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0 गीता दर्शन भाग-60
यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न कांक्षति । आप स्त्री और पुरुष दोनों हैं एक साथ। फिर अंतर क्या है? शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः ।। १७ ।। अंतर केवल अनुपात का है। जो पुरुष है, वह साठ प्रतिशत पुरुष समः शत्रौ च मित्रे च तथा मानापमानयोः।
है, चालीस प्रतिशत स्त्री है। जो स्त्री है, वह साठ प्रतिशत स्त्री है, शीतोष्णसुखदुःखेषु समः संगविवर्जितः।।१८।। चालीस प्रतिशत पुरुष है। यह अनुपात का भेद होगा। लेकिन आप और जो न कभी हर्षित होता है,न द्वेष करता है, न सोच पुरुष हैं, तो आपके भीतर छिपी हुई स्त्री है। और आप स्त्री हैं, तो करता है, न कामना करता है तथा जो शुभ और अशुभ आपके भीतर छिपा हुआ पुरुष है। संपूर्ण कमों के फल का त्यागी है, वह भक्तियुक्त पुरुष इस सदी के बहुत बड़े विचारक, बड़े मनोवैज्ञानिक कार्ल गुस्ताव मेरे को प्रिय है।
जुंग ने पश्चिम में इस विचार को पहली दफा स्थापित किया। पूरब और जो पुरुष शत्रु-मित्र में और मान-अपमान में सम तथा | में तो यह विचार बहुत पुराना है। हमने अर्धनारीश्वर की मूर्ति बनाई, सर्दी-गर्मी और सुख-दुखादिक द्वंद्वों में सम है और सब जिसमें शंकर आधे स्त्री हैं और आधे पुरुष हैं। वह हजारों साल संसार में आसक्ति से रहित है, वह मेरे को प्रिय है। पुरानी हमारी धारणा है। और वह धारणा सच है। लेकिन जुंग ने
पहली दफा पश्चिम में इस सदी में इस विचार को बल दिया कि
कोई परुष परुष नहीं. कोई स्त्री स्त्री नहीं. दोनों दोनों हैं। पहले कुछ प्रश्न। एक मित्र ने पूछा है, परमात्मा के इसके बहुत गहरे अर्थ हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि अगर आप प्रेमी भक्त के जो बहुत-से गुण और लक्षण इस पुरुष हैं, तो आपको स्त्री के प्रति जो आकर्षण मालूम होता है, वह अध्याय में कहे गए हैं, वे सब के सब स्त्रैण गुण वाले आकर्षण आपके भीतर छिपी हुई स्त्री के लिए है। और इसलिए इस हैं। इसका क्या कारण है? और समझाएं कि केवल दुनिया में किसी भी स्त्री से आप तृप्त न हो पाएंगे। क्योंकि जब तक स्त्रैण गुणों पर जोर देने में क्या जीवन का असंतुलन आपको अपने भीतर की स्त्री से मिलना न हो जाए, तब तक कोई निहित नहीं है? जीवन के विराट संतुलन में स्त्रैण व तृप्ति उपलब्ध नहीं हो सकती। पौरुष गुणों के सम्यक योगदान का महत्व भक्ति-योग __ और स्त्री हैं अगर आप, तो पुरुष का जो आकर्षण है, और पुरुष के संदर्भ में क्या है?
की जो तलाश है, वह कोई भी पुरुष आपको संतुष्ट न कर पाएगा। सभी पुरुष असफल हो जाएंगे। क्योंकि जब तक आपके भीतर छिपे
पुरुष से आपका मिलन न हो जाए, तब तक वह खोज जारी रहेगी। 97 क्ति का मार्ग स्त्री का मार्ग है। लेकिन इसका यह अर्थ | असल में हर आदमी अपने भीतर छिपी हुई स्त्री या पुरुष को 01 नहीं कि पुरुष उस मार्ग पर नहीं जा सकते हैं। लेकिन बाहर खोज रहा है। कभी-कभी किसी-किसी में उसकी झलक
पुरुष को भी जाना हो, तो उसके मन में परमात्मा के प्रति | | मिलती है, तो आप प्रेम में पड़ जाते हैं। प्रेम का एक ही अर्थ है कि प्रेयसी वाली भावदशा चाहिए। भक्ति के मार्ग पर पुरुष भी स्त्री आपके भीतर जो स्त्री छिपी है, उसकी झलक अगर आपको किसी होकर ही प्रवेश करता है। इसे थोड़ा गहराई में समझ लेना जरूरी है। स्त्री में मिल जाती है, तो आप प्रेम में पड़ जाते हैं।
पहली बात तो यह समझ लेनी जरूरी है कि न तो कोई स्त्री पूरी इसलिए जब आप प्रेम में पड़ते हैं, तो न तो कोई तर्क होता है, स्त्री है और न कोई पुरुष पूरा पुरुष। दोनों दोनों में मौजूद हैं। होंगे | न कोई कारण होता है। आप कहते हैं, बस, मैं प्रेम में पड़ गया। ही। उसके कारण हैं। क्योंकि चाहे आप परुष हों और चाहे स्त्री. | आप कहते हैं. मेरे वश में नहीं है यह बात। आपके भीतर की स्त्री आपकी बनावट स्त्री और पुरुष दोनों से हुई है। आप अकेले नहीं | से जब भी बाहर की किसी स्त्री का कोई भी तालमेल हो जाता है। हो सकते हैं। न तो पुरुष के बिना आप हो सकते हैं और न स्त्री के |
| लेकिन यह तालमेल ज्यादा देर नहीं चल सकता। क्योंकि यह बिना आप हो सकते हैं। दोनों का दान है आप में। आप दोनों का तालमेल पूरा कभी भी नहीं हो सकता। आपके भीतर जैसी स्त्री मिलन हैं। दोनों आपके भीतर मौजूद हैं। आपकी मां भी मौजूद है, | | पृथ्वी पर कहीं है ही नहीं। वह आपके भीतर ही छिपी है। आपके आपके पिता भी।
भीतर जैसा पुरुष पृथ्वी पर कहीं है नहीं। किसी में भनक मिल
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