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- गीता दर्शन भाग-60
क्या फर्क पड़ता है कि नकल मैंने की अपने ही चित्र की या किसी उस पर नजरें हैं। और ने की! नकल तो नकल ही है।
फिर बुद्ध शिक्षक हैं। सभी शिक्षक नहीं होते। जरूरी भी नहीं है। लेकिन परमात्मा ने आज तक नकल नहीं की। एक आदमी बस | शिक्षक होना अलग कला है, अलग गुण है। तो बुद्ध समझा सके, एक ही जैसा है। वैसा दूसरा आदमी फिर दुबारा नहीं होता। इससे | कह सके, ढंग से कह सके। इसलिए हमें इतिहास में उनका उल्लेख मनुष्य बड़ी अदभुत कृति है। मनुष्य को ही क्यों हम कहें, एक बड़े | रह जाता है। इतिहास सभी बुद्धों की खबर नहीं रखता, कुछ बुद्धों वृक्ष पर एक पत्ते जैसा दूसरा पत्ता भी नहीं खोज सकते आप। इस की खबर रखता है, जो इतिहास पर स्पष्ट लकीरें छोड़ जाते हैं। जमीन पर एक कंकड़ जैसा दूसरा कंकड़ भी नहीं खोज सकते। क्राइस्ट को प्रेम करने वाले लोगों में भी लोग उपलब्ध हो गए प्रत्येक चीज मौलिक है, ओरिजिनल है।
हैं। लेकिन आपको पता है, क्राइस्ट को प्रेम करने वाले जो उनके तो गौतम बुद्ध जैसा तो कोई भी नहीं हो सकता। इसका यह बारह शिष्य थे, वे बड़े दीन-हीन थे, बड़े गरीब थे। कोई मछुआ मतलब नहीं है कि और लोग बुद्धत्व को उपलब्ध नहीं हुए। बुद्ध | था; कोई लकड़हारा था; कोई बढ़ई था; कोई चमार था। वे सब के शिष्यों में सैकड़ों लोग उपलब्ध हुए।
दीन-हीन गरीब लोग थे, पढ़े-लिखे नहीं थे। फिर भी उपलब्ध हुए; एक बार तो बद्ध से भी किसी ने जाकर पछा हो सकता है यही और उन्होंने वह जाना, जो जीसस ने जाना। मित्र रहे हों-बुद्ध से जाकर किसी ने पूछा कि आप जैसे आप लेकिन जीसस को सूली लग गई, यही एक फायदा रहा। सूली अकेले ही दिखाई पड़ते हैं। आपके पास दस हजार शिष्य हैं, इनमें लगने की वजह से आपको याद रहे। जीसस की वजह से से कितने लोग बुद्धत्व को उपलब्ध हो गए हैं? बुद्ध ने कहा, इनमें क्रिश्चियनिटी पैदा नहीं हुई, क्रास की वजह से पैदा हुई। अगर सूली से सैकड़ों लोग बुद्धत्व को उपलब्ध हो गए हैं।
न लगती, तो जीसस कभी के भूल गए होते। वह सूली याददाश्त __तो उस आदमी ने पूछा, लेकिन इनका कोई पता नहीं चलता! तो बन गई। जीसस का सूली पर लटकना एक घटना हो गई; वह बुद्ध ने कहा, मैं बोलता हूं; ये चुप हैं। और ये इसलिए चुप हैं कि घटना इतिहास पर छा गई। इतिहास के अपने ढंग हैं। जब मैं बोलता हूं, तो इनको परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन इस खयाल में मत रहें कि महावीर, कृष्ण, क्राइस्ट, या
और तुम्हें मैं नहीं दिखाई पड़ता; मैं जो बोलता हूं, वह सुनाई पड़ता | बुद्ध के शिष्यों में कोई उनको उपलब्ध नहीं हुआ। हुआ; अपने ढंग है। मैं भी चुप हो जाऊं, तो तुम मेरे प्रति भी अंधे हो जाओगे। ये से हुआ। ठीक उसी जगह पहुंच गया, जहां वे पहुंचे थे। लेकिन भी जब बोलेंगे, तब तुम्हें दिखाई पड़ेंगे। ये चुप हैं, क्योंकि मैं बोल अपने ही ढंग से पहुंचा। कोई नाचता हुआ पहुंचा; कोई चुप होकर रहा हूं; कोई जरूरत नहीं है।
पहुंचा; कोई बोलकर पहुंचा। अपने-अपने ढंग थे। उन ढंगों में और जो भी उपलब्ध हो जाते हैं, जरूरी नहीं कि बोलें। बोलना | | फर्क हैं। लेकिन बुद्ध जैसे व्यक्तित्व के पास जो भी समर्पित होने अलग बात है। बहुत-से सदगुरु नहीं बोले, चुप रहे हैं। बहुत-से | | की सामर्थ्य रखता है, वह जरूर पहुंच जाएगा। सदगरु बोले नहीं. नाचे, गाए। उसी से उन्होंने कहा। बहुत-से | समर्पण कला है, सीखने की। और बुद्ध जैसे व्यक्तित्व के पास सदगुरुओं ने चित्र बनाए, पेंटिंग की। उसी से उन्होंने कहा। जब जाएं, तो वहां तो पूरी तरह झुककर सीखने की सामर्थ्य होनी बहुत-से सदगुरुओं ने गीत गाए, कविताएं लिखीं। उसी से उन्होंने चाहिए। हम झुकने की कला ही भूल गए हैं। इसलिए दुनिया से कहा। बहुत-से सदगुरुओं ने उठा लिया एक वाद्य और चल पड़े, धर्म कम होता जाता है।
और गाते रहे गांव-गांव। और उसी से उन्होंने कहा। जो जैसा कह एक मित्र मेरे पास आए थे। समझदार हैं, पढ़े-लिखे हैं, दर्शन सकता था. उसने उस तरह कहा। जो मौन ही रह सकता था. वह का चिंतन करते हैं, विचार करते हैं। बड़े अच्छे सवाल उन्होंने पूछे मौन ही रह गया। उसने अपने मौन से ही कहा।
| थे, बड़े गहरे। लेकिन सब सवालों पर पानी फेर दिया जाते वक्त। फिर और भी बहुत कारण हैं। गौतम बुद्ध सम्राट के लड़के थे। | जाते वक्त उन्होंने कहा कि एक बात और; आप ऊपर क्यों बैठे हैं, सारा देश उनको जानता था। और जब वे ज्ञान को उपलब्ध हुए, तो मैं नीचे क्यों बैठा हूं, यह और पूछना है! सारे देश की नजरें उन पर थीं। फिर कोई गरीब का लड़का भी सीखने आए हैं, लेकिन नीचे भी नहीं बैठ सकते। तो मैंने कहा, बुद्धत्व को उपलब्ध हुआ होगा। न उसे कोई जानता है, न सबकी पहले ही कहना था। मैं और ऊपर बिठा देता। इसमें कोई अड़चन
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