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उद्वेगरहित अहंशून्य भक्त
तीन महीने भी बहुत हो जाते। तीन सप्ताह में भी साधक आकर कहता कि मैं थक गया बुरी तरह। और क्या मूढ़ता आप मुझसे करवा रहे हैं!
क्योंकि आपको पता है, अगर जानकर आप क्रोध करेंगे, तो बहुत जल्दी पता चलने लगेगा कि यह मूढ़ता है। लेकिन गुरजिएफ कहता, अभी जल्दी है। अभी तुम कच्चे हो। अभी तीन ही सप्ताह हुए। लोग जन्मों-जन्मों से क्रोध कर रहे हैं, अभी तक नहीं पके । तुम जरा रुको। तुम तीन महीने चलने ही दो और गुरजिएफ दिए जाता धक्का। धीरे-धीरे साधक को मौका ही न मिलता। एक महीने अगर आपने तलाश की, तो आपको मौके मिलने कठिन हो जाएंगे कि अब कहां क्रोध करें। और जब खुद आप कर रहे हों, तो आपको खुद ही लगता है कि फिर अब यह मूर्खता करने जा रहे हैं! और इसमें कुछ सार नहीं है सिवाय दुख के, पीड़ा के, परेशानी के । जहर फैलता है। खुद की हानि होती है, किसी को कोई लाभ होता नहीं।
तो फिर गुरजिएफ इंतजाम करता। किसी को कहता कि इस आदमी का अच्छी तरह अपमान करो। ऐसे मौके पर अपमान करो कि यह भूल ही जाए और आ जाए क्रोध में वह इस तरह की डिवाइस रचता, इस तरह के उपाय करता, जिनमें आदमियों को परेशान करवाता।
अगर फिर भी वह आदमी न परेशान होता, दो महीने बीत गए, अब उपाय भी काम नहीं करते, तो गुरजिएफ शराब पिलाता, कि शायद शराब पीकर नशे में दबा हुआ कुछ निकल आए। शराब पिलाता, रात आधी रात तक शराब पिलाए चला जाता, और फिर उपद्रव खड़े करवाता।
जब तक सब उपाय से क्रोध को पूरा अनुभव न करवा देता, तब तक वह शांति का उपाय न बताता। और फिर शांति का उपाय बड़ा सरल है। क्योंकि जिसका क्रोध से उपद्रव छूट गया, उसको शांत होने के लिए उपाय नहीं करना पड़ता, वह शांत हो जाता है।
जीवन के अनुभव से बचिए मत, उतरिए । और जल्दी भी मत कर; कोई जल्दी है भी नहीं। बहुत समय है जीवन के पास ।
एक ही नुकसान है समय का, अधकचरे अनुभव आपको कहीं भी न ले जाएंगे। अगर मोक्ष चाहिए, तो संसार का परिपक्व अनुभव जरूरी है। और जल्दबाजी परमात्मा बिलकुल पसंद नहीं करता। और आधे पके फल उसके राज्य में स्वीकृत नहीं हैं। वहां पूरा पका फल होना चाहिए।
आखिरी प्रश्न । एक मित्र ने पूछा है कि आप कहते हैं कि अगर कोई व्यक्ति अपने को सब भांति परमात्मा में छोड़ दे, लीन कर दे, स्वीकार कर ले उसे, तो उसे परमात्मा मिल जाता है। क्या इसी तरह संसार की चीजें भी मिल सकती हैं?
भू
लकर ऐसा मत करना; कुछ न मिलेगा ! संसार की चीजों को पाने के लिए उपाय करना जरूरी है, श्रम करना जरूरी है, चेष्टा करनी जरूरी है, अशांत होना जरूरी है, पागल होना जरूरी है। तो जो जितना पागल है, संसार में उतना सफल होता है।
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अभी एक बहुत बड़े मनोवैज्ञानिक ने एक वक्तव्य दिया है। और उसने कहा है कि दुनिया के जितने बड़े राजनेता हैं, इन सबका मानसिक अगर परीक्षण किया जाए, तो ये विक्षिप्त पाए जाएंगे, क्योंकि इनकी सफलता हो ही नहीं सकती, अगर ये बिलकुल पागल न हों।
उस मनोवैज्ञानिक ने कहा है कि इंग्लैंड के बड़े राजनीतिज्ञ विंसटन चर्चिल की सफलता का कारण यह था कि विंसटन चर्चिल | को किसी ज्योतिषी ने बचपन में बता दिया और फिर उसे यह वहम | बैठ गया कि वह पैंतालीस साल से ज्यादा नहीं जीएगा। जिस दिन से उसको यह खयाल आ गया कि पैंतालीस साल में मेरी मौत है, | उस दिन से वह पागल की तरह कांपिटीशन में उतर गया, प्रतिस्पर्धा में। दूसरे लोग, जिनको सत्तर-अस्सी साल कम से कम खयाल था | जीने का, वे धीरे-धीरे चल रहे थे। विंसटन चर्चिल को तो तीस | साल कम थे, उसको जल्दी चलना जरूरी था। वह बिलकुल पागल की तरह चलने लगा।
उस मनोवैज्ञानिक ने कहा है कि विंसटन चर्चिल की सफलता का कुल कारण इतना था कि उसको यह खयाल आ गया था कि मेरे पास तीस साल कम हैं। इसलिए मुझे बिलकुल पूरी ताकत लगाकर पागल हो जाना चाहिए।
अभी हिटलर, विंस्टन चर्चिल, स्टैलिन, इनके मनों के अध्ययन जो प्रकाशित हो रहे हैं, उनसे पता चलता है कि ये सब विक्षिप्त थे। लेकिन ये ही विक्षिप्त थे, ऐसा नहीं; दुनिया के सभी राजनीतिज्ञ सफल अगर हो सकते हैं, तो उनको विक्षिप्त होना जरूरी है। विक्षिप्त का मतलब है कि उन्हें, वह जो कर रहे हैं, उसके