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ॐ भक्ति और स्त्रैण गुण ®
बातें सिखा रहे हैं, वे लोगों को स्त्रैण बनाने वाली हैं। के वीर्यकण होते हैं। एक वीर्यकण होता है, जिसमें चौबीस सेल
नीत्शे ने तो विरोध में यह बात कही है कि मनुष्य जाति को स्त्रैण | | होते हैं, चौबीस कोष्ठ होते हैं। और एक वीर्यकण होता है, जिसमें बना दिया, बुद्ध, क्राइस्ट, इस तरह के लोगों ने। क्योंकि जो तेईस कोष्ठ होते हैं। स्त्री के जो रजकण होते हैं, उन सबमें चौबीस शिक्षाएं दीं, उसमें पुरुष के गुणों का कोई मूल्य नहीं है। पौरुष का, कोष्ठ होते हैं। उनमें तेईस कोष्ठ वाला कोई रजकण नहीं होता। तेज का, बल का, आक्रमण का, हिंसा का, संघर्ष का, युद्ध का | | उनमें सबमें चौबीस कोष्ठ वाले रजकण होते हैं। कोई भाव नहीं है। तो इन्होंने स्त्रैण बना दिया जगत को।
जब स्त्री का चौबीस कोष्ठ वाला रजकण, पुरुष के चौबीस उसकी बात में थोड़ी दूर तक सच्चाई है। लेकिन वे लोग सच | कोष्ठ वाले वीर्यकण से मिलता है, तो स्त्री का जन्म होता है, में ही स्त्रैण बनाने में सफल नहीं हो पाए। नहीं तो पृथ्वी स्वर्ग हो | चौबीस-चौबीस। और जब स्त्री का चौबीस कोष्ठ वाला रजकण, जाती है।
पुरुष के तेईस कोष्ठ वाले वीर्यकण से मिलता है, तब पुरुष का जीवन में जो भी मूल्यवान है, वह कहीं न कहीं मां से जुड़ा हुआ | जन्म होता है, चौबीस-तेईस। है। जीवन में जो भी मूल्यवान है, कीमती है, कोमल है, फूल की | जीवशास्त्री कहते हैं कि स्त्री संतुलित है, उसके दोनों पलड़े तरह है, वह कहीं न कहीं स्त्री से संबंधित है।
| बराबर हैं, चौबीस-चौबीस। और पुरुष में एक बेचैनी है, उसका और पुरुष तो एक बेचैनी है। स्त्री एक समता है। जरूरी नहीं; | एक पलड़ा थोड़ा नीचे झुका है, एक थोड़ा ऊपर उठा है। कि स्त्रियां ऐसा न सोच लें कि वे ऐसी हैं। यह तो स्त्री के परम अर्थ इसलिए अगर आप, छोटी बच्ची भी हो और छोटा लड़का हो, की बात है। परम लक्ष्य पर स्त्री अगर हो, तो ऐसा होगा। अभी तो | दोनों को देखें, तो लड़के में आपको बेचैनी दिखाई पड़ेगी। लड़की अधिक स्त्रियां भी पुरुष जैसी हैं और वे पूरी कोशिश कर रही हैं कि | शांत दिखाई पड़ेगी। लड़का पैदा होते से ही थोड़ा उपद्रव शुरू पुरुष जैसी कैसे हो जाएं। पश्चिम में वे बड़ी लड़ाई लड़ रही हैं कि | करेगा। उपद्रव न करे, तो लोग कहेंगे कि लड़का थोड़ा स्त्रैण है, पुरुष के जैसी कैसे हो जाएं। कपड़े भी पुरुष जैसे पहनने हैं; काम | | लड़कियों जैसा है। वह जो बेचैनी है, वह जो असंतुलन है, वह भी पुरुष जैसा करना है; अधिकार भी पुरुष जैसे चाहिए। सब जो काम शुरू कर देगा। पुरुष कर रहे हैं!
इस बेचैनी की तकलीफें हैं, इसके फायदे भी हैं। समता का लाभ __ अगर पुरुष सिगरेट पी रहे हैं, तो स्त्रियां भी उसी तरह सिगरेट | | भी है, नुकसान भी है। दुनिया में कोई लाभ नहीं होता, जिसका पीना चाहती हैं। क्योंकि यह असमानता खलती है, अखरती है। | नुकसान न हो। कोई नुकसान नहीं होता, जिसका लाभ न हो।
तो जो पुरुष कर रहा है, अगर वह गलत भी कर रहा है, तो स्त्री | पुरुष में जो बेचैनी है, उसी के कारण उसने इतने बड़े साम्राज्य को भी वह करना ही चाहिए! सारी दुनिया में एक दौड़ है कि स्त्रियां | बनाए। पुरुष में जो बेचैनी है, उसी के कारण उसने विज्ञान निर्मित भी पुरुष जैसी कैसे हो जाएं।
किया, इतनी खोजें की। पुरुष में बेचैनी है, इसलिए वह एवरेस्ट पर इसलिए स्त्रियां यह न सोचें कि जो मैं कह रहा हूं, वह उनके चढ़ा और चांद पर पहुंचा। बाबत लागू है। वे सिर्फ यह सोचें कि अगर उनकी स्त्रैणता पूरे रूप स्त्री में वह बेचैनी नहीं है, इसलिए स्त्रियों ने कोई खोज नहीं की, में प्रकट हो, तो जो मैं कह रहा हूं, वह सही होगा।
कोई आविष्कार नहीं किया। वह तृप्त है। वह अपने होने से पर्याप्त स्त्री अगर पूरे रूप में प्रकट हो....। और स्त्री पूरे रूप में प्रकट है। उसको कहीं कुछ जाना नहीं है। उसकी समझ के बाहर है कि हो सकती है। और जब पुरुष भी पूरे रूप में प्रकट होता है, तो स्त्री | एवरेस्ट पर चढ़ने की जरूरत क्या है! जैसा हो जाता है। इसके कारण बहुत हैं।
हिलेरी से, जो आदमी एवरेस्ट पर पहली दफा चढ़ा, उससे पहले तो बायोलाजिकली समझने की कोशिश करें। उसकी पत्नी ने पूछा कि आखिर एवरेस्ट पर चढ़ने की जरूरत क्या
जीवशास्त्री कहते हैं कि स्त्री में संतुलन है, पुरुष में संतुलन नहीं है? बिलकुल समझ के बाहर है बात कि नाहक, सुख-शांति से घर है, शरीर के तल पर भी। जिन वीर्यकणों से मिलकर जीवन का जन्म में रह रहे हो, परेशान हो जाओ; मौत का खतरा लो। जरूरी नहीं होता है, रज और वीर्य के मिलन से जो व्यक्तित्व का निर्माण होता कि पहुंचो। अनेक लोग मर चुके हैं। और पहुंचकर भी मिलेगा है, उसमें एक बात समझने जैसी है। पुरुष के वीर्यकण में दो तरह क्या? अगर पहुंच भी गए, तो फायदा क्या है? आखिर एवरेस्ट पर
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