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उद्वेगरहित अहंशून्य भक्त 0
एक दिन अचानक उनका पड़ोसी मेरे पास आया और उसने कहा एक और मित्र ने पूछा है कि यदि मनुष्य को अपनी कि डाक्टर बहुत बीमार हैं, आप जरा चलें। मैं गया तो उनका सारी इच्छाएं ही छोड़नी हैं, तो फिर जीवन का लक्ष्य जबड़ा बंद था। वे बेहोश हालत में थे। मैंने पूछा कि क्या गड़बड़ क्या है? है? फोन करके मैं डाक्टर को बुला लूं?
तो पता है आपको, उस मरते हुए डाक्टर ने मुझे क्या कहा? उसने हाथ से इशारा किया कि रुपए ? रुपए मेरे पास नहीं हैं। रुपए 1 यद उनका खयाल हो कि इच्छाओं को पूरा करना ही कौन देगा? मुंह बंद हो गया था। आंखें खुली थीं। लेकिन हाथ से शा जीवन का लक्ष्य है! इच्छाएं तो पूरी होती नहीं। कोई इशारा किया कि रुपए कौन देगा? मैंने कहा, रुपए का कोई इंतजाम इच्छा पूरी नहीं होती। एक इच्छा पूरी होती है, तो दस करेंगे। तुम फिक्र न करो।
को पैदा कर जाती है। अब तक किसी ने भी नहीं कहा है कि कोई डाक्टर को बुलाया। डाक्टर ने कहा कि तत्क्षण अस्पताल ले | इच्छा पूरी हो गई। पूरे होने के पहले ही नई संतति पैदा हो जाती है जाना पड़ेगा। यह यहां ठीक होने वाला मामला नहीं है। तो उस मरते | और शृंखला शुरू हो जाती है। हुए डाक्टर ने मुझसे कहा कि पहले ताले में चाबी लगाकर मकान __जीवन का लक्ष्य इच्छाओं को पूरा करना नहीं है। जीवन का की चाबी मुझे दो। जब चाबी उसको दे दी, तब वह एंबुलेंस में | | लक्ष्य इच्छाओं के बीच से इच्छारहितता को उपलब्ध हो जाना है। सवार हुआ।
जीवन का लक्ष्य इच्छाओं से गुजरकर इच्छाओं के पार उठ जाना है। एंबुलेंस में बिठाकर अस्पताल पहुंचाया गया। दो घंटे बाद वे | क्योंकि जैसे ही कोई व्यक्ति सभी इच्छाओं के पार उठ जाता है, मर गए। मरने के बाद उसके कुर्ते के भीतर पांच हजार रुपए | | वैसे ही उसे पता चलता है कि जीवन की परम धन्यता इच्छाओं में निकले। वह अपने पास ही रखे हुए था। और डाक्टर की पांच रुपए | | नहीं थी। इच्छाओं से तो तनाव पैदा होता था, खिंचाव पैदा होता फीस देने के लिए उसने कहा कि...।
था। इच्छाओं से तो मन दौड़ता था, थकता था, गिरता था, परेशान इसको कहता हूं पकड़। अक्सर अमीर आदमी गरीब मर जाते | | होता था। हैं। अमीर होना जरा कठिन है। अमीर होना धन से संबंधित कम इच्छाशून्यता से प्राणों का मिलन अस्तित्व से हो जाता है। है। धन की पकड़ न हो, तो आदमी अमीर होता है।
क्योंकि कोई दौड नहीं रह जाती. कोई भाग-दौड नहीं रह जाती। दो तरह के गरीब हैं दुनिया में। एक, जिनके पास धन नहीं है। | जैसे झील शांत हो जाए और कोई लहरें न हों। तो उस शांत झील एक, जिनके पास धन की पकड़ है। ये दो तरह के गरीब लोग हैं | | में जैसे चांद का प्रतिबिंब बन जाए, ऐसा ही जब इच्छाओं की कोई दुनिया में। अमीर आदमी बहुत मुश्किल है पाना।
लहर नहीं होती और हृदय शांत झील हो जाता है, तो जीवन का जो धन का उपयोग भी आप तभी कर पाते हैं, जब पकड़ न हो। | | परम रहस्य है, उसका प्रतिबिंब बनने लगता है। आप दर्पण हो जाते
तो मैं नहीं कहता कि आप धन का उपयोग न करें। पकड़ मत | | हैं। और जीवन का रहस्य आपके सामने खुल जाता है। रखें। धन साधन हो, साध्य न बन जाए। और आप धन के | __इच्छाओं के माध्यम से इच्छाशून्यता को उपलब्ध करना जीवन नौकर-चाकर न रह जाएं, कि उसी की हिफाजत कर रहे हैं, पहरा | का लक्ष्य है। दे रहे हैं, इकट्ठा कर रहे हैं और मर जाएं। और मर रहे हैं। इसके लेकिन मैं कह रहा हूं इच्छाओं के माध्यम से, तो आप जल्दबाजी सिवा आपका काम क्या है?
| भी मत करना। परिपक्वता जरूरी है। इच्छाओं को पकने देना। और लेकिन एक बात खयाल रख लें कि जिस दिशा में चलें, उस इच्छाओं से पूरे हृदयपूर्वक गुजरना, ताकि इच्छाओं का रहस्य दिशा की तकलीफों को भी स्वीकार करें। हर दिशा की तकलीफ | | समझ में आ जाए; उनकी व्यर्थता भी समझ में आ जाए; इच्छाओं है। हर दिशा का आनंद है। दोनों आपको स्वीकार करने होंगे। इनमें की मूढ़ता भी समझ में आ जाए। से आप चाहें कि एक को बचा लें और दूसरे को छोड़ दें, तो आप | लेकिन एक बड़ी कठिनाई हो गई है। हम सब अधकचरे हो गए जीवन के विज्ञान को नहीं समझते हैं।
| हैं। अधकचरे हो जाने का कारण यह है कि इसके पहले कि हमें किसी चीज का खुद अनुभव हो, दूसरों के अनुभव और दूसरे के
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