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ॐ उद्वेगरहित अहंशून्य भक्त -
आप सपना देख रहे हैं बड़े दुख का, और बड़े परेशान हो रहे | | जीवन का पता भी नहीं चलता। झलक भी मिलती है, तो वह झलक हैं, और बड़ी करवटें ले रहे हैं। यह जो आपकी दशा है, इससे बुद्ध भी ऐसी लगती है कि शायद सिर्फ मौत को प्रकट करने के लिए दुखी नहीं हो रहे हैं। इससे बुद्ध सिर्फ इतना अनुभव कर रहे हैं कि | आती है। सिर्फ मौत का पता चल जाए, इसलिए जीवन की लकीर अकारण तुम दुखी हो रहे हो और इस दुख के बाहर आ सकते हो। कहीं-कहीं झलक में आती है। बाकी चारों तरफ मौत है। और जिस भांति वे बाहर आ गए हैं, वह रास्ता कह रहे हैं कि इस ___ पदार्थ का अर्थ है, मृत्यु। और इंद्रियों से पदार्थ के अतिरिक्त भांति तुम भी बाहर आ जाओगे।
किसी चीज का पता नहीं चलता। इसलिए भय पकड़ता है। वह जो कृष्ण का सूत्र कहता है, तथा जो हर्ष और अमर्ष, भय और भीतर अमृत है, जो कभी नहीं मरता, वह भी भयभीत होता है मौत उद्वेगों से रहित है...।
को चारों तरफ देखकर। चारों तरफ घटती मौत, आपको भी वहम जिसे न अब कोई हर्ष होता, न जिसे अब कोई अमर्ष होता। न | पैदा होता है कि मैं भी मरूंगा। जिसे अब कोई चीज भयभीत करती है। मौत भी नहीं। क्योंकि मौत | जो व्यक्ति इंद्रियों के पार भीतर उतरता है और देखता है, उसे भी स्वप्न है। कोई कभी मरता नहीं है, प्रतीत होता है कि हम मरते | पता चलता है कि यहां जो बैठा है, वह मरता ही नहीं। वह कभी हैं। जिसकी अंतर-दशा में ऐसा अनुभव होने लगे कि मौत भी | मरा नहीं, वह मर नहीं सकता। यह जो अमृत का बोध न होना शुरू घटित नहीं होती मुझे, मौत भी मेरे आस-पास आती है और गुजर हो जाए, तो आदमी भयभीत रहेगा। फर्क को समझ लें। जाती है, और मैं अछूता, अस्पर्शित रह जाता हूं, ऐसा व्यक्ति मुझे __ जिनको आप कहते हैं निर्भय, उनसे प्रयोजन नहीं है यहां। हम प्रिय है।
दो तरह के लोगों को जानते हैं। भयभीत, भीरु, कायर; निर्भय, महावीर ने तो अभय को पहला लक्षण कहा है, कि वही आत्मा | बहादुर। अभय तीसरी बात है। जिसको हम निर्भय कहते हैं, वह को उपलब्ध हो सकेगा, जो अभय को उपलब्ध हो जाए। भी भयभीत तो होता है, लेकिन भागता नहीं। भयभीत तो वह भी कृष्ण कहते हैं, जिसका भय नहीं रहा कोई, वह प्रभु को प्रिय है। होता है, लेकिन भागता नहीं। जिसको हम कायर कहते हैं, वह भी
लेकिन भय क्या है? एक ही भय है; सब भय की जड़ में एक भयभीत होता है, लेकिन भागता है। कायर और बहादुर में इतना ही ही भय है कि मैं मिट न जाऊं, कहीं मैं मिट न जाऊं; मौत कहीं मुझे फर्क है कि कायर भी भयभीत होता है, बहादुर भी भयभीत होता समाप्त न कर दे। बस, यही भय है सारे भय के पीछे। फिर बीमारी है; लेकिन कायर भयभीत होकर भाग खड़ा होता है, बहादुर डटा का हो, दुख का हो, सब के गहरे में मौत है।
रहता है। बाकी भयभीत दोनों होते हैं। और जब तक कोई व्यक्ति अहंकार के पार नहीं झांकता, और अभय का अर्थ है, जो भयभीत नहीं होता। उसको बहादुर नहीं इंद्रियों के पीछे नहीं देखता, तब तक मौत दिखाई पड़ती ही रहेगी। कह सकते आप, क्योंकि बहादुरी का भी कोई सवाल नहीं रहा। क्योंकि इंद्रियों के बाहर जो जगत है, वहां मौत है। जिस संसार को जब भय ही नहीं, तो बहादुरी क्या? जिसको भय ही नहीं लगता, आप आंख से देख रहे हैं, वहां मौत है। वहां वास्तविकता है मौत उसकी बहादुरी का क्या मूल्य है ? इसलिए महावीर को बहादुर नहीं की। वहां मौत ही ज्यादा वास्तविक है; जीवन तो वहां क्षणभंगुर है। कह सकते हैं। __ फूल खिला नहीं कि मुरझाना शुरू हो जाता है। बच्चा पैदा नहीं | __ अभय! अभय का अर्थ है, अब न बहादुरी रही, न कायरता हुआ कि मरना शुरू हो जाता है। वहां सब परिवर्तित हो रहा है। रही। वे दोनों खो गईं। अब इस आदमी को यह पता है कि मृत्यु परिवर्तन का अर्थ है कि प्रतिपल मौत घटित हो रही है। इंद्रियों का जहां घटती ही नहीं। अनुभव है, उस अनुभव के जगत में मृत्यु प्रतिपल घटित हो रही है। तो कृष्ण कहते हैं, वह भक्त मुझे प्रिय है, जिसे अमृत की थोड़ी वहां जीवन आश्चर्य है। मृत्यु तथ्य है। वहां जीवन संदिग्ध है। झलक मिलने लगी, जो भय के पार होने लगा।
इसीलिए तो नास्तिक कहते हैं कि जीवन है ही नहीं; सभी पदार्थ और जो पुरुष आकांक्षा से रहित है तथा बाहर-भीतर से शुद्ध है। क्योंकि मौत इतनी घटित हो रही है कि तुम कहां जीवन की बातें है, दक्ष है अर्थात जिस काम के लिए आया था, उसको पूरा कर लगा रहे हो! यहां जीवन सिर्फ सपना है तुम्हारा। यहां सब मौत है। चुका है एवं पक्षपात से रहित और दुखों से छूटा हुआ है, वह सर्व
एक लिहाज से उनके कहने में सचाई है। बाहर के जगत में आरंभों का त्यागी भक्त मुझे प्रिय है।
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