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गीता दर्शन भाग-60
और शांति को वही प्राप्त होता है-या तो ध्यान से चले, | जाती है। जो इस विराट जगत को चारों तरफ देखता है-इसकी विचारशून्य हो जाए; या प्रेम से चले और भक्तिपूर्ण हो जाए। या | | पीड़ा को, इसके सुख को, इसके दुख को-उसे मौका भी नहीं रह तो सारे विचार समाप्त हो जाएं या सारे विचार प्रेम में डूबकर | जाता यह सोचने का कि मेरे पैर में कांटा है। स्वार्थ की जो बुद्धि प्रेममय हो जाएं और प्रेम ही रह जाए, विचार खो जाएं। या तो सब है, वह अशांति जन्माती है। विचार पिघलकर प्रेम बन जाए और या सब विचार भाप बन जाएं, इसलिए कुछ, जैसे जीसस ने सेवा पर बहुत जोर दिया। वह इसी और भीतर शून्य, शांत अवस्था रह जाए।
कारण दिया। इसलिए नहीं कि सेवा से दूसरे को लाभ होगा। वह जो पुरुष सब भूतों में द्वेषभाव से रहित...।
तो होगा, पर वह गौण है। सेवा पर इसलिए जोर दिया कि उससे तू और जैसे ही कोई शांत होगा, द्वेष समाप्त हो जाता है। या उलटा अपना खयाल भूल सकेगा। और अगर खुद का खयाल भूलता भी समझ लें। जैसे ही द्वेष समाप्त होता है, शांत हो जाता है। जब चला जाए, तो वह समर्पण बन जाता है। तक आपका द्वेष है कहीं, तब तक आप शांत नहीं हो सकते। क्योंकि तो कृष्ण कहते हैं, स्वार्थरहित जो व्यक्ति हो, वह परमात्मा के जिस से द्वेष है, वही कारण बनेगा आपके भीतर अशांति का। | लिए खुला होता है। जो स्वार्थ से भरा हो, वह बंद होता है। स्वार्थरहित, सब का प्रेमी, हेतुरहित दयालु...।
तो चौबीस घंटे में कुछ समय तो स्वार्थरहित होना सीखना क्या है हमारी अशांति? स्वार्थ। चौबीस घंटे सोचते हैं अपनी ही चाहिए। फिर धीरे-धीरे उसका आनंद आने लगेगा। कभी भाषा में।
स्वार्थरहित छोटा-मोटा कृत्य भी करके देखें। कभी किसी की तरफ सुना है मैंने, जिस दिन जीसस को सूली लगी, उस दिन उस गांव | यूं ही अकारण मुस्कुराकर देखें। में एक आदमी की दाढ़ में दर्द था। और जिस रास्ते से लोग जीसस अकारण कोई मुस्कुराता तक नहीं। हालांकि मुस्कुराहट में कुछ को ले जा रहे थे सूली चढ़ाने, उसी रास्ते पर उसका घर था। सारे | | खर्च नहीं होता। लेकिन आप तभी मुस्कुराते हैं, जब कोई मतलब गांव से वह परिचित था। लोग देखने जा रहे थे। सारे गांव में | | हो। और जब आप मुस्कुराते हैं, तो दूसरा भी सावधान हो जाता है तहलका था कि जीसस को आज सूली लग रही है। जो भी गांव का | कि जरूर कोई मतलब है। क्योंकि कोई गैर-मतलब के मुस्कुराता आदमी वहां से निकलता वह आदमी. आंख में उसके आंस थे। भी नहीं है। कोई गैर-मतलब के किसी से राम-राम भी नहीं करता। पीड़ा से कराह रहा था; क्योंकि उसकी दाढ़ में दर्द था।
गांव में लोग करते थे, अब तो धीरे-धीरे बात समाप्त वहां भी तो लोग उससे पूछते कि अरे, क्या तुम भी जीसस के प्रेमी हो? | होती जा रही है। गांव में कोई किसी से भी राम-राम कर लेता था वह कहता, भाड़ में जाए जीसस; मेरी दाढ़ में दर्द है। पूरा गांव वहां | अजनबी से भी। तो शहर का आदमी गांव जाए और कोई राम-राम से निकला। और हर आदमी ने पूछा कि अरे, कभी हमने सोचा नहीं | करे, तो वह बहुत डरता है। क्योंकि जिससे जान-पहचान नहीं, वह था कि तुम भी, जीसस से तुम्हारा कोई लगाव है! वह कहता, कैसा राम-राम क्यों कर रहा है! जरूर कोई मतलब होगा। मतलब के जीसस! कहां की बातें कर रहे हो! मेरी दाढ़ में दर्द है: रातभर से बिना तो हम राम-राम भी नहीं करते: किसी सो नहीं सका।
करते। करेंगे भी क्यों? जब कोई प्रयोजन होता है। जीसस को सूली लग रही है, वह जरा भी मूल्य नहीं है। उसकी | | मैं एक यूनिवर्सिटी में पढ़ता था। मेरे जो वाइस-चांसलर थे, दाढ़ में दर्द है, वह मूल्यवान है!
| नए-नए आए थे। तो मैं उनसे मिलने गया। जैसे ही मैं उनसे मिलने वियतनाम में हजारों लोग मरते रहे हैं, वह सवाल नहीं है। आपके | पहुंचा, उन्होंने मुझसे कहा, कैसे आए? तो मैंने कहा, जाता हूं। पैर में जरा-सा कांटा लग जाए, वह मूल्यवान है। सारी जमीन पर क्योंकि किसी काम से नहीं आया। सिर्फ राम-राम करने आया। कुछ होता रहे, आपकी जेब कट जाए, सब गड़बड़ हो गया! । उन्होंने कहा, क्या मतलब! वे थोड़े हैरान हुए कि पढ़ा-लिखा
हम जीते हैं, एक स्वार्थ का केंद्र बनाकर। और जितना ही यह । लड़का, राम-राम करने! मैंने कहा, आप अजनबी आए हैं, स्वार्थ का केंद्र मजबूत होता है, उतनी ज्यादा अशांति होती है। अपने नए-नए आए हैं। मैं आपके पड़ोस में ही हूं। पड़ोसी हैं। सिर्फ संबंध में जो जितना ज्यादा सोचता है, उतना परेशान होगा। जो राम-राम करने आया। और अब कभी नहीं आऊंगा। क्योंकि मैंने अपने संबंध में जितना कम सोचता है, उतनी परेशानी क्षीण हो यह नहीं सोचा था कि आप पूछेगे, कैसे आए? इसका मतलब यह
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