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0 गीता दर्शन भाग-60
आकांक्षा से रहित है...।
पर जानें लोग अटकाए हुए हैं, अपनी जाने लगाए हुए हैं। और जो जिसने वासनाओं की व्यर्थता को समझ लिया और अब जो मांग है, वह विस्मृत हो जाता है। नहीं करता कि मुझे यह चाहिए। जो मिल जाता है, कहता है, बस ___ आकांक्षा का अर्थ है, जो नहीं है, उसकी खोज। आकांक्षा-मुक्ति यही मेरी चाह है। जो नहीं मिलता, उसकी चिंता नहीं है, आकांक्षा | का अर्थ है, जो है, उसमें तृप्ति। भी नहीं है।
बाहर-भीतर से जो शुद्ध है। हमें तो जो नहीं मिलता, उसका ही खयाल है। जो मिल जाता है, शुद्ध कौन है बाहर-भीतर से? शुद्ध वही है, जो बाहर-भीतर उसको हम भूल जाते हैं। आपको खयाल है! जो मिल जाता है, उसको | । एक-सा है। भीतर कुछ और है, बाहर कुछ और है, वह अशुद्ध है। आप भूल जाते हैं। जो नहीं मिलता है, उसका खयाल बना रहता है। शुद्ध का क्या अर्थ होता है? आप कब कहते हैं, पानी शुद्ध है? और जब तक नहीं मिलता है, तभी तक खयाल बना रहता है। | जब पानी में पानी के अतिरिक्त और कुछ नहीं होता है, तब आप
जिस कार को आप खरीदना चाहते हैं और जब तक नहीं खरीदा उसे कहते हैं, पानी शुद्ध है। कब आप कहते हैं, दूध शुद्ध है ? जब है, तभी तक वह आपके पास है। जिस दिन आप खरीद लेंगे, उसमें दूध में सिर्फ दूध होता है और कुछ नहीं होता। शुद्ध पानी और शुद्ध बैठ जाएंगे, वह आपके पास नहीं रही; भूल गई। अब दूसरी कारें | दूध को भी मिलाएं, तो दोनों अशुद्ध हो जाते हैं। आपको दिखाई पड़ने लगेंगी, जो दूसरों के पास हैं।
यह बड़े मजे की बात है। दोनों शुद्ध थे, तो डबल शुद्ध हो जाने जिस मकान में आप हैं, वह आपको नहीं दिखाई पड़ता। वह भी | | चाहिए। लेकिन शुद्ध पानी शुद्ध दूध में मिलाओ; दोनों अशुद्ध हो दूसरों को दिखाई पड़ता है, जो फुटपाथ पर बैठे हैं। उनको दिखाई | गए। न पानी शुद्ध रहा, न दूध शुद्ध रहा। बात क्या हो गई? फारेन पड़ता है कि गजब का मकान है। काश! इसके भीतर होते, तो पता | एलिमेंट, जो विजातीय है, वह अशुद्धि पैदा करता है। जब दूध दूध नहीं कैसा आनंद मिलता! और वे भी कभी नहीं देखते कि भीतर | था; सिर्फ दूध था एकरस; सिर्फ दूध ही दूध था, बाहर-भीतर जो रह रहा है, उसकी गति भी तो देखो। उसे कोई आनंद-वानंद | एक-सा ही था, तब शुद्ध था। जब पानी एक-सा ही था, तब वह नहीं मिल रहा है। वह अलग परेशान है। इस मकान में वह रहना | | भी शुद्ध था। अब न पानी पानी रह गया, न दूध दूध रह गया। दो ही नहीं चाहता। वह किसी और मकान की खोज कर रहा है। | पैदा हो गए, द्वंद्व खड़ा हो गया।
जो नहीं है. उसका हमें खयाल है। जो है. उसे हम भल जाते हैं। जब आप भीतर-बाहर एक-से होते हैं. पानी-पानी. दध-दध। जो नहीं है, उससे दुख पाते हैं। जो है, उससे कोई सुख नहीं जो भी हैं, जैसे भी हैं-बुरे हैं, भले हैं, यह सवाल नहीं है-जैसे मिलता।
भी हैं, बाहर-भीतर एक-से होते हैं, तो आप शुद्ध होते हैं। और मैंने सुना है, एक आदमी शाक-सब्जी वाले की दुकान पर केले जब बाहर-भीतर आप दो तरह के होते हैं, जब आपके भीतर दो खरीद रहा था। और केले वाले से उसने पूछा कि कितनी कीमत आदमी होते हैं, तब वे दोनों ही अशुद्ध हो जाते हैं। बाहर-भीतर की है? तो उसने कहा, एक रुपया दर्जन। तो उस आदमी ने कहा, | समरसता, एक-सा पन शुद्धि है।
की लट कर रहे हो। सामने की दुकान पर आठ आने दर्जन कृष्ण कहते हैं, जो बाहर-भीतर शद्ध है, एक जैसा है, वह मझे मिल रहे हैं ये ही केले। तो उस दुकानदार ने कहा, बड़ी खुशी से | प्रिय है। वहीं से खरीद लें। तो उस आदमी ने कहा, लेकिन आज उसके केले | क्योंकि जो बाहर-भीतर एक-सा हो जाता है, उसके भीतर द्वंद्व खतम हो गए हैं। तो उस दुकानदार ने कहा कि जब मेरे खतम हो | | मिट गया। और जिसके भीतर द्वंद्व मिट गया, वह तैयार हो गया जाते हैं, तब तो मैं चार आने दर्जन बेचता हूं! जब मेरे भी खतम हो | | निर्द्वद्व, अद्वंद्व को अपने भीतर पहुंचाने के लिए। क्योंकि जैसे हम जाते हैं, तो मैं भी चार आने दर्जन, मैं तो चार ही आने दर्जन पर हैं, उससे ही हमारा मिलन हो सकता है। अगर हम द्वंद्व में हैं, तो बेच देता हूं फिर। वह लूट रहा है। आठ आने दर्जन बता रहा है; | अद्वैत से हमारा मिलन नहीं हो सकता है। समान से मिलता है लूट रहा है।
समान। इसलिए भीतर और बाहर एक-सां पन! __ मगर इस दुनिया में जो नहीं है, उसका भी काफी मोल-भाव चल | अगर चोर हैं, तो कोई फिक्र न करें। चोर भी परमात्मा को पा रहा है। जो नहीं है, उस पर भी हिसाब लग रहा है। जो नहीं है, उस | सकता है, लेकिन बाहर-भीतर एक-सा! यही कठिनाई है कि चोर
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