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भक्ति और स्त्रैण गुण
न थी। लेकिन तब मैं आपसे सीखता। तो जिस दिन आपको मुझे | और सागर में खो जाएगी। कुछ सिखाने का भाव आ जाए; जरूर आ जाना। और आपको | तो बाहर की नदी जो है, वह तो बहती भी रहेगी। उधर हिमालय काफी ऊंचाई पर बिठा दूंगा और मैं नीचे बैठकर सीखूगा। लेकिन पर पानी बरसता ही रहेगा हर साल और नदी बहती रहेगी। ये बुद्ध सीखने आए हों, तो नीचे बैठना तो बात मूल्य की नहीं है, लेकिन | | या कृष्ण या क्राइस्ट की जो नदियां हैं, ये कोई हमेशा नहीं बहती झुकने का भाव मूल्य का है।
| रहेंगी। कभी प्रकट होती हैं; कभी बहती हैं। फिर सागर में खो जाती वह उनको अखरता रहा होगा। बातें तो बड़ी ऊंची कर रहे | | हैं। फिर हजारों साल लग जाते हैं। नदी का पाट खो जाता है। कहीं थे-परमात्मा की, आत्मा की लेकिन पूरे वक्त जो बात खली पता नहीं चलता कि नदी कहां खो गई। ये नदियां सरस्वती जैसी हैं; रही होगी, वही आखिरी में निकली, कि नीचे बैठा हूं! बैठ तो गए | गंगा और यमुना जैसी नहीं। ये तिरोहित हो जाती हैं।
थे, इतना साहस भी नहीं था कि पहले ही कह देते कि मैं खड़ा। तो जब तक मौका हो, तब तक झुक जाना। मगर लोग ऐसे रहूंगा, बैलूंगा नहीं। या कुछ ऊंची कुर्सी बुलाएं, उस पर बैलूंगा; नासमझ हैं कि जब नदी खो जाती है और सिर्फ रेत का पाट रह जाता नीचे नहीं बैठ सकता। कह देते तो कोई अड़चन न थी। ज्यादा है, तब वे लाखों साल तक झुकते रहते हैं। ईमानदारी की बात होती; ज्यादा सच्चे साबित होते। वह तो भीतर | बुद्ध की नदी पर अभी भी झुक रहे हैं! और जब बुद्ध मौजूद थे, छिपाए रखे।
| तब वे अकड़कर खड़े रहे। अब झुक रहे हैं। अब वहां रेत है। और तो उनका परमात्मा का प्रश्न और आत्मा का सब झूठा हो गया। | वह नदी कभी की खो गई है। वहां नदी थी कभी; अब वहां सिर्फ क्योंकि भीतर असली प्रश्न यही था, जो चलते वक्त उन्होंने पूछा, रेत है। कि अब एक बात और पूछ लूं आखिरी कि आप ऊपर क्यों बैठे हैं, लेकिन अभी और नदियां बह रही हैं। लेकिन वहां आप मत मैं नीचे क्यों बैठा हूं!
| झुकना, क्योंकि वहां झुके तो प्यास भी बुझ सकती है। बचाना वहां झुकने की वृत्ति खो गई है। गुरु और शिष्य के संबंध का और | अपने को। यह नदी वाली स्थिति है गुरु की। और शिष्य जब तक कोई मतलब नहीं है। इतना ही मतलब है कि आप जिसके पास | | शिष्य न हो जाए, झुकना न सीख ले, तब तक कुछ भी नहीं सीख सीखने गए हैं, वहां झुकने की तैयारी से जाना। नहीं तो मत जाना। पाता है। कौन कह रहा है! अगर झुकने की तैयारी न हो, तो मत जाना। अब हम सूत्र लें। ___ हालत हमारी ऐसी है कि नदी में खड़े हैं, लेकिन झुक नहीं सकते | | और जो न कभी हर्षित होता है, न द्वेष करता है; न सोच-चिंता
और प्यासे हैं। और झुकें न, तो बर्तन में पानी कैसे भरे! मगर | करता है, न कामना करता है तथा जो शुभ और अशुभ संपूर्ण कर्मों अकड़े खड़े हैं। प्यासे मर जाएंगे। लेकिन झुकें कैसे? क्योंकि | | के फल का त्यागी है, वह भक्तियुक्त पुरुष मेरे को प्रिय है। और झुकना, और नदी के सामने!
| जो पुरुष शत्रु और मित्र में तथा मान और अपमान में सम है तथा मत झुकें। नदी बहती रहेगी। नदी को आपके झुकने से कुछ मजा | सर्दी-गर्मी और सुख-दुखादिक द्वंद्वों में सम है और सब संसार में नहीं आने वाला है। नदी आपके झुकने के लिए नहीं बह रही है। न | | आसक्ति से रहित है, वह मुझको प्रिय है। झुकाने में कोई रस है। अगर प्यास हो, तो झुक जाना। अगर प्यास | जो न कभी हर्षित होता है, न द्वेष करता है; न सोच करता है, न न हो, तो खड़े रहना।
| कामना करता है; जो शुभ-अशुभ संपूर्ण कर्मों के फल का त्यागी लेकिन हमारा मन ऐसा है कि हम अकड़े खड़े रहें, नदी आए। | है, वह भक्तियुक्त पुरुष मेरे को प्रिय है। हमारे बर्तन में, झुके और भर दे बर्तन को। और फिर धन्यवाद दे क्या है इसका अर्थ? आप सोचकर थोड़े हैरान होंगे कि जो न कि बड़ी कृपा तुम्हारी कि तुम प्यासे हुए, नहीं तो मेरा नदी होना | कभी हर्षित होता है, न द्वेष करता है। क्या प्रसन्न होना भी बाधा है? अकारथ हो जाता!
क्या हर्षित होना भी बाधा है? कृष्ण के वचन से लगता है। थोड़ा गुरु-शिष्य का इतना ही अर्थ है कि गुरु है, जिसने पा लिया है, इसके मनोविज्ञान में प्रवेश करना पड़े। जो अब बह रहा है परमात्मा की तरफ। जिसकी नदी बही जा रही आप हंसते क्यों हैं? कभी आपने सोचा? क्या आप इसलिए है। और ज्यादा देर नहीं बहेगी। थोड़े दिन में तिरोहित हो जाएगी हंसते हैं कि आप प्रसन्न हैं? या आप इसलिए हंसते हैं कि आप
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