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• भक्ति और स्त्रैण गुण 0
जाना चाहेंगे कि आत्महत्या कर लूंगा, अगर यही भोजन वापस | | और बिना गुजरे कोई किसी की बात भी नहीं मान सकता है। मिला तो।
अनुभव के अतिरिक्त इस जगत में कोई अनुभूति नहीं है। अनुभव __ अनुभव से ऊब आती है। चित्त रस खो देता है। और अगर
ना होगा। अनुभव से ऊब नह
| फिर घबडाहट भी क्या है इतनी? इतना पार होने की जल्दी भी नहीं ले रहे हैं। इस बात को ठीक से समझ लेना।
| क्या है ? अगर परमात्मा एक अवसर देता है, उसका उपयोग क्यों और अनुभव आप ठीक से ले नहीं सकते, क्योंकि अनुभवियों | | न किया जाए? और उस उपयोग को पूरा क्यों न समझा जाए? ने जो कहा है, वह आपकी परेशानी किए दे रहा है। अनुभव के | जरूर निहित कोई प्रयोजन होगा। परमात्मा आपसे ज्यादा समझदार पहले आप छूटना चाहते हैं।
| है। और अगर उसने आपमें कामवासना रची है, तो उसका कोई यह मित्र पूछते हैं कि कामवासना से कैसे पार जाया जाए? | | निहित प्रयोजन होगा। पहले कामवासना में तो चले जाओ, तो पार भी चले जाना। पार महात्मा कितना ही कहते हों कि कामवासना बुरी है, लेकिन जाने की जल्दी इतनी है कि उसमें भीतर जा ही नहीं पाते, उतर ही परमात्मा नहीं कहता कि कामवासना बुरी है। नहीं तो रचता नहीं। नहीं पाते।
| नहीं तो उसके होने की कोई जरूरत न थी। परमात्मा तो रचे जाता एक काम का गहन अनुभव भी पार ले जा सकता है। लेकिन | है, महात्माओं की वह सुनता नहीं! वह कभी गहन हो नहीं पाता। यह पीछे से जान अटकी ही रहती है। जरूर कोई निहित प्रयोजन है। और वह निहित प्रयोजन यह है कि पार कब, कैसे हो जाएं। न पार हो पाते हैं, न अनुभव हो पाता कि ये महात्मा भी पैदा नहीं हो सकते थे, अगर कामवासना न होती। है। और बीच में अटके रह जाते हैं।
ये महात्मा भी उसी अनुभव से गुजरकर पार गए हैं। इन्होंने भी उसमें जब मैं आपसे कहता हूं कि अनुभव ही मुक्ति है, तो उसका अर्थ | | पड़कर जाना है कि व्यर्थ है। वह व्यर्थता का बोध बड़ा कीमती है। ठीक से समझ लें। क्योंकि जो चीज व्यर्थ है, वह अनुभव से दिखाई | वह होगा ही तब, जब आपको अनुभव में आ जाए। पड़ेगी कि व्यर्थ है। और किसी तरह दिखाई नहीं पड़ सकती। | तो जल्दी मत करना। उधार अनुभव का भरोसा मत करना।
जब तक आपको अनुभव नहीं है, आप भला सोचें कि व्यर्थ है, | | इसका यह मतलब नहीं है कि आप अनुभवियों को कहो कि तुम लेकिन सोचने से क्या होगा! रस तो कायम है भीतर। और कितने | | गलत हो। आपको इतना ही कहना चाहिए कि हमें अभी पता नहीं ही अनुभवी कहते हों कि व्यर्थ है, उनके कहने से क्या व्यर्थ हो | | है। और हम उतरना चाहते हैं, और हम जानना चाहते हैं कि क्या जाएगा। और अगर उनके कहने से होता होता. तो अब तक सारी है यह कामवासना। और हम इसे पुरा जान लेंगे। तो अगर यह दुनिया की कामवासना तिरोहित हो गई होती।
गलत होगी, तो वह जानना मुक्ति ले आएगा। और अगर यह सही बाप कितना नहीं समझाता है बेटे को। बेटा सुनता है? लेकिन होगी, तो मुक्त होने की कोई जरूरत नहीं है। बाप कहे चला जाता है। और बाप इसकी बिलकुल फिक्र नहीं | एक बात निश्चित है कि अब तक जिन्होंने भी ठीक से जान करता कि वह भी बेटा था, और उसके बाप ने भी यही कहा था, लिया, वे मुक्त हो गए हैं। और दूसरी बात भी निश्चित है कि और उसने भी नहीं सुना था। अगर वह ही सुन लेता, तो यह बेटा | | जिन्होंने नहीं जाना, वे कितना ही सिर पीटें और अनुभवियों की बातें कहां से आता! और वह घबड़ाए न। यह बेटा भी बड़ा होकर अपने मानते रहें, वे कभी मुक्त नहीं हुए हैं, न हो सकते हैं। बेटे को यही शिक्षा देगा। इसमें कोई अंतर पड़ने वाला नहीं है। । इतनी घबड़ाहट क्या है? इतना डर क्या है? भीतर जो छिपा है,
किसी का अनुभव काम नहीं पड़ता। बाप का अनुभव आपके उसे पहचानना होगा। उपयोगी है कि उससे आप गुजरें। काम नहीं पड़ सकता है। आपका अनुभव ही काम पड़ेगा। ___ मैंने सुना है कि एक सम्राट ने अपने बेटे को एक फकीर के पास
बाप गलत कहता है, ऐसा मैं नहीं कह रहा हूं। बाप अपने शिक्षा के लिए भेजा। हर माह खबर आती रही कि शिक्षा ठीक चल अनुभव से कह रहा है कि यह सब पागलपन से वह गुजरा है। रही है। साल पूरा हो गया। और वह दिन भी आ गया, जिस दिन लेकिन पागलपन से गुजरकर कह रहा है वह। और बिना गुजरे वह फकीर युवक को लेकर राजदरबार आएगा। और सम्राट बड़ा प्रसन्न भी नहीं कह सकता था। बिना गुजरे कोई भी नहीं कह सकता है। था। उसने अपने सारे दरबारियों को बुलाया था कि आज मेरा बेटा
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