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सामूहिक शक्तिपात ध्यान ... 159
जीवन की अनंत गहराइयां / हृदय का द्वार खोलना जरूरी / भय के कारण वंचित रह जाएंगे / क्रांति के लिए साहस जुटाना / खाई-खंदकों में जीता हुआ आदमी / बीमारियों को छोड़ने का साहस / मैं तुमसे तुम्हारे सब रोग छीनना चाहता हूं / बीमारियां आदतों से ज्यादा नहीं / क्रोध, पीड़ा, विक्षिप्तता का भीतरी ज्वालामुखी / विक्षिप्तता को आकाश में फेंकने की विधि / यह समर्पण का प्रयोग है / बुद्धिमानी की यहां जरूरत नहीं / मुझे अपने भीतर प्रवेश करने का मौका दें / कचरे का जलना और सोने का निखार / अहंकार के प्रतीक फूल को नीचे गिराना / अहंकार बाधा है / मैं ऊर्जा के तूफान की तरह आपको झकझोर डालूंगा / आपको कुछ नहीं करना है / शक्ति के स्पर्श का पहला लक्षण–सांस का तेज हो जाना / सांस के माध्यम से विराट से जुड़ जाना / पूरे शरीर में नई ऊर्जा का प्रवाह / अनेक शारीरिक अभिव्यक्तियां / बीस मिनट के पहले चरण में-एकटक मेरी तरफ देखना / रोना, चिल्लाना, चीखना, कंपना-जो हो-होने देना / दूसरे बीस मिनट में अचानक जैसे के तैसे स्थिर हो जाना है / आंख बंद / दूसरे चरण में मौन में आपका रूपांतरण करूंगा / अपूर्व, अनजानी शांति का अनुभव / तीसरे बीस मिनट में अहोभाव की अभिव्यक्ति-उत्सव मनाना / दूसरों पर ध्यान मत देना / नहीं तो मुझसे-ध्यान से-चूक जाएंगे / तीन चरण का प्रयोग/ अंतरंग बातें बिना प्रयोग के समझना असंभव / लोगों के मंतव्य का भय / धर्म प्रयोगात्मक है / बिना प्रयोग का निर्णय गलत / इस प्रयोग को घर में भी करते रहें / मैं उपलब्ध रहूंगा / परमात्मा और साधक के संपर्क से दुबारा जन्म / ध्यान हो-स्नान जैसा-रोज का कृत्य / मन के निर्मल दर्पण में परमात्मा की छवि / परमात्मा कोई सिद्धांत नहीं अनुभव है / यहां अमृत की तरफ एक इशारा हमने किया।
आधुनिक मनुष्य की साधना ... 167
क्या बंदरों की तरह उछल-कूद से ध्यान उपलब्ध हो सकेगा? / भीतर के बंदर का विसर्जन जरूरी / मनोवेगों का दमन खतरनाक / रोने की कला / स्क्रीम थैरेपीः रुदन-चीत्कार चिकित्सा / सक्रिय ध्यान से आंतरिक रेचन / सभ्यता–दमन की एक लंबी प्रक्रिया / प्राचीन ध्यान पद्धतियां और आज की सभ्यता / हमारी सेवा : एक संस्मरण / मैं एक चिकित्सक हूं / खेल-कूद में विद्यार्थियों का रेचन / काम, क्रोध, हिंसा आदि का सृजनात्मक रूपांतरण / प्रयोग करें और अनुभव लें/ आनंद की कुंजी-बच्चों जैसी सरलता / सस्ती बुद्धिमानी से बचना / प्रभु प्राप्ति से शांति और आनंद मिल जाएगा, तो फिर हम क्या करेंगे? / परम लक्ष्य है-कुछ न-करने में विश्राम / अहोभाव व आनंद से निकलने वाला सहज कृत्य / दो तरह की नावें-पतवार वाली और पाल वाली / पर-भाव का खोना-स्व-भाव का बचना / भाषा, जाति, राष्ट्र, धर्म-सब बाहरी सिखावन / स्वभाव अर्थात जो छीना न जा सके। आपके विरोधी सूर्योदय गौड़ के खिलाफ कुछ किया क्यों नहीं जाता? / वे मेरा ही काम कर रहे हैं / विरोध का आकर्षण / विरोध से सत्य निखरता है / दूसरी विरोधी ः श्रीमती निर्मला देवी श्रीवास्तव / व्यर्थ से छुटकारा पाने का उपाय / गांधी की आलोचना-गांधीवादियों से छुटकारे का उपाय / दो कामः गलत लोगों को हटाना और सही लोगों को बुलाना / सत्य सभी का उपयोग कर लेता है / निरहंकारी ही निंदा-स्तुति के पार / निंदा से अहंकार को चोट / दूसरों के मंतव्य पर बनी हमारी प्रतिमा / अहंकार समाज का दान है | भक्त या साधक दूसरों के मंतव्यों को आधार नहीं बनाता / हमारी दूसरों में उत्सुकता / झूठ को दूसरों के सहारे की जरूरत / मननशील-विधायक को खोज लेने वाला / परमात्मा जैसा भी रखे / सभी परिस्थिति में राजी / पत्नी के मरने पर च्यांगत्जू का खंजरी बजाना और गाना / भक्ति निष्काम होनी चाहिए / भक्ति-भाव, प्रेम, हृदय का मार्ग/स्त्रैण चित्त जरूरी / अत्यंत शांत और निष्काम भाव-दशा चाहिए।