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ॐ उद्वेगरहित अहंशून्य भक्त
बाहर-भीतर एक-सा नहीं हो सकता। नहीं तो चोरी नहीं चलेगी। के लिए प्रत्येक व्यक्ति आया है। और अगर यही काम आप नहीं कर अगर वह घोषणा कर दे कि मैं चोर हूं, तो चोरी तत्क्षण समाप्त हो | पा रहे हैं, यह अनुभव नहीं कर पा रहे हैं, तो आप दक्ष नहीं हैं। और जाएगी।
जो भी दक्ष हो जाता है, वह परमात्मा के लिए प्रिय है। मैंने सुना है, एक सम्राट अपने कारागृह में गया। उसका पक्षपात से रहित, सब दुखों से छूटा हुआ, सर्व आरंभों का जन्मदिन था. और कैदियों को कछ मिठाई बांटने गया था। और हर त्यागी मेरा भक्त मुझे प्रिय है। कैदी ने कहा कि मैं बिलकुल निर्दोष हूं महाराज! जालसाजी है, मुझे आरंभ का अर्थ है, जहां से वासना शुरू होती है। अगर वासना फंसा दिया गया। यह अपराध झूठा था, गवाह झूठे थे। यह सब | छोड़नी है, तो बीच में नहीं छोड़ी जा सकती; अंत में नहीं छोड़ी जा अन्याय हो गया है। मुझे मुक्त करो। हर कैदी ने यही कहा। सकती; प्रारंभ में ही छोड़ी जा सकती है।
आखिरी कैदी के पास सम्राट पहुंचा और कहा कि तेरा क्या __ आप रास्ते से गुजरे और एक मकान आपको लगा, बहुत सुंदर खयाल है? तू भी शुद्ध है? तू भी निर्दोष है क्या?
है। अभी आपको खयाल भी नहीं है कि वासना का कोई जन्म हो उस आदमी ने कहा कि नहीं महाराज, मैं चोर हूं, और मैंने चोरी | रहा है। आप शायद सोच रहे हों कि आप बड़े सौंदर्य के पारखी हैं, की थी। और ठीक न्याययुक्त ढंग से मेरा मुकदमा चला। और बड़ा एस्थेटिक आपका बोध है, इसलिए मकान आपको सुंदर लग जिन्होंने गवाही दी, उन्होंने ठीक ही गवाही दी। और अदालत ने जो रहा है। लेकिन यह आरंभ है। जो मकान सुंदर लगा, उसके पीछे फैसला किया, वह उचित है। जितना मेरा पाप था, उसके अनुकूल थोड़ी ही देर में दूसरी बात भी लगेगी कि कब मेरा हो जाए। मझे दंड मिला है।
आरंभ हमेशा छिपा हुआ है; पता नहीं चलता। आप कहते हैं, सम्राट ने अपने आदमियों को कहा कि इस शैतान को फौरन | एक स्त्री जा रही है, कितनी सुंदर है! और आप सोचते होंगे कि जेलखाने के बाहर करो। थ्रो दिस क्रुक आउट आफ दि जेल। | चूंकि आप बड़े चित्रकार हैं, बड़े कलाकार हैं, इसलिए। लेकिन
सारे कैदी चिल्लाने लगे कि यह क्या अन्याय हो रहा है? यह | जैसे ही आपने कहा, कितनी सुंदर है, थोड़ी खोज करना, भीतर आदमी अपने मुंह से कह रहा है कि मैं चोर हूं और मुझे ठीक ही | | छिपी है दूसरी वासना, कैसे मुझे उपलब्ध हो जाए! हुआ कि दंड मिला, और हम चिल्ला-चिल्लाकर कह रहे हैं कि यह आरंभ है। अगर इस आरंभ में ही नहीं चेत गए, तो वासना हम निर्दोष हैं, और इस दोषी को जिसने खुद स्वीकार किया, उसको पकड़ लेगी। इसलिए सर्व आरंभ का त्यागी। जहां-जहां से उपद्रव आप बाहर करते हैं!
शुरू होता हो, उस उपद्रव को ही पहचान लेने वाला, और वहीं तो उस सम्राट ने कहा, उसका कारण है। अगर इस शैतान को त्याग कर देने वाला। अगर वहां त्याग नहीं हुआ, तो मध्य में त्याग हम बाहर नहीं करते, तो तुम सब निर्दोष आत्माओं को यह खराब नहीं हो सकता। मध्य से नहीं लौटा जा सकता। कर देगा।
कुछ चीजें हैं, हाथ से तीर की तरह छूट जाती हैं, फिर उनको जब कोई चोर भी इतना खुला हो जाता है, और सहज कह देता लौटाना मुश्किल है। जब तक तीर नहीं छूटा है और प्रत्यंचा पर है भीतर-बाहर एक, तो परमात्मा आप निर्दोष आत्माओं को बचाने सवार है, तब तक चाहें तो आप लौटा ले सकते हैं। के लिए उसको तत्काल अलग कर देता है। नहीं तो वह आपको आरंभ का अर्थ है, जहां से तीर छूटता है। खराब कर दे। ऐसे शैतान को यहां नहीं बचने दिया जाता। सब आरंभ का त्यागी परमात्मा को प्रिय है। __आप क्या हैं, यह सवाल नहीं है। अगर आप एकरस अभिव्यक्त पांच मिनट रुकेंगे। कोई बीच से उठे न। कीर्तन करें और फिर हो जाते हैं, जैसे हैं, तो इस जगत में आपके लिए फिर कोई जगह | जाएं। नहीं है। फिर परमात्मा के हृदय में ही आपके लिए जगह है।
दक्ष, जिस काम के लिए आया था, उसे पूरा कर चुका...।
वह जो मैं कह रहा था, उसी काम के लिए प्रत्येक व्यक्ति आया है कि वासनाओं में उतरकर जान ले कि व्यर्थ हैं। आकांक्षा करके देख ले कि जहर है। संसार में उतरकर देख ले कि आग है। इसी काम
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