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ॐ गीता दर्शन भाग-60
यस्मानोद्धिजते लोको लोकानोद्विजते च यः।
और परमात्मा तो दूर का लाभ है; चोरी का लाभ अभी और यहीं हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो यः स च मे प्रियः।।१५।। दिखाई पड़ता है। और परमात्मा है भी या नहीं, यह भी संदेह बना
अनपेक्षः शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथः । रहता है। चोरी में जो लाभ खो जाएगा, वह प्रत्यक्ष मालूम पड़ता सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्तः स मे प्रियः ।। १६ ।। है; और परमात्मा में जो आनंद मिलेगा, वह बहुत दूर की कल्पना तथा जिससे कोई भी जीव उद्वेग को प्राप्त नहीं होता है और | मालूम पड़ती है, सपना मालूम पड़ता है।
जो स्वयं भी किसी जीव से उद्वेग को प्राप्त नहीं होता है तो चोरी छोड़नी कठिन हो जाती है, हिंसा छोड़नी कठिन हो जाती तथा जो हर्ष, अमर्ष, भय और उद्वेगादिकों से रहित है, वह है, क्रोध छोड़ना कठिन हो जाता है। परमात्मा के कारण ये भक्त मेरे को प्रिय है।
कठिनाइयां नहीं हैं। ये कठिनाइयां हमारे कारण हैं। और जो पुरुष आकांक्षा से रहित तथा बाहर-भीतर से शुद्ध अगर आप सरल हो जाएं, तो रास्ता ही नहीं बचता। इतनी भी और दक्ष है अर्थात जिस काम के लिए आया था, उसको पूरा कठिनाई नहीं रह जाती कि रास्ते को पार करना हो। अगर आप कर चुका है एवं पक्षपात से रहित और दुखों से छूटा हुआ है, | सरल हो जाएं, तो आप पाते हैं कि परमात्मा सदा से आपके पास वह सर्व आरंभों का त्यागी मेरा भक्त मेरे को प्रिय है।। | ही मौजूद था; आपकी कठिनाई के कारण दिखाई नहीं पड़ता था।
रास्ता होगा, तो थोड़ा तो कठिन होगा ही। चलना पड़ेगा। लेकिन
इतना भी फासला नहीं है मनुष्य में और परमात्मा में कि चलने की पहले कुछ प्रश्न। एक मित्र ने पूछा है, भगवान को जरूरत हो। लेकिन हम बड़े जटिल हैं, बड़े उलझे हुए हैं। पाने के लिए इतना कठिन, लंबा और कष्टमय मार्ग
| मैंने सना है कि एक आदमी भागा हआ चला जा रहा था एक क्यों है? उसे पाने के लिए सुगम, सरल और राजधानी के पास। राह के किनारे बैठे एक आदमी से उसने पूछा आनंदमय मार्ग क्यों नहीं है?
कि मैं राजधानी जाना चाहता हूं, कितनी दूर होगी? तो उस आदमी ने कहा, इसके पहले कि मैं जवाब दूं, दो सवाल तुमसे पूछने जरूरी
हैं। पहला तो यह कि तुम जिस तरफ जा रहे हो, अगर इसी तरफ मार्ग कष्टमय जरा भी नहीं है। और न ही कठिन है। मार्ग | | तुम्हें राजधानी तक पहुंचना है, तो जितनी जमीन की परिधि है, 11 तो अति सुगम है, सरल है, और आनंदपूर्ण है। उतनी ही दूर होगी, क्योंकि राजधानी पीछे छूट गई है। अगर तुम
लेकिन हम जैसे हैं, उसके कारण कठिनाई पैदा होती | इसी तरफ खोजने का इरादा रखते हो, तो पूरी जमीन घूमकर जब है। कठिनाई मार्ग के कारण पैदा नहीं होती। कठिनाई हमारे कारण | | तुम लौटोगे, तो राजधानी आ पाएगी। अगर तुम लौटने को तैयार पैदा होती है। और अगर प्रभु का रास्ता लगता है कि अति कष्टों । हो, तो राजधानी बिलकुल तुम्हारे पीछे है। से भरा है, तो रास्ता कष्टों से भरा है इसलिए नहीं, हम जिन | ___ तो एक तो यह पूछना चाहता हूं कि किस तरफ जाकर राजधानी बीमारियों से भरे हैं, उनको छोड़ने में कष्ट होता है। खोजनी है? और दूसरा यह पूछना चाहता हूं कि किस चाल से ___ अड़चन हमारी है। जटिलता हमारी है। रास्ता तो बिलकुल सुगम | | खोजनी है? क्योंकि दूरी चाल पर निर्भर करेगी। अगर चींटी की है। आप अगर सरल हो जाएं, तो रास्ता बिलकुल सरल है। आप | चाल चलना हो, तो पीछे की राजधानी भी बहुत दूर है। तो तुम्हारी अगर जटिल हैं, तो रास्ता बिलकुल जटिल है। क्योंकि आप ही हैं चाल और तुम्हारी दिशा, इस पर राजधानी की दूरी निर्भर करेगी। रास्ता। आपको अपने से ही गुजरकर पहुंचना है। और आपको | परमात्मा कितना दूर है, यह आप पर निर्भर करेगा कि आप किस पहुंचना है, इसलिए आपको बदलना भी होगा।
दिशा में खोज रहे हैं, और इस पर निर्भर करेगा कि आपकी गति अब जैसे एक आदमी चोर है, तो चोरी छोड़े बिना एक इंच भी | क्या है। अगर आप गलत दिशा में खोज रहे हैं, तो बहुत कठिन वह प्रार्थना के मार्ग पर न बढ़ सकेगा। लेकिन चोरी में रस है। चोरी | है। और हम सब गलत दिशा में खोज रहे हैं। का अभ्यास है। चोरी का लाभ दिखाई पड़ता है, तो छोड़ना | मजा तो यह है कि यहां नास्तिक भी परमात्मा को ही खोज रहा मुश्किल मालूम होता है।
है। परमात्मा का अर्थ है परम आनंद को, अंतिम जीवन के अर्थ
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