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ॐ गीता दर्शन भाग-60
आदमी इतना दुखी क्यों है?
बात है। लेकिन आपने सोचा कि क्रोध आपके भीतर भी पड़ा है। इसीलिए। इसमें विरोध नहीं है। जितना सुख बढ़ेगा, उसके ही | कोई चोरी करता है, तो आप कहते हैं, पाप! बड़ा शोरगुल मचाते अनुपात में दुख भी बढ़ेगा। वे साथ ही बढ़ेंगे।
हैं। लेकिन आपने सोचा कि चोर आपके भीतर भी मौजूद है! हो ___ एक गांव का आदमी कम दुखी है, क्योंकि कम सुखी भी है। सकता है, इतना कुशल चोर हो कि आप भी नहीं पकड़ पाते। एक आदिवासी कम दुखी है। यह तो हमको भी दिखाई पड़ता है कि | पुलिस वाले तो पकड़ ही नहीं पाते, आप भी नहीं पकड़ पाते। कम दुखी है। लेकिन दूसरी बात भी आप ध्यान रखना, वह कम लेकिन क्या चोरी की वृत्ति भीतर मौजूद नहीं है? सुखी भी है। एक धनपति ज्यादा सुखी है, ज्यादा दुखी भी है। एक हत्या कोई करता है। आप नाराज होते हैं। लेकिन क्या आपने भिखमंगा कम सुखी है, कम दुखी भी है।
कई बार हत्या नहीं करनी चाही? यह दूसरी बात है कि नहीं की। जिस मात्रा में सुख बढ़ता है, उसी मात्रा में दुख बढ़ता है। वह | हजार कारण हो सकते हैं। सुविधा न रही हो, साहस न रहा हो, उसी के साथ-साथ है। वह उसी की छाया है। आप उससे भाग नहीं अनुकूल समय न रहा हो। लेकिन हत्या आपने करनी चाही है। सकते। उससे आप बच नहीं सकते।
चोरी आपने करनी चाही है। जिस दिन व्यक्ति को यह दिखाई पड़ जाता है कि सुख-दुख ऐसा कौन-सा पाप है जो आपने नहीं करना चाहा है? किया हो, दोनों एक ही चीज के दो पहलू हैं, उस दिन वह समभावी हो जाता न किया हो, यह गौण बात है। और अगर जितने पाप जमीन पर हो है। उस दिन वह कहता है कि अब इसमें सुख को चाहने और दुख रहे हैं, सब आप भी करना चाहे हैं, कर सकते थे, करने की से बचने की बात मूढ़तापूर्ण है।
संभावना है, तो इतना क्रोधित क्यों हो रहे हैं दूसरे पर?' यह तो ऐसे हुआ, जैसे मैं अपने प्रेमी को चाहता हूं और नहीं मनोवैज्ञानिक कहते हैं बड़ी उलटी बात। वे कहते हैं कि अगर चाहता कि उसकी छाया उसके साथ मेरे पास आए। और छाया को | कोई आदमी चोरी का बहुत ही विरोध करता हो, तो समझ लेना कि देखकर मैं दुखी होता हूं। और मैं कहता हूं, छाया नहीं आनी | उसके भीतर काफी बड़ा चोर छिपा है। अगर कोई आदमी चाहिए, सिर्फ प्रेमी आना चाहिए। वह प्रेमी के साथ उसकी छाया | कामवासना का बहुत ही पागल की तरह विरोध करता हो, तो समझ भी आती है। वह आएगी ही। अगर मैं छाया नहीं चाहता हूं, तो मुझे | लेना, उसके भीतर कामवासना छिपी है। क्यों? क्योंकि वह उस प्रेमी की चाह कम कर देनी पड़ेगी। और अगर मैं प्रेमी को चाहता चीज का विरोध करके अपने को भी दबाने की कोशिश कर रहा है। हूं, तो मुझे छाया को भी चाहना शुरू कर देना पड़ेगा। बस, ये दो चिल्लाता है दूसरे पर, नाराज होता है, तो उसको अपने को भी उपाय हैं।
दबाने में सुविधा मिलती है। दोनों ही अर्थों में बुद्धि सम हो जाती है। या तो सुख को भी मत। जिस चीज का आप विरोध करते हैं बहुत, गौर से खयाल करना, चाहें, अगर दुख से बचना है। और अगर सुख को चाहना ही है, तो कहीं आपके भीतर अचेतन में वह दबी पड़ी है। इसीलिए इतना जोर फिर दुख को भी उसी आधार पर चाह लें। और जिस दिन आप दोनों से विरोध कर रहे हैं। की चाह-अचाह में बराबर हो जाते हैं, उस दिन सम हो जाते हैं। लेकिन जो व्यक्ति जितना आत्म-निरीक्षण करेगा, उतना ही
कृष्ण कहते हैं, जो सम है सुख-दुख की प्राप्ति में, वह प्रभु के | क्षमावान हो जाएगा। क्योंकि वह पाएगा, ऐसा कोई पाप नहीं, जिसे लिए उपलब्ध हो जाता है।
| मैं करने में समर्थ नहीं हूं। और ऐसी कोई भूल नहीं है, जो मुझसे क्षमावान, अपराध करने वाले को भी जो अभय देने वाला है। न हो सके। तो दूसरे पर इतना नाराज होने की क्या बात है! दूसरा क्षमा बड़ी कठिन है। क्यों इतनी कठिन है? किसी को भी आप | भी मेरे जैसा ही है। वह भी मेरा ही एक रूप है। जो मेरे भीतर छिपा क्षमा नहीं कर पाते हैं। क्या कारण है ? क्योंकि आप अपने को नहीं है, वही उसके भीतर छिपा है। जानते हैं, इसलिए क्षमा नहीं कर पाते।
तो क्षमा का भाव पैदा होता है। क्षमा का मतलब यह नहीं है कि कभी आप खयाल करें अब, जिन-जिन चीजों पर आप दूसरों आप बड़े महान हैं, इसलिए दूसरे को क्षमा कर दें। वह क्षमा थोथी पर नाराज होते हैं, विचार किया आपने कि वे सब चीजें आपके है। वह तो अहंकार का ही हिस्सा है। भीतर भी छिपी पड़ी हैं। कोई क्रोध करता है, तो आप कहते हैं, बुरी ठीक क्षमा का अर्थ है कि आप पाते हैं कि सारी मनुष्यता आप
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