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________________ 0 गीता दर्शन भाग-60 का आध्यात्मिक अर्थ होता है, ग्राहक होना, रिसेप्टिव होना। पुरुष होकर ही साधना करनी है। है आक्रामक, एग्रेसिव, हमलावर। बायोलाजिकली भी, जैविक तो रामकृष्ण छः महीने तक स्त्री के कपड़े ही पहनते थे। स्त्री जैसे व्यवस्था में भी पुरुष हमलावर है। स्त्री ग्राहक है। स्त्री गर्भ है। वह ही उठते-बैठते थे। स्त्रैण भाव से ही जीते थे। और एक ही धारणा स्वीकार करती है, समा लेती है, आत्मसात कर लेती है। हमला | मन में थी कि मैं प्रेयसी हूं और परमात्मा प्रेमी है। नहीं करती है। बड़ी हैरानी की घटना घटी, जो हजारों लोगों ने देखी है। वह भक्ति का मार्ग ग्राहक, स्वीकार करने का मार्ग है। वह स्त्रैण है। यह कि रामकृष्ण की चाल थोड़े दिन में बदल गई। वे स्त्रियों जैसे वहां परमात्मा को अपने भीतर स्वीकार करना है। श्रद्धापूर्वक, नत | चलने लगे। होकर, सिर को झुकाकर उसे अपने भीतर झेल लेना है। भगवान बहुत कठिन है चलना स्त्रियों जैसा। क्योंकि स्त्री के शरीर का के लिए गर्भ बन जाता है भक्त। वह पुरुष है या स्त्री, इससे कोई । ढांचा अलग है, पुरुष के शरीर का ढांचा अलग है। चूंकि स्त्री के सवाल नहीं। लेकिन जो गर्भ नहीं बन सकता भगवान के लिए, वह शरीर में गर्भ है, इसलिए बड़ी खाली जगह है। उस खाली जगह भक्त नहीं बन सकता। | की वजह से उसके पैर और ढंग से घूमते हैं। पुरुष के पैर उस ढंग . आपको शायद सुनकर हैरानी हो या कभी आपको पता भी हो, से नहीं घूम सकते। एक ऐसा भी भक्तों का संप्रदाय हआ है, जिनमें पुरुष भी स्त्रियों के लेकिन रामकृष्ण ऐसे चलने लगे, जैसे स्त्रियां चलती हैं। यह भी कपड़े ही पहनते थे। अब भी बंगाल में उसकी थोड़ी-सी धारा शेष कुछ बड़ी बात न थी। इससे भी बड़ी घटना घटी कि दो महीने के है। वे स्त्री जैसे ही रहते हैं भक्त। और परमात्मा को अपना पति | बाद रामकृष्ण के स्तन बढ़ने लगे। यह भी कोई बहुत बड़ी बात नहीं स्वीकार करते हैं। रात सोते भी हैं, तो परमात्मा की मूर्ति साथ लेकर थी, क्योंकि एक उम्र में पुरुषों के थोड़े स्तन तो बढ़ ही जाते हैं। जो सोते हैं, जैसे कोई प्रेयसी अपने प्रेमी को साथ लेकर सो रही हो। सबसे बड़ी चमत्कारी घटना घटी, वह यह कि चार महीने के बाद यह बात हमें बड़ी अजीब-सी लगेगी, क्योंकि हमें इसके भीतर | रामकृष्ण को मासिक-धर्म शुरू हो गया। यह मनुष्य जाति के के रहस्य का कोई पता नहीं है। और जिस बात के भीतर के रहस्य | इतिहास में घटी थोड़ी-सी मूल्यवान घटनाओं में से एक है, कि का हमें कोई पता न हो, बड़ी अड़चन होती है। भाव का इतना परिणाम शरीर पर हो सकता है! .. राहुल सांकृत्यायन ने, एक बड़े पंडित ने बड़ा विरोध किया है| ।। इतने अंतःकरणपूर्वक उन्होंने मान लिया कि मैं तुम्हारी प्रेयसी हूं इस बात का, कि यह क्या पागलपन है। ये पुरुष स्त्रियां बन जाएं, | और तुम मेरे प्रेमी हो, यह भावना इतनी गहरी हो गई कि शरीर के यह कैसी बेहूदगी है! यह कैसा नाटक है! और कोई भी ऊपर से रोएं-रोएं ने इसको स्वीकार कर लिया और शरीर स्त्रैण हो गया। देखेगा, तो ऐसा ही लगेगा। साधना के छः महीने के बाद भी रामकृष्ण को छः महीने लग गए लेकिन राहुल सांकृत्यायन को कुछ भी पता नहीं है कि भीतर, | वापस ठीक से पुरुष होने में। ये सारे लक्षण विदा होने में फिर छ: भक्त के भीतर क्या घटित हो रहा है। यह जो उसका स्त्रैण रूप है महीने और लगे। ऊपर से, यह तो उसके भीतर की घटना की अभिव्यक्ति मात्र है। वह भक्त का अर्थ है, प्रेयसी का भाव। इसलिए कृष्ण जो भी गुण, भीतर से भी स्त्रैण हो रहा है। और आप जानकर हैरान होंगे, लक्षण बता रहे हैं, वे सब स्त्रैण हैं। कभी-कभी भक्त इस जगह पहुंच गए हैं, जब कि उनकी भाव की क्या आपने कभी खयाल किया कि दुनिया के सभी धर्मों ने, चाहे स्त्रैणता इतनी गहरी हो गई कि उनके शरीर के अंग तक स्त्रैण हो गए। वे भक्त-संप्रदाय हों या न हों, जिन गुणों को मूल्य दिया है, वे स्त्रैण रामकृष्ण के जीवन में ऐसी घटना घटी। वह अनूठी है। क्योंकि हैं। चाहे महावीर उसको अहिंसा कहते हों। चाहे बुद्ध उसको करुणा रामकृष्ण एक बड़ा मूल्यवान प्रयोग किए। वह प्रयोग था कि उन्होंने कहते हों। चाहे जीसस उसको प्रेम कहते हों। ये सब स्त्रैण गण हैं। एक मार्ग से तो परमात्मा को जाना। जानने के बाद दूसरे मार्गों से स्त्री अगर पूरी तरह प्रकट हो, तो ये गुण उसमें होंगे। चलकर भी जानने की कोशिश की, कि दूसरे मार्गों से भी वहीं | । इसलिए इस विचार के कारण जर्मनी के गहन विचारक फ्रेडरिक पहुंचा जा सकता है या नहीं! तो उन्होंने आठ-दस मार्गों का प्रयोग नीत्शे ने तो बुद्ध, क्राइस्ट, इन सबको स्त्रैण कहा है। और कहा है किया। उसमें एक यह भक्ति-मार्गियों का पंथ भी था, जिसमें स्त्री कि इन्हीं लोगों ने सारी दुनिया को बर्बाद कर दिया। क्योंकि ये जो
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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