________________
ॐ भक्ति और स्त्रैण गुण
खयाल मेरा गलत था।
यहीं है परमात्मा, इसलिए आपका मिलन नहीं हो पाता। लेकिन जब मैंने पाया कि अब वे चुप हैं, घर के बाबत कुछ नहीं | | कृष्ण कहते हैं, न जो चिंता करता है, न कामना करता है, और कहते, तो मैंने उनसे दोपहर पूछा कि बात क्या है? बड़ी बेचैनी-सी | | शुभ-अशुभ कर्मों के फल का त्यागी है। और जिसने सब लगती है घर में। आप घर के संबंध में चुप क्यों हैं? उन्होंने कहा, शुभ-अशुभ कर्म परमात्मा पर छोड़ दिए कि तू करवाता है। वह देखते नहीं कि पड़ोस में एक बड़ा घर बन गया है! अब क्या खाक भक्तियुक्त पुरुष मुझे प्रिय है। बात करें इसकी! अब रुको। दो-चार साल बाद करेंगे। जब तक जो पुरुष शत्रु और मित्र में, मान-अपमान में सम है, सर्दी-गर्मी इससे ऊंचा न कर लूं...।
| में, सुख-दुख में सम है, आसक्ति से रहित है, वह पुरुष मुझे प्रिय है। दखी हैं. उदास हैं। घर उनका वही का वही है। लेकिन पड़ोस में ___ जो सम है, जो डोलता नहीं है एक से दूसरे पर। हम निरंतर डोलते एक बडा घर बन गया है। बडी लकीर खींच दी किसी ने। उनकी | हैं। जिसको आप प्रेम करते हैं, उसी को घृणा भी करते हैं। सुबह प्रेम लकीर छोटी हो गई है!
करते हैं, सांझ घृणा करते हैं। जिसको आप सुंदर मानते हैं, उसी को आपके अधिक दुख आपके दुख नहीं हैं, आपके अधिक दुख | कुरूप भी मानते हैं। सांझ सुंदर मानते हैं, सुबह कुरूप मान लेते हैं। दूसरों के सुख हैं। और इससे उलटी बात भी आप समझ लेना। जो अच्छा लगता है, वही आपको बुरा भी लगता है। और चौबीस आपके अधिक सुख भी आपके सुख नहीं हैं, दूसरे लोगों के दुख हैं। घंटे आप इसी में डोलते रहते हैं द्वंद्व में, घड़ी के पेंडुलम की तरह,
जब आप किसी का मकान छोटा कर लेते हैं, तब सुखी होते हैं। बाएं से दाएं, दाएं से बाएं। यह जो डोलता हुआ मन है, विषम, यह आपको अपने मकान से सुख नहीं मिलता। और जब कोई आपका मन उपलब्ध नहीं हो पाता अस्तित्व की गहराई को। मकान छोटा कर देता है, तो दुखी होते हैं। आपको अपने मकान से कृष्ण कहते हैं, जो सम है। सुख आ जाए, तो भी विचलित नहीं न दुख मिलता है, न सुख। दूसरों के मकान! द्वेष, ईर्ष्या...। होता। दुख आ जाए, तो भी विचलित नहीं होता।
कृष्ण कहते हैं, न जो द्वेष करता है, न हर्षित होता है, न चिंता | । आप सब हालत में विचलित होते हैं। दुख में तो विचलित होते करता है...।
ही हैं, लाटरी मिल जाए, तो भी हार्ट अटैक होता है। तो भी गए! चिंता क्या है? क्या है चिंता हमारे भीतर? जो हो चुका है, | __मैंने सुना है कि चर्च का एक पादरी बड़ी मुश्किल में पड़ गया उसको जुगाली करते रहते हैं। आदमी की खोपड़ी को खोलें, तो वह | | था। एक आदमी को लाटरी मिली लाख रुपए की। उसकी पत्नी को जुगाली कर रहा है। सालों पुरानी बातें जुगाली कर रहा है, कि कभी खबर आई। पति तो बाहर गया था। पत्नी घबड़ा गई। घबड़ा गई ऐसा हुआ; कभी वैसा हुआ।
यह सोचकर कि जैसे ही पति को पता लगेगा कि लाख रुपए की जो अब नहीं है, उसको आप क्यों ढो रहे हैं? या भविष्य की | | लाटरी मिली है, उनके हृदय के बचने का उपाय नहीं है। वह जानती फिक्र कर रहा है, जो अभी है नहीं। या तो अतीत की फिक्र कर रहा | थी अपने पति को कि एक रुपया मिल जाए, तो वे दीवाने हो जाते है, जो जा चुका। या भविष्य की फिक्र कर रहा है, जो अभी आया | हैं। लाख रुपया! पागल हो जाएंगे या मर जाएंगे। नहीं। और जो अभी, यहीं है, वर्तमान, उसे खो रहा है इस चिंता तो उसने सोचा कि कुछ जल्दी उपाय करना चाहिए, इसके पहले में। और परमात्मा अभी है, यहां। और आप या तो अतीत में हैं या | | कि वे घर आएं। तो उसे खयाल आया कि पड़ोस में चर्च का पादरी भविष्य में। यह चिंता प्राण ले लेती है। यही चुका देती है। है; होशियार, बुद्धिमान पुरोहित है। उसको जाकर कहे कि कुछ कर
तो कृष्ण कहते हैं, जो चिंता नहीं करता...। चिंता का मतलब | | दो। कुछ ऐसा इंतजाम जमाओ। यह कि जो शांत है; यहीं है; न अतीत में उलझा है, न भविष्य में।। | तो चर्च के पादरी को उसने जाकर बताया कि लाख रुपए की वर्तमान के क्षण में जो है, निश्चित, चिंतनशून्य, विचारमुक्त। लाटरी मिल गई है मेरे पति के नाम। और अब वे आते ही होंगे
वर्तमान में कोई विचार नहीं है। सब विचार अतीत के हैं या | बाजार से। आप घर चलें मेरे। और जरा इस ढंग से उनको भविष्य के हैं। और भविष्य कुछ भी नहीं है, अतीत का ही प्रक्षेपण | | समझाएं, इस ढंग से बात को प्रकट करें कि उनको कोई सदमा न है। और हम इसी में डूबे हुए हैं। या तो आप पीछे की तरफ चले पहुंच जाए सुख का। और वे बच जाएं; कोई नुकसान न हो। गए हैं या आगे की तरफ। यहां! यहां आप बिलकुल नहीं हैं। और तो पादरी ने पूछा कि तू मुझे क्या देगी? तो उसने कहा, पांच
155]