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________________ परमात्मा का प्रिय कौन गया। उस दिन है कि आपके पास जो लोग आते हैं, काम से ही आते हैं, कोई | में ऐसा लगता है कि लोग क्या सोचेंगे कि अरे, इतने कृपण! ऐसे गैर-काम नहीं आता। और आप भी जिनके पास जाते होंगे, काम कंजूस कि दो पैसे न दे सके? से ही जाते होंगे, गैर-काम नहीं जाते। तो आपकी जिंदगी फिजूल भिखमंगा भी देखता है; अकेले में आपको नहीं छेड़ता। अकेले है। सिर्फ काम ही काम है या कुछ और भी है उसमें! | में आपसे निकालना मुश्किल है। चार आदमी देख रहे हों, भीड़ मैं तो चला गया कहकर; वे नाराज भी हुए होंगे, परेशान भी हुए खड़ी हो, बाजार में हों, पकड़ लेता है पैर। आपको देना पड़ता है। होंगे, सोचते भी रहे होंगे। दूसरे दिन उन्होंने मुझे बुलवाया कि मैं | | भिखमंगे को नहीं, अपने अहंकार की वजह। हेतु है वहां, कि लोग रात सो नहीं सका। तुम्हारा क्या मतलब है? सच में मुझे ऐसा लगने | | देख लेंगे, तो समझेंगे कि चलो, दयावान है। देता है। या देते हैं लगा रात, उन्होंने मुझसे कहा, कि मैंने यह पूछकर ठीक नहीं किया | | कभी, तो उसके पीछे कोई पुण्य-अर्जन का खयाल होता है। देते हैं कि कैसे आए? कभी, तो उसके पीछे किसी भविष्य में, स्वर्ग में पुरस्कार मिलेगा, __ मैंने भी कहा, कम से कम मुझे बैठ तो जाने देते। यह बात पीछे | उसका खयाल होता है। भी हो सकती थी। राम-राम तो पहले हो जाती। मुझे कुछ काम नहीं लेकिन बिना किसी कारण, हेतुरहित दया, दूसरा दुखी है है और कभी आपसे कोई काम पड़ने का काम भी नहीं है। कोई | | इसलिए! इसलिए नहीं कि आपको इससे कुछ मिलेगा। दूसरा दुखी प्रयोजन भी नहीं है। लेकिन हम सोच ही नहीं सकते....। | है इसलिए, दूसरा परेशान है इसलिए अगर दें, तो दान घटित होता फिर तो उनसे मेरा काफी संबंध हो गया। लेकिन अब भी वे मुझे | है। अगर आप किसी कारण से दे रहे हैं, जिसमें आपका ही कोई कभी मिलते हैं, तो वे कहते हैं, वह मैं पहला दिन नहीं भूल पाता, | हित है...। जिस दिन मैंने तुम से पूछ लिया कि कैसे आए? और तुमने कहा | मैं गया था एक कुंभ के मेले में। तो कुंभ के मेले में पंडित और कि सिर्फरा पजारी लोगों को समझाते हैं कि यहां दो. जितना दोगे. हजार गना से पहले मैंने कभी सोचा ही नहीं था कि बेकाम कोई आएगा! | | वहां, भगवान के वहां मिलेगा। हजार गुने के लोभ में कई नासमझ जिंदगी हमारी धंधे जैसी हो गई है। सब काम है। उसमें प्रेम. | | दे फंसते हैं। हजार गुने के लोभ में! कि यहां एक पैसा दो, वहां उसमें कुछ खेल, उसमें कुछ सहज-नहीं; कुछ भी नहीं है। । | हजार पैसा लो! यह तो धंधा साफ है। लेकिन देने के पीछे अगर स्वार्थरहित का अर्थ है, जीवन के उत्सव में सम्मिलित, | लेने का कोई भी भाव हो, तो दान तो नष्ट हो गया; धंधा हो गया, अकारण। कोई कारण नहीं है; खुश हो रहे हैं। और सदा अपने को सौदा हो गया। केंद्र नहीं बनाए हुए हैं। सारी दुनिया को सदा अपने से नहीं सोच कृष्ण कहते हैं, हेतुरहित दयालु अगर कोई हो, तो परमात्मा रहे हैं, कि मेरे लिए क्या होगा! मुझे क्या लाभ होगा! मुझे क्या | | उसमें प्रवेश कर जाता है। वह परमात्मा को प्यारा है। हानि होगी! हर चीज के पीछे अपने को खड़ा नहीं कर रहे हैं। । सब का प्रेमी...। चौबीस घंटे में अगर दो-चार घंटे भी ऐसे आपकी जिंदगी में आ | प्रेम हम भी करते हैं। किसी को करते हैं, किसी को नहीं करते जाएं, तो आप पाएंगे कि धर्म ने प्रवेश शुरू कर दिया। और आपकी हैं। तो जिसको हम प्रेम करते हैं, उतना ही द्वार परमात्मा के लिए जिंदगी में कहीं से परमात्मा आने लगा। कभी अकारण कुछ करें।। हमारी तरफ खुला है। वह बहुत संकीर्ण है। जितना बड़ा हमारा प्रेम और अपने को केंद्र बनाकर मत करें। होता है, उतना बड़ा द्वार खुला है। अगर हम सबको प्रेम करते हैं, सब का प्रेमी, हेतुरहित दयालु...। तो सभी हमारे लिए द्वार हो गए, सभी से परमात्मा हममें प्रवेश कर दया तो हम करते हैं, लेकिन उसमें हेतु हो जाता है। और हेतु सकता है। बड़े छिपे हुए हैं। लेकिन हम एक को भी प्रेम करते हैं, यह भी संदिग्ध है। सबको __ आप बाजार से निकलते हैं और एक भिखमंगा आपसे दो पैसे | | तो प्रेम करना दूर, एक को भी करते हैं, यह भी संदिग्ध है। उसमें मांगता है। अगर आप अकेले हों और कोई न देख रहा हो, तो आप | | भी हेतु है; उसमें भी प्रयोजन है। पत्नी पति को प्रेम कर रही है, उसकी तरफ ध्यान नहीं देते। लेकिन अगर चार साथी साथ में हों. क्योंकि वही सुरक्षा है, आर्थिक आधार है। पति पत्नी को प्रेम कर तो इज्जत का सवाल हो जाता है। अब दो पैसे के लिए मना करने रहा है, क्योंकि वही उसकी कामवासना की तृप्ति है। लेकिन यह 115
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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