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ॐ भक्ति और स्त्रैण गुण व
सकती है थोड़ी। लेकिन जैसे ही आप निकट आएंगे, भनक टूटने | पुरुष बिना उपयोग किया हुआ पड़ा है। और जब ऊपर की स्त्री लगेगी। जितना निकट आएंगे, उतना ही डिसइलूजनमेंट, उतना ही | | कमजोर हो जाती है, तो भीतर का पुरुष धक्के मारने लगता है और भ्रम टूट जाएगा।
प्रकट होने लगता है। इसलिए धन्यभागी वे प्रेमी हैं, जो अपनी प्रेयसियों से कभी नहीं | पुरुष चुक जाता है पचास साल में अपने पौरुष से। और भीतर मिल पाते हैं, क्योंकि उनका भ्रम बना रहता है। अभागे वे प्रेमी हैं, की स्त्री अनचुकी, ताजी बनी रहती है। वह प्रकट होनी शुरू हो जिनको उनकी प्रेयसियां मिल जाती हैं, क्योंकि भ्रम टूट जाता है। जाती है। मिली हुई प्रेयसी ज्यादा देर तक प्रिय नहीं रह जाती। मिला हुआ प्रेमी यह जो पचास साल की उम्र के बाद अंतर पड़ता है, यह बड़ा ज्यादा देर तक प्रिय नहीं रह जाता। क्योंकि भ्रम टूटेगा ही। तालमेल | जटिल है। और इसके कारण हजारों कठिनाइयां पैदा होती हैं। थोड़ा-बहुत हो सकता है। वह भी आभास है।
क्योंकि जिंदगीभर आप पुरुष रहे, तो आपने पुरुष के गुणों की तरह जुंग कहता है कि जब तक भीतर आपकी स्त्री और आपके पुरुष | अपने को सजाया, संवारा, सुशिक्षित किया। और अचानक आपके का अंतर-मिलन न हो जाए, तब तक आप अतृप्त रहेंगे और तब | | भीतर फर्क होता है, नई दुनिया शुरू होती है। उसकी कोई ट्रेनिंग तक कामवासना आपको पकड़े रहेगी।
नहीं, उसका कोई प्रशिक्षण नहीं। इसको हमने युगनद्ध कहा है। तंत्र की भाषा में भीतर जब स्त्री | | जुंग ने सलाह दी है कि पैंतालीस साल के स्त्री-पुरुषों को हमें और पुरुष का मिलन हो जाता है, उसे हमने युगनद्ध कहा है। वह | | फिर से स्कूल भेजना चाहिए, क्योंकि उनके भीतर एक क्रांतिकारी जो मिलन है, उस मिलन के साथ ही आप अद्वैत हो जाते हैं; एक फर्क हो रहा है, जिसकी उनके पास कोई तैयारी नहीं है। और हो जाते हैं; दो नहीं रह जाते। और वह जो एक की घटना भीतर | जिसकी उनके पास तैयारी है, वह व्यर्थ हो रहा है और एक नई घटती है, वही परमात्मा का मिलन है।
घटना घट रही है। और जब तक हम इस बात को पूरा न कर पाएं, अभी आप दो हैं। इसका मनोवैज्ञानिक यह पहलू भी समझ लेना | जुंग कहता है, लोग ज्यादा मात्रा में विक्षिप्त होते रहेंगे। जरूरी है कि जो आप ऊपर होते हैं, उससे विपरीत आप भीतर होते | ___ पैंतालीस साल की उम्र खतरनाक उम्र है। उसके बाद सारी हैं। ऊपर पुरुष, तो भीतर स्त्री। ऊपर स्त्री, तो भीतर पुरुष।। | मानसिक बीमारियां शुरू होती हैं। लेकिन पैंतालीस साल की उम्र ___एक और मजेदार घटना मनोवैज्ञानिकों के खयाल में आती है ही धार्मिक होने की उम्र भी है।
और वह यह किं जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, आप में विपरीत लक्षण __ और जुंग ने कहा है कि मेरे पास जितने मरीज आते हैं मन के, प्रकट होने लगते हैं। जैसे स्त्रियां पचास के करीब पहुंच-पहुंचकर उनमें अधिक की उम्र पैंतालीस के ऊपर है या पैंतालीस के करीब पुरुष जैसी होने लगती हैं। अनेक स्त्रियों को मूंछ के बाल, दाढ़ी के | | है। और उनमें अधिक की बीमारी यही है कि उनके जीवन में धर्म बाल उगने शुरू हो जाते हैं। उनकी आवाज पुरुषों जैसी भर्राई हुई | नहीं है। अगर धर्म होता, तो वे पागल न होते। हो जाती है। उनके गुण पुरुषों जैसे हो जाते हैं। उनका शरीर भी। यह जो कृष्ण अर्जुन को कह रहे हैं, भक्ति का जो मार्ग, इसमें धीरे-धीरे पुरुषों के करीब पहुंचने लगता है।
वे स्त्रैण गुणों की चर्चा कर रहे हैं। और अर्जुन जैसा पुरुष खोजना पचास के बाद पुरुषों में स्त्रैणता आनी शुरू हो जाती है। उनमें | | मुश्किल है। यह विरोधाभासी लगता है। अर्जुन है क्षत्रिय; पुरुषों गुण स्त्रियों जैसे होने शुरू हो जाते हैं।
में पुरुष। हजारों-हजारों साल में वैसा पुरुष होता है। उससे यह मनोवैज्ञानिक कहते हैं, इसका अर्थ यह है कि जो आपके | स्त्रैण गुणों की बात! निश्चित ही प्रश्न उठाती है। ऊपर-ऊपर था, जिंदगीभर आपने उसका उपयोग करके चुका | | लेकिन अगर मेरी बात आपके खयाल में आ गई, तो उसका लिया। और जो भीतर दबा था, वह बिना चुका रह गया। इसलिए | मतलब यह है कि अर्जुन का पुरुष तो चुक ही जाने को है। और आप ऊपर से कमजोर हो गए हैं और भीतर की बात प्रकट होनी | | जीवन के अंतिम हिस्से में जब अर्जुन का पुरुष चुक जाएगा, तब शुरू हो गई है।
उसकी स्त्री प्रकट होनी शुरू होगी। वह जो विपरीत दबा पड़ा है, वह एक स्त्री पचास साल तक स्त्री के तल पर चुक जाती है, समाप्त बाहर आएगा। और उस विपरीत से ही धर्म का मार्ग बनेगा। एक। हो जाती है। उसने उपयोग कर लिया स्त्री-ऊर्जा का और भीतर का दूसरी बात यह भी खयाल में ले लेनी जरूरी है कि स्त्रैण होने
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