SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गीता दर्शन भाग-6 में आप अकेले ही भागीदार नहीं होते, होने वाला भी उतना ही भागीदार होता है। रे एक परिचित हैं। अपने बेटे से वे हमेशा परेशान रहते हैं। तो मैंने उनके बेटे को कहा कि तेरे पिता जैसा चाहते हैं, तू वैसा ही कर। और कोई खास बात नहीं चाहते हैं, कर दे। इससे कोई तुझे नुकसान होने वाला नहीं है। उनको शांति होगी। उनके बेटे ने मुझे कहा कि आपको पता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मैं क्या करता हूं। वे जो कहते हैं, वह भी करूं, उससे भी उद्विग्न होते हैं। मैंने कहा, उदाहरण | तो उसने कहा कि जैसे अगर मैं काफी साफ-सुथरे कपड़े पहनूं, जो मुझे पसंद हैं, तो वे चार लोगों के सामने कहेंगे कि देखो, मैंने तो हड्डी तोड़-तोड़कर पैसा कमाया। शाहजादे को देखो ! मुफ्त का है। मजा करो। कर लो मजा । जिस दिन मर जाऊंगा, उस दिन भूखे मरोगे । अगर ऐसा न करो, साफ-सुथरे कपड़े न पहनो, तो भी वे खड़े होकर लोगों के सामने कहते हैं कि अच्छा! तो क्या मैं मर गया ? जब मर जाऊं, तब इस हालत में घूमना। अभी तो मजा कर लो। यह हालत आएगी, ज्यादा देर नहीं है। लेकिन अभी से तो मत यह शक्ल लेकर घूमो। मेरे सामने यह शक्ल लेकर मत आओ। तो उनके बेटे ने मुझे कहा कि बड़ी मुसीबत यह है। जो कहते हैं, अगर उसको भी मानो, तो भी उद्विग्नता में कोई फर्क नहीं पड़ता । मतलब यह हुआ कि कोई आदमी उद्विग्न होना ही चाहता है, तो कोई भी बहाना खोज सकता है। आप भी खयाल करना कि जब आप उद्विग्न होते हैं, तो जरूरी नहीं है कि दूसरे ने कारण मौजूद ही किया हो; आप अपने से भी हो सकते हैं। सुना है मैंने, मुल्ला नसरुद्दीन का एक मित्र उससे कह रहा था कि अच्छी मुसीबत में फंस गया मैं। ऐसी औरत मिल गई कि एक शब्द बोलो कि फंसे। कि फिर वह इस तरह की बातें शुरू कर देती है उस शब्द में से कि उनका कोई अंत ही नहीं आता ! मुल्ला ने कहा, यह कुछ भी । माइन इज़ ए सेल्फ स्टार्टर । तुम्हें तो शब्द बोलना भी पड़ता है। एक मेरी औरत है! बोलने की जरूरत ही नहीं है । और वह शुरू कर देती है । चुप रहना भी खतरनाक है। क्यों चुप हो ? जरूर कोई मतलब है ! खयाल करना, जरूरी नहीं है कि दूसरा कारण उपस्थित कर रहा हो। सौ में निन्यानबे मौके पर तो आप कारण की तलाश कर रहे होते हैं। उसके भी कारण हैं। दफ्तर में हैं; मालिक ने कुछ कह दिया। वहां प्रकट नहीं कर सकते | मालिक को जवाब देना मुश्किल है। वहां जरा महंगा सौदा है। नौकरी पर आ सकती है। मगर पी गए। वह पीया हुआ कहां जाएगा? उसको कहीं निकालना पड़ेगा। आप घर पहुंचकर रास्ता खोज रहे हैं कि पत्नी रोटी जलाकर ले आए; कि चाय थोड़ी ठंडी ले आए। आपको पता भी नहीं है कि आप यह रास्ता देख रहे हैं। ऐसा नहीं कि आप यह सोच रहे हैं। यह अचेतन में है। लेकिन क्रोध की एक मात्रा आपके भीतर खड़ी है । वह रास्ता खोज रही है। मालिक की तरफ न बह सकी, क्योंकि वह जरा पहाड़ी की तरफ चढ़ाई थी। इधर पत्नी की तरफ बह सकती है, यह जरा खाई की तरफ उतार है। आप किसी की तलाश में हैं, जिसकी तरफ आप बह सकें। आप कोई न कोई बहाना खोज लेंगे। और तब पत्नी चौंकेगी। क्योंकि इसी तरह की रोटी उसने कल भी खिलाई थी । और कल आप नाराज न हुए थे। और यही चाय वह सदा जिंदगी से पिला रही है। आज ! उसकी समझ के बाहर है। इसलिए कभी भी कोई किसी का क्रोध नहीं समझ पाता। क्योंकि क्रोध समझ के बाहर है। जरूरी नहीं है कि वह कारण हो । कारण कहीं और हो। न मालूम कहां हो। हजार कारण दूसरे रहे हों। सब का इकट्ठा मिलकर निकल रहा हो। उसकी समझ के बाहर है। लेकिन पति परमात्मा है, ऐसा पतियों ने समझाया हुआ है। पतियों ने पत्नियों को समझाया है हजारों साल से कि पति परमात्मा है । यह बेचारे की उसकी अपनी सुरक्षा है। क्योंकि दुनियाभर में पिटकर आता है, अगर घर में भी परमात्मा न हो, तो जीवन अकारण जा रहा है। कहीं कोई उपाय होना चाहिए, जहां वह भी अकड़कर खड़ा हो जाए कि मैं परमात्मा हूं। कई लोग उस पर अकड़ते हैं। तो पत्नी जो है, वह एक रिलीज है, वह एक सुविधा है। मगर औरतें उपद्रव खड़ा कर रही हैं अब दुनियाभर में। वे कहती हैं, यह हम न मानेंगे अब । इस मुल्क में तो अभी चलता है। तो पत्नी भी इकट्ठा कर लेती है। पति पर प्रकट नहीं कर सकती। | वह बेटे का रास्ता देखेगी, स्कूल से लौट आए। और बेटे को कुछ पता नहीं है। वे अपने मजे से चले आ रहे हैं, खेलते-कूदते । उन्हें पता नहीं है कि घर में क्या उपद्रव तैयार है। 134 घर में घुसते ही से मां टूट पड़ेगी। कोई भी बहाना खोज लेगी। बहाना ऐसा नहीं कि कोई जानकर खोज रही है। सब अचेतन है,
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy