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________________ 0 गीता दर्शन भाग-60 दुखी हैं? हुए हैं। वे उसमें प्रकट होते हैं। उलटा लगेगा, लेकिन आप हंसते इसलिए हैं, क्योंकि आप __ कृष्ण का हंसना एक सहज आनंद का भाव है। उसे हम ऐसा दुखी हैं। दुख के कारण आप हंसते हैं। हंसना आपका दुख भुलाने | | समझें कि सुबह जब सूरज नहीं निकला होता है, रात चली गई होती का उपाय है। हंसना एंटीडोट है, उससे दुख विस्मृत होता है। आप | है और सूरज अभी नहीं निकला होता है, तो जो प्रकाश होता है। दूसरे पहलू पर घूम जाते हैं। आपके भीतर बड़ा तनाव है। हंस लेते आलोक, सुबह के भोर का आलोक। ठंडा, कोई तेजी नहीं है। अंधेरे हैं, वह तनाव बिखर जाता है और निकल जाता है। के विपरीत भी नहीं है, अभी प्रकाश भी नहीं है। अभी बीच में संध्या इसलिए आप यह मत समझना कि बहुत हंसने वाले लोग, बहुत | में है। कृष्ण जैसे लोग, बुद्ध जैसे लोगों की प्रसन्नता आलोक जैसी प्रसन्न लोग हैं। संभावना उलटी है। संभावना यह है कि वे भीतर है। दुख नहीं है; सुख नहीं है; दोनों के बीच में संध्या है। बहुत दुखी हैं। तो कृष्ण कहते हैं, जो न कभी हर्षित होता है...। नीत्शे ने कहा है कि मैं हंसता रहता हूं। लोग मुझसे पूछते हैं कि कभी! कभी तो वही हर्षित होगा, जो बीच-बीच में दुखी हो, क्यों हंसते रहते हो, तो मैं छिपा जाता हूं। क्योंकि बात बड़ी उलटी नहीं तो कभी का कोई मतलब नहीं है। है। मैं इसलिए हंसता रहता है कि कहीं रोने न लगं। अगर न हंसं. जो न कभी हर्षित होता है. न देष करता है. तो रोने लगूंगा। वे आंसू न दिख जाएं किसी को, वह दीनता न क्योंकि सब दुखों का कारण द्वेष है। और जो द्वेष करता है, वह प्रकट हो जाए, तो मैं हंसता रहता हूं। मेरी हंसी एक आवरण है,। दुखी होगा। जिसमें मैं दुख को छिपाए हुए हूं। आपको पता है, आपके दुख का कारण आपके दुख कम और दुखी लोग अक्सर हंसते रहते हैं। कुछ भी मजाक खोज लेंगे, | | दूसरों के सुख ज्यादा हैं! आपका मकान हो सकता है काफी हो कुछ बात खोज लेंगे और हंस लेंगे। हंसने से थोड़ा हलकापन आ आपके लिए, लेकिन पड़ोस में एक बड़ा मकान बन गया, अब दुख जाता है। लेकिन अगर कोई आदमी भीतर से बिलकुल दुखी न रहा शुरू हो गया। हो, तो फिर हर्षित होने की यह व्यवस्था तो टूट जाएगी। जब भीतर | । एक मित्र के घर मैं रुकता था। बड़े प्रसन्न थे वे। और जब जाता से दुख ही चला गया हो, तो यह जो हंसी थी, यह जो हर्षित होना था, तो अपना घर दिखाते थे। स्विमिंग पूल दिखाते थे; बगीचा था, यह तो समाप्त हो जाएगा, यह तो नहीं बचेगा। दिखाते थे। बहुत अच्छा, प्यारा घर था। बड़ा बगीचा था। सब का यह मतलब नहीं है कि वह अप्रसन्न रहेगा। पर उसकी शानदार था। खब संगमरमर लगाया था। जब मैं उनके घर जाता प्रसन्नता का गुण और होगा। उसकी प्रसन्नता किसी दुख का विरोध था, तो घर में रहना मुश्किल था; घर की बातें ही सुननी पड़ती थीं, न होगी। उसकी प्रसन्नता किसी दुख में आधारित न होगी। उसकी | |घर के बाबत ही, कि यह बनाया, यह बनाया। मुझे सुबह से वही प्रसन्नता सहज होगी, अकारण होगी। देखना पड़ता था। जब भी गया, यही था। वे कुछ न कुछ बनाए आपकी प्रसन्नता सकारण होती है। भीतर तो दुख रहता है, फिर जाते थे। यत हो जाता है, तो आप थोड़ा हंस लेते हैं। फिर एक बार गया। उन्होंने घर की बात न चलाई। तो मैं थोड़ा लेकिन उसकी प्रसन्नता अकारण होगी। वह हंसेगा नहीं। अगर इसे | परेशान हुआ। क्योंकि वे बिलकुल पागल थे। वे घर के पीछे दीवाने हम ऐसा कहें कि वह हंसता हुआ ही रहेगा, तो शायद बात समझ | थे। जैसे घर बनाने को ही जमीन पर आए थे। उसके सिवाय उनके में आ जाए। वह हंसेगा नहीं, वह हंसता हआ ही रहेगा। उसे पता सपने में भी कुछ नहीं था। ही नहीं चलेगा कि वह कब हर्षित हो रहा है। क्योंकि वह कभी दुखी | | उनकी पत्नी भी परेशान थी। वह भी मुझसे बोली थी कि हम तो नहीं होता। इसलिए भेद उसे पता भी नहीं रहेगा। सोचे थे कि यह घर मेरे लिए बना रहे हैं, घरवाली के लिए बना रहे कृष्ण का चेहरा ऐसा नहीं लगता कि वे उदास हों। उनकी बांसुरी | हैं। अब तो ऐसा लगता है कि घरवाली को घर के लिए लाए हैं! बजती ही रहती है। लेकिन हमारे जैसा हर्ष नहीं है। हमारा हर्ष रुग्ण | कि घर खाली-खाली न लगे, इसलिए शादी की है, ऐसा मालूम है। हम हंसते भी हैं, तो वह रोग से भरा हुआ है, पैथालाजिकल पड़ता है। पहले तो मैं यह सोचती थी, उनकी पत्नी ने मुझे कहा, है। उसके भीतर दुख छिपा हुआ है, हिंसा छिपी हुई है, तनाव छिपे कि मुझसे शादी की, इसलिए घर बना रहे हैं। अब लगता है, यह 154
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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