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• उद्वेगरहित अहंशून्य भक्त
बुलाकर कहा कि सारिपुत्र, तू सब कर रहा है, सिर्फ एक चीज बाधा | ___ परमात्मा की उपलब्धि होती है बहने में। संसार की उपलब्धि डाल रही है। यह वासना, कि तुझे मुझ जैसा होना है, यही तुझे मुझ होती है तैरने में। जैसा नहीं होने दे रही है। तू यह वासना छोड़ दे।
अब हम सूत्र को लें। और जिस दिन सारिपुत्र यह वासना भी छोड़ पाया, उसी दिन तथा जिससे कोई भी जीव उद्वेग को प्राप्त नहीं होता है और जो बुद्ध जैसा हो गया।
स्वयं भी किसी जीव से उद्वेग को प्राप्त नहीं होता है तथा जो हर्ष तो परमात्मा को पाने के लिए, ज्ञानी कहते हैं, प्रयत्न भी...। और अमर्ष, भय व उद्वेगों से रहित है, वह भक्त मेरे को प्रिय है। शुरू में तो प्रयत्न करना होता है, क्योंकि हमारी आदतें खराब हैं। | और जो पुरुष आकांक्षा से रहित है तथा बाहर-भीतर से शुद्ध है, बिना प्रयत्न के हम कुछ समझ ही नहीं सकते। लेकिन उसे भी छोड़ | दक्ष है और जिस काम के लिए आया था, उसको पूरा कर चुका है देना होता है। उसका लक्ष्य भी छोड़ देना होता है। वह न मिले, तो | | एवं पक्षपात से रहित और दुखों से छूटा हुआ है, वह सर्व आरंभों भी इतना ही प्रसन्न होना होता है, जितना कि वह मिल जाए तो। यह का त्यागी मेरा भक्त मेरे को प्रिय है। महत्वाकांक्षा भी छोड़ देनी होती है कि मैं ईश्वर को खोजकर रहंगा। कृष्ण और भी लक्षण बताते हैं उसके, जो परमात्मा को प्रिय है
और जिस दिन कोई महत्वाकांक्षा नहीं होती, कोई प्रयत्न नहीं | अर्थात जो परमात्मा के निकट होता चला जाता है, समीप होता होता, और चित्त बिलकुल शांत और शिथिल होता है...। | चला जाता है। ये गुण समीप लाने वाले गुण हैं। ये गुण परमात्मा महत्वाकांक्षा नहीं है, तो अशांति होगी कैसे? कोई तनाव नहीं होता, की तरफ उन्मुख करने वाले गुण हैं। कोई दौड़ नहीं होती। कहीं पहुंचना नहीं है, ऐसी स्वीकृति विश्राम जिससे कोई भी जीव उद्वेग को प्राप्त नहीं होता है...। है। ऐसी स्वीकृति में वह उपलब्ध हो जाता है।
यह जरा जटिल है। जिसके कारण किसी को कोई अशांति पैदा संसार को पाना है, दौड़िए खूब, पागल होकर दौड़िए, शराब नहीं होती। पर इसे समझना पड़ेगा। क्योंकि ऐसे लोग मिल जाएंगे, पीकर दौडिए। परमात्मा को पाना है, तो दौड़िए ही मत। और सब जो कहेंगे, हमें कृष्ण के कारण अशांति हो रही है। ऐसे लोग मिल तरह के नशे, सब तरह की महत्वाकांक्षाएं छोड़ दीजिए। जाएंगे, जो कहेंगे कि हमें बुद्ध के कारण अशांति हो रही है। ___ अगर संसार पाना है, तो जैसे नदी में कोई तैरता है उलटी धारा | | ऐसे लोग थे। बुद्ध की हत्या करना चाहते थे। अब जो बुद्ध की
की तरफ, वैसे तैरिए। बड़ी ताकत लगानी पड़ेगी। तब भी जरूरी | | हत्या करना चाहता होगा, निश्चित ही उसे अशांति उपलब्ध हो रही नहीं कि पहुंच जाएं, क्योंकि आप अकेले नहीं तैर रहे हैं। और | | है। जिन्होंने जीसस को सूली पर लगाया, उनको परेशानी हो रही लोग भी तैर रहे हैं। और लोग भी तैर ही नहीं रहे हैं, आप न पहुंच | | थी, तभी। तो क्या जीसस ईश्वर के प्यारे नहीं थे? तब तो कृष्ण भी जाएं, इसमें भी बाधा डाल रहे हैं। और खुद पहुंच जाएं, इसका | दिक्कत में पड़ जाएंगे, क्योंकि कृष्ण से भी लोगों को अशांति हो उपाय कर रहे हैं। .
| रही है। वे भी कृष्ण को नष्ट करने के लिए पूरी कोशिश में लगे हैं। आप अकेले नहीं हैं संसार में। और भी उपद्रव आस-पास चल ___ पर यह सूत्र कहता है, तथा जिससे कोई भी जीव उद्वेग को प्राप्त रहा है बड़ा। अगर साढ़े तीन, चार अरब आदमी हैं, तो हर एक नहीं होता है। इसका मतलब समझ लें।
आदमी के खिलाफ चार अरब आदमी काम कर रहे हैं। यहां जरूरी नहीं है कि बुद्ध से आप उद्वेग को प्राप्त न हों। बुद्ध के पहुंचना इतना आसान भी नहीं है। इसमें जो बिलकुल पागल होगा, | कारण ही जरूरी नहीं है; आपके कारण भी आप उद्वेग को प्राप्त हो जिद्दी होगा, हठी होगा, जो सुनेगा ही नहीं, देखेगा ही नहीं, अंधे | | सकते हैं। शर्त इतनी है कि बुद्ध अपनी तरफ से आपको उद्विग्न नहीं की तरह दौड़ा चला जाएगा, वह ही शायद पहुंच पाए। करते हैं। मगर आप हो सकते हैं। आप अगर अपने ही कारण हो
लेकिन अगर परमात्मा में जाना है, तो तैरने जैसा नहीं है, बहने रहे हैं, तो बुद्ध का कोई जिम्मा नहीं है। लेकिन बुद्ध आपको उद्विग्न जैसा है। नदी की धार में अपने को छोड़ दिया। तैरते भी नहीं; हाथ | | करने की न तो कोई चेष्टा करते हैं, न उनका कोई रस है। न वे भी नहीं चलाते; नदी ले चली। श्वास-श्वास शांत हो गई, क्योंकि कारण बनते हैं अपनी तरफ से। अब कुछ भी करना नहीं है आपको। नदी सब कर रही है; आप आप कारण न बनें किसी के उद्विग्न होने के, यह ध्यान रखना अपने को छोड़ दिए हैं।
जरूरी है। फिर भी कोई उद्विग्न हो सकता है। क्योंकि उद्विग्न होने
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