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________________ गीता दर्शन भाग-6 एक मित्र ने पूछा कृष्ण कहते हैं, सर्व आरंभों को छोड़ने वाला भक्त मुझे प्रिय है। तो क्या परमात्मा की खोज का आरंभ भी छोड़ देना चाहिए? अ गर आरंभ कर दिया हो, तो छोड़ देना चाहिए। मगर अगर आरंभ ही न किया हो, तो छोड़िएगा क्या खाक ? है क्या छोड़ने को आपके पास ? आरंभ कर दिया हो, तो छोड़ना ही पड़ेगा। लेकिन आरंभ कहां किया है, जिसको आप छोड़ दें! हमारी तकलीफ यह है कि हमें यही पता नहीं है कि हमारे पास क्या है ! और अक्सर हम वह छोड़ते हैं, जो हमारे पास नहीं है। और उसको पकड़ते हैं, जो है । आपने परमात्मा की खोज शुरू की है? आरंभ हुआ ? अगर हो गया है, तो कृष्ण कहते हैं, उसे भी छोड़ दो। इसी वक्त उपलब्ध हो जाओगे। लेकिन अगर वह हुआ ही नहीं है तो छोड़िएगा कैसे! आदमी अपने को इस इस तरह से धोखे देता है कि उसका हिसाब लगाना बहुत मुश्किल है! बहुत मुश्किल है। मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं कि आप कहते हैं, प्रयत्न छोड़ना पड़ेगा ! तो मैं उनसे पूछता हूं, प्रयत्न कर रहे हो ? कर लिया है प्रयत्न, तो छोड़ना पड़ेगा। अभी प्रयत्न ही नहीं किया है, छोड़िएगा क्या? लोग कहते हैं कि मूर्ति से बंधना ठीक नहीं है, मूर्ति तो छोड़नी है। वे ठीक कहते हैं। लेकिन बंध गए हो, कि छोड़ सको ? आपकी हालत ऐसी है, मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन एक दिन शादी के दफ्तर में पहुंच गया और उसने जाकर सब पूछताछ की कि तलाक के नियम क्या हैं। सारी बातचीत समझकर वह चलने को हुआ, तो रजिस्ट्रार ने उससे पूछा कि कब तलाक के लिए आना चाहते हो? उसने कहा, अभी शादी कहां की है? अभी तो मैं पक्का कर रहा हूं कि अगर शादी कर लूं, तो तलाक की सुविधा है या नहीं ! कोई झंझट में तो नहीं पड़ जाऊंगा! आप भी तलाक की चिंता में पड़ जाते हैं, इसकी बिना फिक्र किए कि अभी शादी भी हुई या नहीं। आरंभ किया है आपने परमात्मा की खोज का? एक इंच भी चले हैं उस तरफ ? एक कदम भी उठाया है? एक आंख भी उस तरफ की है ? कभी नहीं की है। अगर वह आरंभ हो गया है, तो कृष्ण कहते हैं, उसे छोड़ना होगा। सभी आरंभ छोड़ने होते हैं, तभी तो अंत उपलब्ध होता है। सभी आरंभ छोड़ने होते हैं, तभी तो लक्ष्य उपलब्ध होता है। आरंभ भी एक वासना है। परमात्मा को पाना भी एक वासना है। और कठिनाई यही है कि परमात्मा को पाने के लिए सभी वासनाओं से मन रिक्त होना चाहिए। परमात्मा को पाने की वासना भी बाधा है। 150 मगर वह आखिरी वासना है, जो जाएगी। अभी मत छोड़ देना; अभी तो वह की ही नहीं है। अभी तो करें। अभी तो मैं कहता हूं, परमात्मा को पाने की जितनी वासना कर सकें, करें। इतनी वासना करें कि सभी वासनाएं उसी में लीन हो जाएं। एक ही वासना रह जाए सभी वासनाओं की मिलकर, एक ही धारा बन जाए, कि परमात्मा को पाना है। धन पाना था, वह भी इसी में डूब जाए। प्रेम पाना था, वह भी इसी में डूब जाए। यश पाना था, वह भी इसी में डूब जाए। सारी वासनाएं डूब जाएं; एक ही वासना रह जाए कि परमात्मा को पाना है। ताकि आपके जीवन की सभी ऊर्जा एक तरफ दौड़ने लगे। और जिस दिन यह एकता आपके भीतर घटित हो जाए, उस दिन वह वासना भी छोड़ देना कि परमात्मा को पाना है। उसी वक्त | परमात्मा मिल जाता है। क्योंकि परमात्मा कहीं दूर नहीं है कि उसे खोजने जाना पड़े; वह यहीं है। जो दूर हो, उसे पाने के लिए चलना पड़ता है। जो पास हो, उसे पाने के लिए रुकना पड़ता है। जिसे खोया हो, उसे खोजना पड़ता है। जिसे खोया ही न हो, उसके लिए सिर्फ शांत होकर देखना पड़ता है। तो वह जो परमात्मा को पाने की वासना है आखिरी, वह सिर्फ | उपाय है सारी वासनाओं को छोड़ देने का। जब सब छूट जाएं, तो उसे भी छोड़ देना है उसी तरह, जैसे पैर में कांटा लग जाए, तो हम एक और कांटा निकाल लाते हैं वृक्ष से, पैर के कांटे को निकालने के लिए। लेकिन फिर आप जब पैर का कांटा निकालकर फेंक देते हैं, तो दूसरे कांटे का क्या करते हैं जिसने आपकी सहायता की ? क्या उसको घाव में रख लेते हैं? कि सम्हालकर रखें, यह कांटा बड़ा परोपकारी है। कि इस कांटे ने कितनी कृपा की कि पुराने कांटे को निकाल दिया। तो अब इसको सम्हालकर रख लें इसी घाव में; कभी जरूरत पड़े। तो फिर आप मूढ़ता कर रहे हैं। तो कांटा निकालना व्यर्थ गया, क्योंकि दूसरा कांटा भी उतना ही कांटा है। और हो सकता है, दूसरा | कांटा पहले कांटे से भी मजबूत हो, तभी तो निकाल पाया।
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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