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________________ 0 गीता दर्शन भाग-60 चढ़ने की जरूरत क्या है? है, तो आपके भीतर छिपी जो स्त्री है, उसके गुणों को आपको तो पता है, हिलेरी ने क्या कहा? हिलेरी ने कहा, जब तक | विकसित करना होगा। और अगर स्त्रियों को भी बाहर की तरफ एवरेस्ट है, तब तक आदमी बेचैन रहेगा; चढ़ना ही पड़ेगा। यह जाना है, तो उनके भीतर छिपा हुआ जो पुरुष है, उनको उसे कोई कारण नहीं है और। लेकिन एवरेस्ट का होना, कि अनचढ़ा | विकसित करना होगा। एक पर्वत है, आदमी के लिए चुनौती है। क्योंकि एवरेस्ट है, | | बहिर्यात्रा पुरुष के सहारे हो सकती है, अंतर्यात्रा स्त्री के सहारे। इसलिए चढ़ना पड़ेगा। कोई और कारण नहीं है। | इसलिए कृष्ण ने स्त्रैण गुणों को इतनी गहराई से कहा है। पुरुष में एक बेचैनी है। इसलिए पुरुष युद्ध के लिए आतुर है; संघर्ष के लिए आतुर है। नए संघर्ष खोजता है; नए उपद्रव मोल लेता है। नई चुनौतियां स्वीकार करता है। एक मित्र ने पूछा है कि कल आपने कहा कि क्रोध ___चांद पर जाने की कोई जरूरत नहीं है। अभी तो कोई भी जरूरत | | को पूरा जानने के लिए क्रोध का पूरा अनुभव जरूरी नहीं थी। लेकिन चांद है, तो रुकना बहुत मुश्किल है। जिस है। तो कामवासना को पूरा कैसे जाना जाए? क्योंकि वैज्ञानिक ने पहली दफा चांद की यात्रा का खयाल दिया, उसने अनुभवियों ने कहा है कि कामवासना की तृप्ति कभी लिखा है कि अब हमारे पास चांद तक पहुंचने के साधन हैं, तो हमें भी नहीं हो पाती; जितनी भोगेंगे, उतनी ही बढ़ती पहुंचना ही है। अब कोई और वजह की जरूरत नहीं है। अब हम जाएगी। तो कामवासना को कैसे पार किया जाए? पहुंच सकते हैं, तो हम पहुंचेंगे। तो फायदा है। फायदा है, संसार के तल पर पुरुष के गुणों का फायदा है। इसलिए स्त्रियां पिछड़ जाती हैं। संसार की दौड़ में वे | 1 हले तो अनुभवियों से थोड़ा बचना, खुद के अनुभव कहीं भी टिक नहीं पातीं। लेकिन नुकसान भी उसका है! तो बेचैनी, | प का भरोसा करना। अशांति, विक्षिप्तता, पागलपन, वह सब पुरुष का हिस्सा है। इसका यह मतलब नहीं है कि अनुभवियों ने जो कहा स्त्रियां शांत हैं। है, वह गलत कहा है। इसका कुल मतलब इतना है कि दूसरे के इसे आप ऐसा समझें कि अगर बाहर के जगत में खोज करनी अनुभव को मानकर चलने से आप अनुभव से वंचित रह जाएंगे। हो, तो पुरुष के गुण उपयोगी हैं। पुरुष बहिर्गामी है। अगर भीतर | और अगर अनुभव से वंचित रह गए, तो अनुभवियों ने जो कहा के जगत में जाना हो, तो स्त्री के गुण उपयोगी हैं। स्त्री अंतर्गामी है। है, वह आपको कभी सत्य न हो पाएगा। स्त्री और पुरुष जब प्रेम भी करते हैं, तो पुरुष आंख खोलकर प्रेम अनुभवियों ने जो कहा है, वह अनुभव से कहा है। दूसरे करना पसंद करता है, स्त्री आंख बंद करके। पुरुष चाहता है कि अनुभवियों को सुनकर नहीं कहा है। यह फर्क खयाल में रखना। प्रकाश जला रहे, जब वह प्रेम करे। स्त्रियां चाहती हैं, बिलकुल उन्होंने यह नहीं कहा है कि अनुभवियों ने कहा है, इसलिए हम अंधेरा हो। पुरुष चाहता है कि वह देखे भी कि स्त्री के चेहरे पर क्या | कहते हैं। उन्होंने कहा है कि हम अपने अनुभव से कहते हैं। तुम भाव आ रहे हैं, जब वह प्रेम कर रहा है। स्त्री बिलकुल आंख बंद | | भी अगर सच में ही मुक्त होना चाहो, तो अपने अनुभव से ही। कर लेती है। वह पुरुष को भूल जाना चाहती है। वह अपने भीतर | | और यह बात गलत है कि अनुभव से कामवासना बढ़ती है। डूबना चाहती है। प्रेम के गहरे क्षण में भी वह पुरुष को भूलकर अपने | | कोई वासना दुनिया में अनुभव से नहीं बढ़ती। और अगर अनुभव भीतर डूबना चाहती है। उसका जो रस है, वह भीतरी है। | से कामवासना बढ़ती है, तो फिर इस दुनिया में कोई भी आदमी ___पुरुष देखना चाहता है कि स्त्री प्रसन्न हो रही है, आनंदित हो रही उससे मुक्त नहीं हो सकता। है, तो वह प्रसन्न होता है। वह देखता है कि स्त्री दुखी हो रही है, अनुभव से सभी चीजें क्षीण होती हैं। अनुभव से सभी चीजों में परेशान हो रही है या उसके मन में कोई भाव नहीं उठ रहा है, तो | ऊब आ जाती है। एक ही भोजन कितना ही स्वादिष्ट हो, रोज-रोज उसका सारा सुख खो जाता है। पुरुष बहिर्दृष्टि है। | करें, कितने दिन कर पाएंगे? थोड़े दिन में स्वाद खो जाएगा। फिर इसका मतलब यह हुआ कि अगर आपको भीतर की तरफ जाना | थोड़े दिन बाद बेस्वाद हो जाएगा। फिर कुछ दिन बाद आप भाग 146
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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