________________
ॐ परमात्मा का प्रिय कौन
जाती है। दोनों देखें।
में है। और मनुष्य जो करने में समर्थ है, वह आप भी समर्थ हैं। जीवन कहें या धार्मिक जीवन कहें। लेकिन ठीक जीवन का क्या मनुष्य जिस नरक तक जा सकता है, आप भी जा सकते हैं। एक अर्थ है? बात। इससे क्षमा आती है।
ये जो गुण कृष्ण ने बताए, ये हैं ठीक जीवन। अहंकारशून्यता, और दूसरी बात, कि आप जिस ऊंचाई तक पहुंच सकते हैं, सहज सबके प्रति प्रेम अकारण, क्षमा, एकाग्र चित्त-ये घटनाएं दूसरा मनुष्य भी उसी ऊंचाई तक पहुंच सकता है। दूसरी बात। अगर बिना ईश्वर के भी घट जाएं...। निकृष्टतम भी आपके भीतर छिपा है, यह बोध; और श्रेष्ठतम भी घटी हैं। महावीर ईश्वर को नहीं मानते हैं। बुद्ध तो आत्मा तक दूसरे के भीतर छिपा है, यह बोध; आपके जीवन में क्षमा का जन्म | को नहीं मानते हैं। लेकिन महावीर भगवत्ता को उपलब्ध हो गए। हो जाएगा।
जो भगवान को नहीं मानते हैं, उनको लोगों ने भगवान कहा। बुद्ध अभी हम उलटा कर रहे हैं। अभी श्रेष्ठतम हम मानते हैं हमारे | आत्मा-परमात्मा को कुछ भी नहीं मानते। और बुद्ध जैसा पवित्र, भीतर है, और निकृष्टतम सदा दूसरे के भीतर है। दूसरे का जो बुरा | और बुद्ध जैसा खिला हुआ फूल पृथ्वी पर दूसरा नहीं हुआ है। पहलू है, वह देखते हैं। और खुद का जो भला पहलू है, वह देखते ठीक जीवन पर्याप्त है। लेकिन ठीक जीवन का अर्थ यही है। हैं। इससे बड़ी तकलीफ होती है। इससे बड़ी अस्तव्यस्तता फैल | ठीक जीवन ही तो प्रभु के लिए खुलना है। ठीक जीवन के प्रति ही
तो उसका प्रेम है। गैर-ठीक जीवन में हम पीठ किए खड़े होते हैं। ___ और जिस नरक में आप दूसरे को देख रहे हैं, उसमें आप भी | ठीक जीवन में हमारा मुंह ईश्वर की तरफ उन्मुख हो जाता है।
खड़े हैं कहीं। और जिस स्वर्ग में आप सोचते हैं कि आप हो सकते | उन्मुख हो जाना उसकी तरफ ठीक जीवन है। या ठीक जीवन हो हैं, या हैं, उसमें दूसरा भी हो सकता है। तब आपके जीवन में क्षमा | जाए, तो उन्मुखता आ जाती है। अभी हम जैसे हैं, वह विमुखता है। का भाव आ जाएगा। और यह क्षमा सहज होगी। इससे कोई | पांच मिनट रुकें। कोई बीच से उठे न। कीर्तन पूरा करके जाएं। अहंकार निर्मित नहीं होगा कि मैंने क्षमा किया।
तथा जो योग में युक्त हुआ योगी निरंतर लाभ-हानि में संतुष्ट, मन और इंद्रियों सहित शरीर को वश में किए हुए मेरे में दृढ़ निश्चय वाला है, वह मेरे में अर्पण किए हुए मन-बुद्धि वाला मेरा भक्त मेरे को प्रिय है। .
परमात्मा को जो प्रिय है, वही उस तक पहुंचने का द्वार है। ये गुण विकसित करें, अगर उसे खोजना है। इन गुणों में गहरे उतरें, अगर चाहना है कि कभी उससे मिलन हो जाए। सीधे परमात्मा की भी फिक्र न की, तो भी हल हो जाएगा। अगर इतने गुण आ गए, तो परमात्मा उपलब्ध हो जाएगा।
एक मित्र ने पूछा है कि अगर हम ठीक जीवन ही जीए चले जाएं, तो क्या परमात्मा से मिलना न होगा?
बिलकुल हो जाएगा। लेकिन ठीक जीवन! ठीक जीवन का अर्थ ही धर्म है। और ये जितनी विधियां बताई जा रही हैं, ये ठीक जीवन के लिए ही हैं।
उन मित्र ने पूछा है कि धर्म की क्या जरूरत है, अगर हम ठीक जीवन जीएं?
ठीक जीवन बिना धर्म के होता ही नहीं। ठीक जीवन का अर्थ ही धार्मिक जीवन है। शब्दों का ही फासला है। कोई हर्ज नहीं, ठीक
119