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________________ गीता दर्शन भाग-6 वह श्वास आपके भीतर बहुत कुछ लाएगी और आपके भीतर से बहुत कुछ बाहर ले जाएगी। वह श्वास मुझे आपके भीतर लाएगी और आपके सारे कचड़े, कूड़ा-करकट को बाहर फेंकेगी। वह श्वास आपके भीतर विराट का संस्पर्श बनने लगेगी और आपकी क्षुद्रता को बाहर फेंकने लगेगी। आती श्वास में मैं आऊंगा और जाती श्वास में आपसे कुछ ले जाऊंगा। इसलिए जितनी तेज श्वास हो सके, उतना लाभ होगा, क्योंकि उतनी ही तेजी से आप उलीचेंगे। तो जब आपकी श्वास तेज होने लगे, तो साथ देना और बाधा मत डालना। दूसरा अनुभव, जैसे ही श्वास तेज होगी, आपको तत्काल लगेगा कि आपके शरीर में एक नई विद्युत, एक इलेक्ट्रिसिटी, एक जीवन ऊर्जा दौड़ने लगी। रोआं रोआं कंपना चाहेगा, नाचना चाहेगा। शरीर में बहुत-सी प्रक्रियाएं शुरू हो जाएंगी। मुद्राएं बनने लगेंगी। कोई एकदम से खड़ा होना चाहेगा। किसी का सिर घूमने लगेगा। किसी के हाथ ऊपर उठ जाएंगे। कुछ भी हो सकता है। और जो भी हो, उसे आपको रोकना नहीं है, होने देना है। आप जैसे बह रहे हैं एक नदी में। आपको तैरना जरा भी नहीं है। नदी की धार जहां ले जाए। आपको पता नहीं है कि क्या हो रहा है, रोकना मत। लेकिन मुझे पता है कि क्या हो रहा है। इसलिए आपसे कहता हूं, रोकना मत। अगर आप बहुत क्रोधी हैं, तो आपके दोनों हाथों की अंगुलियों में, मुट्ठियों में क्रोध समाविष्ट है। और जब मैं आपको पकडूंगा, तो वह क्रोध आपकी मुट्ठियों से निकलना शुरू होगा; आपके हाथ कंपने लगेंगे। अगर आप बहुत चिंता से भरे हुए व्यक्ति हैं, तो आपका मस्तिष्क बहुत बोझिल है। आपका सिर कंपने लगेगा और उस सिर से चिंताएं गिरनी शुरू हो जाएंगी। अगर आप बहुत कामुक व्यक्ति हैं, तो आपके काम-केंद्र पर बहुत जोर से ऊर्जा का प्रवाह शुरू होगा। आप घबड़ाना मत। वह प्रवाह ऊपर की तरफ उठेगा, क्योंकि मैं उसे ऊपर की तरफ खींच रहा हूं। वही कुंडलिनी बन जाती है। आपकी पूरी रीढ़ कंपने लगेगी। उसके साथ-साथ आपका पूरा शरीर कंपने लगेगा । लगेगा कि कोई आपको आकाश की तरफ खींच रहा है। निश्चित ही, मैं आपको आकाश की तरफ खींचूंगा। और अगर आपने बाधा न दी, तो आप इस पूरे प्रयोग में पाएंगे कि आप वेटलेस हो गए; आपका कोई वजन न रहा। जमीन का ग्रेविटेशन, जमीन की कशिश कम हो गई। लेकिन आपको छोड़ना पड़ेगा। श्वास बढ़ेगी, फिर आपकी प्राण ऊर्जा बढ़ेगी। और तीसरा, जब संपर्क और गहरा होगा... । (रोने-चिल्लाने की आवाजें । ) अभी रुकें; पहले पूरी बात समझ लें। और जब संस्पर्श पूरा गहरा होगा...। (चिल्लाने की आवाजें । ) उन्हें थोड़ा सम्हाल दें। अभी रुकें। तो आपके भीतर से आवाजें | निकलनी शुरू हो जाएंगी । चीत्कार, हुंकार, या कोई मंत्र का उदघोष, या रोना, चिल्लाना, हंसना, या स्क्रीम, सिर्फ चिल्लाहट, चीख, उसको रोकना मत। उसे हो जाने देना। उसके साथ ही. आपके भीतर के न मालूम कितने रोग बाहर हो जाएंगे। आप हलके हो जाएंगे - एक बच्चे की तरह कोमल, और हलके, और निर्दोष । यह पहला चरण है। बीस मिनट तक यह प्रयोग चलेगा। यहां | संगीत चलता रहेगा। आपको एकटक मेरी तरफ देखना है, ताकि मैं आपकी आंखों से प्रवेश कर सकूं। छोड़ना है अपने को और मेरी तरफ देखना है । फिर शेष काम मैं कर लूंगा। बीस मिनट के बाद संगीत बंद हो जाएगा। और तब आप जिस अवस्था में होंगे, वैसे ही रुक जाना है। कोई अगर खड़ा हो गया हो, तो वह वैसा ही रुक जाएगा। किसी का हाथ अगर आकाश की तरफ उठा हो, तो हाथ को वहीं छोड़ देना है। किसी की गरदन झुक गई है, तो वैसे ही रह जाना है। फिर जो भी अवस्था आपकी हो । बीस मिनट की प्रक्रिया के बाद, मृत जैसे आप अचानक पत्थर हो गए, वैसे ही रह जाना है। जैसे ही मैं आवाज दूंगा कि रुक जाएं, वैसे ही रुक जाना है। आंख बंद कर लेनी है। दूसरे चरण में बीस मिनट आंख बंद करके पत्थर की मूर्ति की तरह हो जाना है। कितना ही मन हो कि जरा पैर हिलाऊं, कि जरा आंख खोलूं, कि जरा हाथ बदल लूं, कि जरा करवट बदल लूं, इस मन को रोकना । यह मन बेईमान है। वह जो भीतर शक्ति जगी है, उससे डिस्ट्रैक्ट कर रहा है, उससे हटा रहा है। बिलकुल बीस मिनट पत्थर की तरह रह जाना। और आप रह सकेंगे। अगर पहले बीस मिनट आपने शरीर को पूरे प्रवाह में बहने दिया, तो दूसरे बीस | मिनट में आपको कोई बाधा नहीं आएगी। आप मूर्तिवत हो जाएंगे। ये दूसरे बीस मिनट में आपके मौन से मैं काम करूंगा। और आपसे मौन में मिलूंगा। शब्दों से मैंने बहुत-सी बातें आपसे कही हैं। लेकिन जो भी महत्वपूर्ण है, वह शब्दों से कहा नहीं जा सकता। 162
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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