है। तो | क्यों न आया! नदियां अब भी बहेंगी, लेकिन हमारा कोई नुकसान बदलाहट हो सकती है। तो क्रांति आ सकती है।
न कर पाएंगी। पत्थर अब भी गिरेंगे, लेकिन अब हम खाई-खंदक सुना है मैंने कि दूर पहाड़ियों में बसा हुआ एक गांव था। खाई | | में नहीं हैं। में बसा हुआ था, नीचाई पर था। वर्षा आती, नदियों में बाढ़ आती, | | आप जहां जी रहे हैं, वह एक खाई है, जहां सारी मुसीबतें गिरती गांव के घर बह जाते, खेती-बाड़ी नष्ट हो जाती, जानवर बह जाते, | | हैं और आप परेशान होते हैं। यह प्रयोग आपको उस खाई से बाहर बच्चे डूब जाते। झंझावात आते, आंधियां आतीं, पहाड़ से पत्थर | निकालकर ऊंचाइयों की तरफ ले चलने का है। लेकिन मुश्किल है गिरते, लोग दब जाते और मर जाते।
| पुरानी आदतों को छोड़ना; चाहे वे आदतें कितनी ही तकलीफ क्यों उस गांव की जिंदगी बड़े कष्ट में थी। जिंदगी थी ही नहीं, बस | न देती हों। मौत से लड़ने का नाम ही जिंदगी था। कभी वर्षा सताती, कभी | क्रोध किसको तकलीफ नहीं देता? ईर्ष्या किसको नहीं जलाती? तूफान सताते। और जीना दूभर था।
| दुश्मनी से किसको आनंद मिला है? लेकिन हम आदी हैं। और लेकिन उस पहाड़ी गांव के लोग मानते थे कि यही ढंग है एक अगर कोई कहे कि लाओ मैं तुम्हारा क्रोध ले लूं, तो भी हम संकोच जीने का, क्योंकि बचपन से वे इसी ढंग से परिचित थे। उनके करेंगे और कंजूसी दिखाएंगे। बाप-दादे भी ऐसे ही जीए थे। और उनके बाप-दादों के बाप-दादे यह प्रयोग इसीलिए है कि मैं आपसे आपकी सारी बीमारियां भी ऐसे ही जीए थे। यही मुसीबत उनकी कथाओं में थी। यही बाढ़ों मांगता हूं। और आपको रास्ता भी बताता हूं कि आप कैसे वे
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