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गीता दर्शन भाग-60
वचन हमें कंठस्थ हो जाते हैं।
| की तरफ। और जब कामवासना की तरफ जाने लगते हैं, तब सब सुन लिया हमने कि इच्छाओं से मुक्त होना है। और हमने मान | | ब्रह्मचारियों की शिक्षाएं याद आती हैं। तब मन में लगता है, यह क्या भी लिया कि इच्छाओं से मुक्त होना है। और अभी इच्छाओं की | पाप कर रहा हूं? इस लगने के कारण कि क्या पाप कर रहा हूं, पाप पीड़ा हमने अनुभव नहीं की।
भी ठीक से नहीं कर पाते। पाप का अनुभव भी नहीं हो पाता। तो हम इच्छाओं में पूरे उतर भी नहीं सकते, क्योंकि यह शिक्षा अधकचरा रह जाता है सब। पीछे से खींचती है कि कहां जा रहे हो पाप में! इच्छाओं से तो बचना | __ पाप में जाते भी हैं, कर भी नहीं पाते। कोई पीछे खींचता रहता है। है। और यह शिक्षा कारगर भी नहीं होती, क्योंकि इच्छाओं से बचने पीछे खिंच भी नहीं सकते परे, क्योंकि पाप का जब तक परिपक्व का अनुभव हमारा अभी पैदा नहीं हुआ। बुद्ध को हुआ होगा। अनुभव न हो जाए, तब तक आप खिंच भी नहीं सकते, हट भी नहीं महावीर को हुआ होगा। हमको नहीं हुआ। उनका अनुभव हमारे | सकते। स्वानुभव के अतिरिक्त कोई जीवन-क्रांति नहीं है। क्या काम आएगा?
ठीक कहा होगा, जिन्होंने ब्रह्मचर्य को जाना है। ठीक कहा होगा। मझे अनभव होना चाहिए कि आग जलाती है। आप कहते हैं. और जिस दिन आप जानेंगे. आप भी कहेंगे कि ब्रह्मचर्य अमत है। आग जलाती है। मुझे कोई अनुभव नहीं है। तो मेरा हाथ खिंचता है | और आप भी लोगों को समझाएंगे कि कहां उलझ रहे हो। आग की तरफ, क्योंकि मुझे लगता है, कितने प्यारे फूल खिल रहे | स्वभावतः, जब बाप अपने बेटे को देखता है आग की तरफ हैं आग में, इन्हें पकड़ लूं। इन फूलों को सम्हाल लूं। इन फूलों को | जाते, तो कहता है, ठहर! आग मत छू लेना। जल जाएगा। वह अपनी तिजोड़ी में बंद कर दूं। ये प्यारे फूल मुझे लग रहे हैं। मैंने | | ठीक ही कहता है। गलत तो कहता नहीं। लेकिन इस बेटे को दूर से इनको देखा है।
अनुभव होने दे। अगर बाप समझदार हो, तो बेटे को पकड़ेगा, लेकिन जब मैं हाथ बढ़ाने लगता हूं, तो आपकी शिक्षा याद | आग के पास ले जाएगा, और कहेगा, थोड़ा हाथ बढ़ा, आग में आती है कि हाथ मत बढ़ाना। जल जाओगे। हाथ जल जाएगा। डाल। फिर इस बेटे को किसी शास्त्र की जरूरत न रहेगी। फिर यह आग जलाती है। यह शिक्षा मेरे हाथ को वहां तक भी नहीं पहुंचने | | बेटा खुद ही उचककर खड़ा हो जाएगा, और बाप से कहेगा, यह देती, जहां मैं जल जाऊं। और यह शिक्षा मेरा अनुभव भी नहीं क्या करते हो? हाथ जला दिया। अब यह बेटा कभी आग के पास बनती। इसलिए हाथ बढ़ता ही रहता है और आग तक पहुंचता भी न जाएगा। नहीं। बढ़ता भी है, पहुंचता भी नहीं है। ऐसे हम बीच में अटक ___ जो होशियार बाप है, वह अपने ज्ञान को बेटे को नहीं देता; जाते हैं। आपके सब अनुभव झूठे हो जाते हैं।
अपने ज्ञान के आधार पर बेटे को अनुभव का मौका देता है। इसे ___ मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं, हमें पता है कि क्रोध बुरा | ठीक से समझ लें। इसमें फर्क है। है, फिर भी क्रोध होता है।
जो सदगुरु है, वह आपको ज्ञान नहीं देता। वह आपको अनुभव यह हो नहीं सकता। अगर पता हो जाए कि क्रोध बुरा है, तो | | की सुविधा जुटाता है, सिर्फ सुविधा जुटाता है। ज्ञान तो आपको क्रोध हो नहीं सकता। आपको पता ही नहीं। सुना है। लोग कहते अपना ही होगा। वह केवल अनुभव की सुविधा जुटाता है, जहां हैं, क्रोध बुरा है। लोग कहते हैं, वह आपने सुन लिया है। उनका आपको अनुभव हो जाए। कहना आपका ज्ञान नहीं है।
गुरजिएफ के पास लोग जाते थे—पश्चिम का एक बहुत कीमती आपको ही ज्ञान करना पड़ेगा।
गुरु-तो गुरजिएफ उनको कहता था, तुम अभी शांति की फिक्र तो मैं तो कहता हूं, ठीक से क्रोध करो, ताकि जल जाओ। और छोड़ो; तुम ठीक से क्रोध कर लो। अधूरा क्रोध तुम्हें कभी शांत न एक दफा ठीक से जल जाओ, तो दुबारा उस तरफ हाथ नहीं जाएगा। | होने देगा। तो वह कहता था, तुम जितना क्रोध कर सकते हो, पहले
लेकिन आप ठीक से क्रोध भी नहीं करते हैं। और जो आदमी | | कर लो। तो वह कहता कि तीन महीने तुम्हें क्रोध की साधना के ठीक से क्रोध नहीं किया है, वह ठीक से शांत नहीं हो सकता। | | लिए। इस वक्त तुम्हें जो भी मौका मिले, तुम चूकना मत। और जो उसकी शांति में भी क्रोध की वासना छिपी रहेगी।
भी मौका मिले, तलाश में रहना। और जितना क्रोध कर सको, आग लोग कहते हैं, ब्रह्मचर्य। और आपका मन खिंचता है कामवासना | जितनी निकाल सको, जहर जितना फेंक सको, फेंकना।
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