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O भक्ति और स्त्रैण गुण
है। इधर हम सुधार-सुधारकर जिंदगीभर परेशान हो जाते हैं। बूढ़े | | हैं। न तो अनुभव होता है, और न लौटना होता है। अधकचरे, बीच जब तक सुधर पाते हैं, उनको वह हटा लेता है। और फिर बच्चे में लटके रह जाते हैं। पैदा कर देता है। वे फिर बिगड़े के बिगड़े। फिर वही उपद्रव शुरू। इस जमीन पर जो लोग बीच में लटके हैं, उनकी पीड़ा का अंत फिर वही करेंगे जो अनुभवी कह गए हैं कि मत करना। नहीं है। इधर पीछे से महात्मा खींचते हैं कि वापस लौट आओ।
यह परमात्मा बच्चे क्यों बनाता है? बढ़े क्यों नहीं बनाता? | | और उधर भीतर से परमात्मा धक्के देता है कि जाओ, अनुभव से आखिर बूढ़े भी पैदा कर सकता था सीधे के सीधे। कोई | गुजरो। इन दोनों की रस्साकसी में आपकी जान निकल जाती है। झगड़ा-झंझट नहीं होती। अनुभवी पैदा हो जाते। लेकिन बूढ़े भी __ मैं कहता हूं कि मत सुनो। निसर्ग की सुनो; स्वभाव की सुनो; अगर वह पैदा कर दे, तो बच्चे ही होंगे। क्योंकि अनुभव के बिना | | वह जो कह रहा है, जाओ। एक ही बात ध्यान रखो कि होशपूर्वक कोई वार्धक्य, कोई बोध पैदा नहीं होता।
जाओ, समझपूर्वक जाओ। समझते हुए जाओ, क्या है? कामवासना __वह बच्चे पैदा करता है। उसकी हिम्मत बड़ी अनूठी है। वह | क्या है, इसको किताब से पढ़ने की क्या जरूरत है? इसको उतरकर नासमझ पैदा करता है, समझदारों को हटाता है। हम तो मानते ही ही देख लो। और जब उतरो, तो पूरे ध्यानपूर्वक उतरो।। ऐसा हैं कि जिसकी समझ पूरी हो जाए, फिर उसका जन्म नहीं लेकिन मैं जानता हूं लोगों को, वे मेरे पास आते हैं। वे मुझसे होता। उसका मतलब, समझदारों को फौरन हटाता है और कहते हैं, कामवासना से कैसे छूटें? मैं उनसे पूछता हूं, जब तुम नासमझों को भेजता चला जाता है।
कामकृत्य में उतरते हो, तब तुम्हारे दिमाग में कोई और खयाल तो विद्यालय में नासमझ ही भेजे जाते हैं। जब बात पूरी हो जाती है, | | नहीं होता? वे कहते हैं, हजार खयाल होते हैं। कभी दुकान की विद्यालय के बाहर हो जाते हैं। लेकिन जो बच्चा स्कूल में जा रहा | | सोचते हैं, कभी बाजार की सोचते हैं, कभी कुछ और सोचते हैं। है, वह स्कूल से रिटायर होते हुए प्रोफेसर की बात सुनकर बाहर | कभी यह सोचते हैं कि कैसा पाप कर रहे हैं! इसका क्या ही रुक जाए, तो क्या गति होगी?
प्रायश्चित्त होगा? एक बच्चा अभी स्कूल में प्रवेश कर रहा है। आज पहला दिन तो तुम कामवासना में भी जब उतर रहे हो, तब भी तुम्हारी है उसके स्कूल में प्रवेश का। उसी दिन कोई बूढ़ा प्रोफेसर रिटायर खोपड़ी कहीं और है, तो तुम जान कैसे पाओगे कि यह क्या है! हो रहा है। वह प्रोफेसर कहता है, कुछ भी नहीं है यहां। जिंदगी | ध्यान बना लो। हटा दो सब विचारों को। जब काम में उतर रहे हो, हमने ऐसे ही गंवाई। सब बेकार गया। तू अंदर मत जा। तू वापस | तो पूरे उतर जाओ, पूरे मनपूर्वक, पूरे प्राण से, पूरा बोध लेकर। लौट चल।
दुबारा उतरने की जरूरत न रहेगी। बस, यह आपकी हालत है। रिटायर होते लोगों से जरा सावधान। एक बार भी अगर यह हो जाए कि कामवासना का और ध्यान उनकी बात तो सच है। बिलकुल ठीक कह रहे हैं, अनुभव से कह का मिलन हो जाए, तो वहीं पहला बोध, पहला होश उपलब्ध हो रहे हैं। पर आपको भी उस अनुभव से गुजरना ही होगा। आप भी | जाता है। सब चीज व्यर्थ दिखाई पड़ती है, बचकानी हो जाती है। एक दिन वही कहोगे। लेकिन थोड़ा समय पकने के लिए जरूरी है। दुबारा जाना भी चाहो, तो नहीं जा सकते। बात ही व्यर्थ हो गई। आग में गुजरना जरूरी है, तो परिपक्वता आती है।
जब तक यह न हो जाए, तब तक जाना ही पड़ेगा। और प्रकृति इसलिए डरें मत। परमात्मा ने जो भी जीवन की नैसर्गिक | कोई अपवाद नहीं मानती। प्रकृति तो उन्हीं को पार करती है, जो वासनाएं दी हैं, उनमें सहज भाव से उतरें। घबड़ाएं मत। घबड़ाना | | पूरी तरह पक जाते हैं। कच्चे लोगों को नहीं निकलने देती। अगर क्या है ? जब परमात्मा नहीं घबड़ाता, तो आप क्यों घबड़ा रहे हैं? | | आप कच्चे हैं, तो फिर जन्म देगी। फिर धक्के देगी। जब वह नहीं डरा हुआ है, तो आप क्यों इतने डरे हुए हैं ? उतरें। । | अगर आप कच्चे ही बने रहते हैं, तो अनंत-अनंत जन्मों तक
बस, उतरने में एक ही खयाल रखें कि पूरी तरह उतरें। ये कचरे | | भटकना पड़ेगा। पक्का अगर होना है, तो भय छोड़ें। और निसर्ग खयाल दिमाग में न पड़े रहें कि गलत है। क्योंकि गलत है, तो उतर को बोधपूर्वक अनुभव करें। मुक्ति वहां है। ही नहीं पाते, अधूरे ही रह जाते हैं। हाथ भी बढ़ता है और आग तक पहुंच भी नहीं पाता, रुक जाता है बीच में। तो दोहरे नुकसान होते
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