________________
में तैरने जैसा / परमात्मा में बहने जैसा / परमात्मा को प्रिय व्यक्ति के कुछ और लक्षण / किसी की उद्विग्नता का कारण न बनना / कृष्ण, बुद्ध, जीसस से भी लोगों को तकलीफ / हम उद्विग्न होने के कारण खोजते रहते हैं / अनुद्विग्न व्यक्ति-प्रतिक्रिया से मुक्त / दूसरे के सुख में सुख हो, तो ही दुख में दुख होगा /.मैं के मिटते ही-दुसरा भी मिट जाता / निरहंकारी-हर्ष और विषाद के पार / दुख स्वप्नवत है / भक्त-अभय को उपलब्ध / अहंकार
और इंद्रियों का जगत-मर्त्य / अमर्त्य का बोध / अभय-अर्थात मृत्यु घटती ही नहीं यह बोध / सुख की आशा-दूर में / आकांक्षारहित अर्थात जो है, उसमें तृप्त/ शुद्ध अर्थात बाहर भीतर एक-सा / निद्वंद्व से अद्वैत का मिलन / दक्षता अर्थात संसार की व्यर्थता का अनुभव / वासनाओं का त्याग प्रारंभ में ही।
ON
भक्ति
और स्त्रण गुण ... 141
भक्त के अधिकतम लक्षण स्त्रैण क्यों हैं? / भक्ति का मार्ग स्त्रैण चित्त के लिए / प्रत्येक व्यक्ति स्त्री-पुरुष दोनों / पुरुष के भीतर छिपी स्त्री / स्त्री के भीतर छिपा पुरुष / बाहर की तलाश से कभी तृप्ति न होगी / प्रेम अर्थात भीतर छिपी स्त्री का बाहर की स्त्री से थोड़ा तालमेल / स्वयं के भीतर छिपी स्त्री या पुरुष से अंतर मिलन पर ही काम-वासना से मुक्ति / पैंतालीस साल की उम्र में चित्त का बदलना / स्त्रैण का आध्यात्मिक अर्थ ः ग्राहक होना / भक्त गर्भ बन जाता है भगवान के लिए / सखी संप्रदाय में पुरुष स्त्री की तरह रहता है / गहन स्त्रैण, प्रेयसी भाव का विकास / रामकृष्ण की सखी-साधना / शरीर का स्त्रैण हो जाना / स्तन उभर आना / मासिक धर्म तक शुरू / भक्ति अर्थात प्रेयसी हूं भगवान की—यह भाव / सभी धर्म मौलिक रूप से स्त्रैण गुण वाले / स्त्रियों की लड़ाई-पुरुष जैसे होने की / पुरुष की बेचैनी और स्त्री के संतोष का जैविक कारण / विज्ञान का जन्म-पुरुष की बेचैनी से / संसार की दौड़ में पुरुष-चित्त उपयोगी / पुरुष बहिर्गामी-स्त्री अंतर्गामी / अंतर्यात्रा के लिए स्त्रैण गुणों का विकास जरूरी / काम-वासना के पार कैसे जाएं? / वासना दुष्पूर है-अनुभवियों ने कहा है / अनुभव से गुजरना जरूरी / अनुभव से वासना क्षीण / पुनरावृत्ति . से ऊब का जन्म / गहन अनुभव / अनुभव से व्यर्थता का बोध-सुनकर नहीं / दूसरे के अनुभव कोई काम के नहीं / न घबड़ाएं और न जल्दी करें। परमात्मा का निहित प्रयोजन / सभी जानने वाले वासना से मुक्त हो गए हैं / संसार एक विद्यापीठ है / वासना की आग से गुजर कर निखार / वासना का इंद्रधनुष / पकने के लिए समय जरूरी / पूरा-पूरा उतरो / ध्यानपूर्वक काम-कृत्य / परमात्मा की खोज का आरंभ भी क्या त्याज्य है? / आरंभ ही नहीं किया है, तो छोड़ोगे क्या खाक / तरह-तरह के धोखे / समस्त वासनाएं एक-जुट हो जाएं / आखिरी प्रगाढ़ वासना-परमात्मा को पाने की / एक कांटे से दूसरे कांटे को निकाला / निर्वासना में पता चलना कि परमात्मा को कभी खोया ही नहीं था / बुद्ध, महावीर, क्राइस्ट, कृष्ण के शिष्यों में कोई भी उन जैसा न हुआ, फिर भी आप गुरु-शिष्य प्रणाली पर विश्वास करते हैं? / बुद्ध के शिष्यों में सैकड़ों लोग बुद्धत्व को उपलब्ध हुए हैं / हर व्यक्ति बेजोड़ है / परमात्मा पुनरुक्त नहीं करता / मौन सिद्ध को पहचानना मुश्किल / सदगुरुओं के अलग-अलग ढंग-बोलना, गाना, नाचना, बजाना / इतिहास में सभी बुद्धों की खबर नहीं है / बुद्ध सुविख्यात राजपुत्र हैं / क्राइस्ट के शिष्य बिलकुल गरीब, बे-पढ़े-लिखे थे / झुकने की सामर्थ्य चाहिए / नदी से पीना पानी-झुक कर / जो सीखने के लिए झुके-वह शिष्य / आप हंसते क्यों हैं / भीतर दुख है इसलिए / भीतर दुख न हो, तो अकारण प्रसन्नता संभव / दुख का मूल-द्वेष / सब चिंताएं-भूत और भविष्य से / शुभ, अशुभ-सब परमात्मा पर छोड़ दिया / सतत द्वंद्वों में डोलता हमारा मन / समतावान भक्त परमात्मा को प्रिय / शक्तिपात ध्यान का प्रयोग-कल / एक फूल में अपने अहंकार को प्रोजेक्ट करें / फूल को नीचे गिरा देना / बीस मिनट एक-टक मुझे देखेंगे / जो भी हो-उसे होने देना / रोना, चीखना-चिल्लाना, हंसना—जो भी हो / आपकी सारी विक्षिप्तता को मैं खींचंगा / दूसरे बीस मिनट में स्थिर, मौन रहना / तीसरे बीस मिनट में अभिव्यक्ति–उत्सव / एक घंटे के प्रयोग में बड़ी क्रांति संभव / परमात्मा की एक झलक-और यात्रा गतिमान / छोटी-सी झलक-जन्मों-जन्मों का पाथेय।