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0 गीता दर्शन भाग-60
क्या खोजती है? तो उसने कहा, मेरी सुई खो गई है। तो दूसरे लोग क्या है। नहीं तो आनंद नहीं है, यह कैसे कहते हैं आप? दुख है, भी खोजने में लग गए कि बूढ़ी की सुई मिल जाए। तब एक आदमी । | यह कैसे कहते हैं? क्योंकि जिसने कभी अंधेरा न देखा हो, वह को खयाल आया कि सूरज ढलता जाता है, अंधेरा होता जाता है। | प्रकाश को भी नहीं जान सकता। और जिसने कभी प्रकाश न देखा तो उस आदमी ने कहा कि तेरी सुई बड़ी छोटी चीज है और रास्ता | हो, वह यह भी नहीं पहचान सकता कि यह अंधेरा है। अंधेरे की बड़ा है। आखिर खोई कहां है? ठीक जगह कहां गिरी है, तो हम | पहचान के लिए प्रकाश का अनुभव चाहिए। खोज भी लें; नहीं तो सूरज ढल रहा है।
अगर आपको लगता है, यह दुख है, तो आपको कुछ न कुछ तो राबिया ने कहा, यह सवाल ही मत उठाओ, क्योंकि सुई तो | | आनंद की खबर है। तभी तो आप सोच पाते हैं कि यह वैसा नहीं मेरे घर में गिरी है, घर के भीतर गिरी है। तो वे सारे लोग खड़े हो | है, जैसा होना चाहिए। आनंद नहीं है, पीड़ा है, दुख है। गए। उन्होंने कहा, पागल औरत, अगर घर के भीतर सुई गिरी है, सभी को दुख का अनुभव होता है। इससे अध्यात्म की एक तो यहां बाहर क्यों खोजती है? तो उसने कहा, घर में प्रकाश नहीं | मौलिक धारणा पैदा होती है और वह यह कि सभी को है, बाहर प्रकाश है। और बिना प्रकाश के खोजू कैसे? इसलिए | जाने-अनजाने आनंद का अनुभव है। शायद आपको भी पता नहीं यहां खोजती हूं।
है, लेकिन आपके प्राणों की गहराई में आनंद की कोई प्रतीति है आप भी खोज रहे हैं, लेकिन आपको इसका भी खयाल नहीं है | | अभी भी। उसी से आप तौलते हैं, और पाते हैं कि नहीं, अनुकूल कि खोया कहां है। और जब तक इसका ठीक पता न हो कि नहीं है, और उसी को आप खोज रहे हैं। परमात्मा को खोया कहां है; खोया भी है या नहीं; या खोया है, तो जो आपकी गहराइयों में छिपा है, उसको ही आप खोज रहे हैं। भीतर या बाहर; तब तक खोज आपकी भटकन ही होगी। । | लेकिन खोज रहे हैं बाहर। जहां वह छिपा है, वहां नहीं खोज रहे
लेकिन आप भी राबिया की तरह हैं। राबिया भी उन लोगों से | | हैं। लेकिन बाहर खोजने का कारण वही है, जो राबिया का था। मजाक कर रही थी। और जब वे सब हंसने लगे और कहने लगे, | | वह कारण यही है कि आंखें बाहर खुलती हैं। इसलिए रोशनी पागल औरत, जब घर के भीतर सुई खोई है, तो वहीं खोज। और बाहर है। हाथ बाहर फैलते हैं, कान बाहर सुनते हैं; सारी इंद्रियां
नहीं है, तो प्रकाश वहां ले जा, बजाय इसके कि बाहर खुलती हैं। इंद्रियों का प्रकाश बाहर पड़ता है, इसलिए हम प्रकाश में खोज। क्योंकि जब उसे खोया ही नहीं, तो प्रकाश पैदा बाहर खोज रहे हैं। तो नहीं कर देगा! प्रकाश तो केवल बता सकता है, जो मौजूद हो। __हम भीतर हैं और इंद्रियां बाहर की तरफ खुलती हैं। इसलिए तो तू प्रकाश भीतर ले जा।
| इंद्रियों के द्वारा जो भी खोज है, वह आपको कहीं भी न ले जाएगी। तो राबिया ने कहा कि तुम सब मुझ पर हंसते हो, लेकिन मैं तो इंद्रियां बाहर की तरफ जाती हैं और आप भीतर की तरफ हैं। आप दुनिया की रीत से चल रही थी। मैंने सभी लोगों को बाहर खोजते इंद्रियों के पीछे छिपे हैं। आपकी संपदा पीछे छिपी है, और इंद्रियां देखा है। और बाहर खोया किसी ने भी नहीं है। मैंने सोचा कि यही | | बाहर जाती हैं। इंद्रियों का उपयोग यही है। इंद्रियां संसार से जुड़ने उचित है, दुनिया की रीत से ही चलना।
का मार्ग हैं। इसलिए बाहर की तरफ जाती हैं। आप कहां खोज रहे हैं? आनंद कहां खोज रहे हैं आप? कोई भीतर तो आंखों की जरूरत ही नहीं है, क्योंकि भीतर तो बिना धन में खोज रहा है; कोई मित्र में, कोई प्रेम में, कोई यश में, कोई आंखों के देखा जा सकता है। भीतर कान की कोई जरूरत नहीं है, प्रतिष्ठा में। वह सारी खोज बाहर है। लेकिन आपको पक्का है कि क्योंकि बिना कान के भीतर सना जा सकता है। भीतर हाथों की आपने आनंद कभी बाहर खोया है? और आप आनंद क्यों खोज | | कोई भी जरूरत नहीं है, क्योंकि बिना हाथों के भीतर स्पर्श हो जाता रहे हैं, अगर आपको आनंद का पहले कोई पता ही नहीं है तो? है। इसलिए इंद्रियों की भीतर की तरफ कोई जरूरत नहीं है। भीतर
यह जरा सोचने जैसी बात है। उस चीज की खोज नहीं हो का सब अनुभव अतींद्रिय है, इंद्रिय के बिना हो जाता है। सकती, जिसका हमें कोई पूर्व-अनुभव न हो। खोजेंगे कैसे? इंद्रियों की जरूरत संसार के लिए है। वे इंस्ट्रमेंट्स हैं, साधन हैं,
सबको लगता है कि आनंद नहीं है। इससे एक बात तो साफ है, संसार से जुड़ने के। तो जितना संसार से जुड़ना हो, उतनी सबल आपको किसी न किसी गहराई के तल पर यह पता है कि आनंद इंद्रिय चाहिए।
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