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________________ उद्वेगरहित अहंशून्य भक्त को, प्रयोजन को, सार्थकता को, क्या है अभिप्राय जीवन का, | | बात बताओ कि जैसा मैं हूं, वैसा ही परमात्मा से मिलन हो जाए; इसको नास्तिक भी खोज रहा है। ऐसा आदमी खोजना कठिन है, | | मुझे कुछ भी न करना पड़े। सरल का मतलब है, परमात्मा मुफ्त में जो परमात्मा को न खोज रहा हो। | मिल जाए। मुझे कुछ भी छोड़ना, तोड़ना, बदलना न पड़े। मैं जैसा हां, कोई गलत रास्ते पर खोज रहा हो, गलत दिशा में खोज रहा हूं, ऐसे को ही मिल जाए, यह आपकी आकांक्षा है भीतरी। हो, यह हो सकता है। लेकिन परमात्मा को खोज ही न रहा हो, यह यह कभी भी नहीं होगा। अगर यह होने वाला होता, तो बहत नहीं हो सकता। हो सकता है, अपनी खोज को वह परमात्मा का | पहले हो गया होता। आप बहुत जन्मों से यह कर रहे हैं। यह कोई नाम भी न देता हो। लेकिन सभी खोज उसी के लिए है। आनंद की आपकी नई तलाश नहीं है। काफी, लाखों साल की तलाश है। और खोज, अभिप्राय की खोज, अर्थ की खोज, उसकी ही खोज है। भूल उसमें वही है कि आप सरल रास्ता खोजते हैं, सरल व्यक्तित्व अपनी खोज उसकी ही खोज है। अस्तित्व की खोज उसकी ही खोज नहीं खोजते। आप सरल हो जाएं, रास्ता सरल है। और इसकी है। नाम हम क्या देते हैं, यह हम पर निर्भर है। फिक्र में लगें कि मैं कैसे सरल हो जाऊं। लेकिन आप सूरज को खोजने चल सकते हैं और सूरज की तरफ और जीवन-क्रांति की कोई भी प्रक्रिया शार्टकट नहीं होती। पीठ करके चल सकते हैं। तो आप हजारों मील चलते रहेंगे और | क्योंकि जो हमने अपने को उलटा करने के लिए किया है, उतना तो सूरज दिखाई नहीं पड़ेगा। और एक मजे की बात है कि आप हजारों | करना ही पड़ेगा सीधा होने के लिए। इसलिए वह बात ही छोड़ दें मील चल चुके हों, और आप पीठ फेर लें, उलटे खड़े हो जाएं, तो | सरल की, और ध्यान करें अपनी जटिलता पर। सूरज अभी आपको दिखाई पड़ जाएगा। आपकी जटिलता को समझने की कोशिश करें और आपकी इससे एक बात खयाल में ले लें। अगर सूरज की तरफ पीठ करके | जटिलता कैसे खुलेगी, एक-एक गांठ, उसको खोलने की कोशिश आप हजार मील चले गए हैं, तो आप यह मत समझना कि जब सूरज करें। जैसे-जैसे आप खुलते जाएंगे, आप पाएंगे कि परमात्मा की तरफ मुंह करके आप हजार मील चलेंगे, तब सूरज दिखाई आपके लिए खुलता जा रहा है। इधर भीतर आप खुलते हैं, उधर पड़ेगा। सूरज तो इसी वक्त मुंह फेरते ही दिखाई पड़ जाएगा। बाहर परमात्मा खुलने लगता है। जिस दिन आप भीतर बिलकुल तो परमात्मा से आप कितने दूर चले गए हैं, इससे कोई फर्क खुल गए होते हैं, परमात्मा सामने होता है। नहीं पड़ता। आप पीठ फेरने को राजी हों, तो इसी वक्त परमात्मा | बुद्ध ने कहा है...। जब उन्हें ज्ञान हुआ, और किसी ने पूछा कि दिखाई पड़ जाएगा। उसके बीच और आपके बीच दूरी वास्तविक आपको क्या मिला है? तो बुद्ध ने कहा, मुझे मिला कुछ भी नहीं नहीं है, केवल आपके पीठ के फेरने की है, सिर्फ दिशा की है। वह है। सिर्फ उसको ही जान लिया है, जो सदा से मिला हुआ था। कोई आपके साथ ही खड़ा है। वह आपके भीतर ही छिपा है। नई चीज मुझे नहीं मिल गई है। मगर जो मेरे पास ही थी और मुझे .. तो पहली तो बात यह समझ लें कि कठिनाई रास्ते की नहीं है। दिखाई नहीं पड़ती थी, उसका ही दर्शन हो गया है। इसलिए सरल रास्ते की खोज मत करें। सरल होने की खोज करें। तो बुद्ध ने कहा है कि यह मत पूछो कि मुझे क्या मिला। ज्यादा बहुत-से लोग सरल रास्ते की खोज में होते हैं। वे कहते हैं, कोई | | अच्छा हो कि मुझसे पूछो कि क्या खोया। क्योंकि मैंने खोया जरूर शार्टकट? उसमें वे बहुत धोखे में पड़ते हैं, क्योंकि परमात्मा तक है कुछ, पाया कुछ भी नहीं है। खोया है मैंने अपना अज्ञान। खोई पहुंचने का कोई शार्टकट रास्ता नहीं है। क्योंकि पीठ ही फेरनी है, है मैंने अपनी नासमझी, खोई है मैंने गलत चलने की दिशा और अब इसमें और क्या शार्टकट होगा? अगर सिर्फ पीठ फेरनी है और गलत ढंग। खोया है मैंने गलत जीवन। पाया है, कहना ठीक नहीं, परमात्मा सामने आ जाएगा, तो इससे संक्षिप्त अब और क्या क्योंकि जो पाया है, वह था ही। अब जानकर मैं कहता हूं कि यह करिएगा? इससे और संक्षिप्त नहीं हो सकता। तो सदा से मेरे पास था। सिर्फ मैं गलत था, इसलिए इससे मेरी लेकिन हम खोज में रहते हैं संक्षिप्त रास्ते की। वह क्यों? वह । | पहचान नहीं हो पाती थी। जो मेरे भीतर ही छिपा था, उस तक भी हम इसलिए खोज में रहते हैं कि कोई ऐसा रास्ता मिल जाए, जो मैं नहीं पहुंच पाता था, क्योंकि मैं कहीं और उसे खोज रहा था। सरल हो। उसका मतलब क्या? उसका मतलब, जो मुझे न बदले। सूफी फकीर औरत हुई है, राबिया। एक दिन लोगों ने देखा कि जब हम पूछते हैं सरल रास्ता, तो हम यह पूछते हैं कि कुछ ऐसी | वह रास्ते पर सांझ के अंधेरे में कुछ खोजती है। तो लोगों ने पूछा, 123
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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