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@ गीता दर्शन भाग-60
पीछे बिलकुल पागल होना जरूरी है। उसमें समझदारी की जरूरत | तब मिलती है। नहीं है। उसमें अंधी दौड़ की जरूरत है।
इसलिए जो बहुत सफल हो जाते हैं बाहर की दुनिया में, भीतर जो लोग बहुत धन इकट्ठा कर लेते हैं, उनको भी पागल होना | बिलकुल खाली हो जाते हैं। भीतर उनके कुछ भी नहीं बचता। जरूरी है। वहां रिलैक्सेशन से न चलेगा।
| हिटलर के पास आत्मा जैसी कोई चीज नहीं बचती। बच नहीं मित्र ने पूछा है कि क्या शांति से उपलब्धि हो जाएगी? | सकती। अगर आत्मा बचानी हो, तो हिटलर जो कर रहा है, वह
अगर शांति से संसार की उपलब्धि होती, तो फिर कोई अशांत | नहीं हो सकता। होता ही नहीं। यह सारा संसार अशांत है इसलिए कि यहां की सब धन का ढेर लगा लेना हो, तो फिर भीतर दरिद्र होना जरूरी हैं। उपलब्धि अशांति से होती है। अशांति कीमत है, संसार की भीतर की दरिद्रता आवश्यक है। क्योंकि उसी की कीमत पर मिलता उपलब्धि करनी हो तो।
है यह। इसलिए बुद्धिमान आदमी मैं उसको कहता हूं कि अगर उसको संसार में तो श्रम, विश्राम नहीं। संसार में तो अशांति, शांति संसार की उपलब्धि करनी है, तो अशांत होने के लिए तैयार है। नहीं। संसार में तो पुरुषार्थ, भाग्य नहीं। फिर वह यह नहीं कहता कि मुझे शांति चाहिए।
लेकिन परमात्मा को पाने का रास्ता बिलकुल उलटा है। होगा ही। एक मेरे मित्र हैं। कभी-कभी मिनिस्टर हो जाते हैं; कभी-कभी क्योंकि परमात्मा की दिशा उलटी है। संसार में जाते हैं बाहर की नहीं रह जाते। जब वे नहीं रह जाते, तब वे मेरे पास आते हैं। | तरफ; परमात्मा में जाते हैं भीतर की तरफ। उलटा हो जाएगा सब। साधु-संतों के पास जाते ही तब मिनिस्टर हैं, जब वे मिनिस्टर नहीं तो जिन-जिन कामों से संसार में सफलता मिलती है, उन्हीं-उन्हीं रह जाते। भूतपूर्व मिनिस्टरों से ही मिलना होता है साधु-संतों का।। | कामों से परमात्मा में असफलता मिलती है। इसे ठीक गणित की जो होते हैं, उनसे नहीं होता। और भूतपूर्व इतने हैं मुल्क में कि कोई | तरह समझ लें। और जिन कामों से परमात्मा में सहायता मिलती है, कमी नहीं है।
उन्हीं कामों से संसार में असफलता मिलती है। और दोनों में वे जब नहीं रह जाते, तो मेरे पास आते हैं। और कहते हैं, कोई | साथ-साथ सफलता नहीं मिलती है। नहीं मिल सकती है। नहीं शांति का उपाय? मैं उनको कहता हूं, लेकिन शांति की तुम्हें जरूरत मिलनी चाहिए। कहां है? और अगर तुम शांत हो गए, तो फिर तुम दुबारा मिनिस्टर अगर आप परमात्मा को पाने के लिए अशांत हो रहे हैं, तो फिर न हो सकोगे!
| आपको परमात्मा न मिलेगा। आप परमात्मा को भी संसार की एक वे कहते हैं कि नहीं, कुछ ऐसा बताएं कि शांत भी हो जाऊं, और | वस्तु की भांति समझ रहे हैं। इसलिए ज्ञानियों ने कहा है, उसे पाना अभी तो चीफ मिनिस्टर होने की कोशिश है। अशांति नहीं चाहता; | हो, तो प्रयत्न भी छोड़ देना पड़ता है। उसे पाना हो, तो उसके पाने चीफ मिनिस्टरशिप चाहता हूं।
की वासना भी छोड़ देनी पड़ती है। उसे पाना हो, तो उसको भी भूल तो मैं उनको कहता हूं, आप किसी और के पास जाएं, जो | | जाना पड़ता है। क्योंकि फिर उसकी भी खटक बनी रहे कि अभी तक आपको धोखा दे सकता हो। मैं धोखा नहीं दे सकता। मैं तो आपको नहीं मिला, अभी तक नहीं मिला, तो उससे भी बेचैनी होती है। यही कह सकता हूं, अगर चीफ मिनिस्टर होना है, तो कुशलता से बुद्ध के पास एक युवक आया, सारिपुत्र, फिर बाद में तो अशांत हों, और अशांति को स्वीकार करें। वह हिस्सा है। रास्ते पर | | महाज्ञानी हुआ। सारिपुत्र जिस दिन आया, उसने बुद्ध से कहा कि चलता है आदमी, धूल पड़ती है। वह पड़ेगी। उतनी धूल जरूरी है। | मुझे भी तुम जैसा होना है। तो बुद्ध ने कहा, यह खयाल छोड़, तो चीफ मिनिस्टर होना है, तो थोड़े ज्यादा अशांत हों, क्योंकि अभी हो सकता है। अगर यह खयाल पकड़ लिया, तो मुसीबत है। तो आप सिर्फ मिनिस्टर थे।
क्योंकि जब मैं हुआ मेरे जैसा, तो मुझे यह बिलकुल खयाल नहीं ___ संसार में तो जो भी पाना हो, उसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। स्वयं | था, इसलिए हो पाया। तू यह खयाल छोड़ दे कि तुझे बुद्ध जैसा
को बेचना पड़ेगा। स्वयं को नष्ट करना पड़ेगा। एक पैसा भी मुफ्त | होना है। नहीं मिलता है। उतनी ही आत्मा खोती है, तब मिलता है। एक सारिपुत्र अनेक वर्ष मेहनत किया, लेकिन वह खयाल नहीं सफलता भी मुफ्त नहीं मिलती है, उतना ही अस्तित्व नष्ट होता है, | | छूटता था कि मुझे भी बुद्ध जैसा होना है। तो बुद्ध ने उसे एक दिन