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________________ 6 उद्वेगरहित अहंशून्य भक्त - अनकांशस है। यह कपड़ा कहां फट गया? यह स्लेट कैसे टूट। जिस व्यक्ति के भीतर से दूसरों को उद्विग्न करने के कारण गई? यह किताब कैसे फट गई? | समाप्त हो जाते हैं, वह प्रतिक्रिया से, रिएक्शन से मुक्त हो जाता वह लड़के की समझ में ही नहीं आएगा, क्योंकि यह तो रोज ही है। वही लक्षण है। इसी तरह टूटती है और फटती है। पर उसकी समझ के बाहर है कि । । जिससे कोई भी जीव उद्वेग को प्राप्त नहीं होता और जो स्वयं भी यह क्या हो रहा है। और वह बिलकुल अनुभव करता है कि || किसी जीव से उद्वेग को प्राप्त नहीं होता है...। अन्याययुक्त है। लेकिन अन्याय की घोषणा और अन्याय के दूसरी घटना तभी घटेगी, जब पहली घट गई हो। अगर आप खिलाफ बगावत कहां करने जाए? एक ही रास्ता है कि मां उसको किसी के कारण नहीं बनते हैं, तो दूसरा आपका कारण बनना भी डांटे-पीटे, तो वह किताब को और फाड़ डाले, स्लेट को और तोड़ चाहे, तो भी बन नहीं सकता है। और अगर दूसरा कारण बनने में डाले, या कमरे में जाकर अपनी गुड़िया की टांग तोड़ दे और | समर्थ है अभी, तो आप समझना कि अभी पहली बात घटी नहीं चीर-फाड़कर रख दे। है। दूसरा उसका सहज परिणाम है। वह जो दफ्तर में पैदा हुआ था, गुड़िया फंसी उसमें। अब गुड़िया जब आप किसी का कारण नहीं हैं दुख देने का, तो कोई आपको का क्या लेना-देना था आपके दफ्तर में बॉस ने क्या कहा था, | दुख देना भी चाहे तो दे नहीं सकता। उससे? लेकिन यह हो रहा है चौबीस घंटे। जीसस को सूली पर लटकाया गया, तो भी जीसस ने प्रार्थना की इस सूत्र का अर्थ यह नहीं है कि आप शांत हो जाएंगे, तो आपके परमात्मा से कि इन सबको क्षमा कर देना, क्योंकि ये नहीं जानते ये कारण कोई अशांत न होगा। इस सूत्र का अर्थ है कि आप कारण क्या कर रहे हैं। ये होश में नहीं हैं। ये बेहोश हैं। इसलिए इनको मत बनना। इसका होश रखना कि मैं कारण न बनूं। पापी मत समझना और इन्हें क्षमा कर देना। और एक बड़े मजे की घटना घटती है। अगर आप कारण न बनें, यह वही आदमी ऐसी प्रार्थना कर सकता है, जिसको अब कोई तो जब दूसरा आपको जबरदस्ती कारण बना लेता है, तो आप क्रुद्ध फांसी भी दे, तो भी क्रोध का कारण नहीं पैदा कर सकता। ऐसी नहीं होते, क्योंकि आप जानते हैं कि बेचारा निकाल रहा है। इस | घटना घट जाए, तो आप प्रभु के समीप होने लगते हैं। बात को, फर्क को समझ लें। कृष्ण कहते हैं, यह मुझे प्रिय है। और जो हर्ष और अमर्ष, भय जब आप कारण नहीं बनते किसी की उद्विग्नता का, आप | व उद्वेगों से रहित है, वह भक्त मुझे प्रिय है। सचेतन रूप से कारण नहीं हैं उद्विग्नता का, और फिर कोई उद्विग्न __ हर्ष और अमर्ष, भय और उद्वेग से रहित है...। होता हो, तो आप हंस सकते हैं। और अगर आपको उसमें क्रोध | इसे थोड़ा समझें। थोड़ा बारीक, थोड़ा सूक्ष्म है। आ जाए, तो आप समझना कि आप कहीं न कहीं कारण थे। यही कोई दुखी होता है, तो आप दुखी होते हैं। किसी के घर कोई मर जांच है, और कोई जांच नहीं है। | गया, तो आपको भी आंसू आ जाते हैं। किसी का घर जल गया, __ अगर आप घर लौटें और पत्नी आप पर टट पडे: तो सच में ही तो आप सांत्वना, संवेदना प्रकट करने जाते हैं। लेकिन क्या कभी आप जरा भी उद्विग्नता का कारण नहीं हैं तो आप हंस सकेंगे। आप | आपने सोचा कि यह दुख सच्चा है या झूठा है? रिएक्ट नहीं करेंगे; आप प्रतिक्रिया नहीं करेंगे कि आप और जोर से ___ अगर यह सच्चा है, तो इसकी कसौटी एक ही है कि जब किसी उछलने-कूदने लगें और सामान तोड़ने लगें। अगर आप वह करते | का मकान बड़ा हो रहा हो, तब आप खुश हों। तो ही जलने पर हैं, तो आप कितना ही कहें कि मैं कारण नहीं हूं, आप कारण हैं। आपको दुख हो सकता है। और जब कोई जीत रहा हो, तो आप अगर आप कारण नहीं हैं, तो आप बाहर खड़े रह जाएंगे और | | प्रसन्न हों। तो ही उसकी हार से आपको पीड़ा हो सकती है। हंसेंगे कि यह पत्नी कैसी पागल की तरह काम कर रही है; होश में __कोई गरीब से धनी हो रहा हो, तो आपको हर्ष होता है? पीड़ा नहीं है! आपके मन में दया का भाव पैदा होगा, क्रोध का भाव पैदा होती है। तो फिर दूसरी बात संदिग्ध है कि कोई अमीर से गरीब हो नहीं होगा; कि बेचारी, कुछ अड़चन है, किसी ने सताया है, या | गया हो, तो आपको दुख हो। वह संदिग्ध है; वह नहीं हो सकता। दिनभर का फिजूल काम-बरतन साफ करना, रोटी बनाना-रोज | | क्योंकि जीवन का तो गणित है। और उसकी सीधी साफ लकीरें हैं। की बोरियत, उससे ऊब गई है। लेकिन आपको क्रोध नहीं आएगा। उस हिसाब में कहीं भूल-चूक नहीं है। 135
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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