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________________ परमात्मा का प्रिय कौन में दृढ़ निश्चय वाला है, वह मेरे में अर्पण किए हुए मन-बुद्धि वाला | प्रेम अनाक्रमक होगा ही। जबरदस्ती आपकी आंख भी खोली मेरा भक्त मेरे को प्रिय है। जा सकती है कि सूरज चोट करे और आपकी आंख खोल दे। क्या है परमात्मा को प्रिय? यह प्रश्न हजारों-हजारों साल में | | लेकिन इस जगत में अस्तित्व की कोई भी व्यवस्था आक्रामक नहीं हजारों बार पूछा गया है। है। आपके लिए प्रतीक्षा करेगा। सूरज प्रतीक्षा करेगा कि खोलना क्या है परमात्मा को प्रिय? क्योंकि जो उसे प्रिय है, वही हमारे जब आंख, तब प्रकाश भर जाएगा। लिए मार्ग है। क्या है उसे प्यारा? काश! हमें यही पता चल जाए, परमात्मा के लिए प्रिय होने का यही अर्थ है कि कुछ ढंग है तो फिर हम उसके प्यारे हो सकते हैं। कैसा चाहता है वह हमें? कब व्यक्तित्व का, जब हम खुले होते हैं, रिसेप्टिव होते हैं, ग्राहक होते हमें चाह सकेगा? कब हमें समझेगा कि हम योग्य हुए उसके | हैं और परमात्मा भीतर प्रवेश कर पाता है। और कुछ ढंग है आलिंगन के? तो उसकी क्या रुझान है? उसका क्या लगाव है? व्यक्तित्व का, जब हम बंद होते हैं, और सब तरफ से द्वार, उसकी क्या पसंद है ? उसकी क्या रुचि है? वह अगर हमें पता चल दरवाजे, खिड़कियों पर ताले पड़े होते हैं, और परमात्मा जाए, तो मार्ग का पता चल गया। बाहर-बाहर भटकता रहता है, हमारे भीतर प्रवेश नहीं कर पाता। क्या है परमात्मा को प्रिय? इसमें बहुत बातें सोचने जैसी हैं। । कृष्ण इस सूत्र में कहते हैं कि वह कौन-सा ढंग है जो परमात्मा इसका यह मतलब नहीं है कि जो उसे प्रिय है, उसके साथ वह | | को प्रिय है। कैसे तुम हो जाओ कि वह तुम्हारे भीतर प्रवेश कर पक्षपात करेगा; जो उसे अप्रिय है, उसके साथ वह भेद-भाव | | जाएगा। समझें। करेगा। इसका यह मतलब नहीं है। नहीं तो हमें यह भी खयाल होता __ शांति को प्राप्त हुआ पुरुष! है कि जो उसका प्रिय है, उसके पाप भी माफ कर देगा, उसके गुनाह | | अशांत चित्त में क्या होता है? अशांत चित्त अपने में ग्रसित होता भी क्षमा हो जाएंगे। और जो उसे प्रिय नहीं है, वह पुण्य भी करे, | | है। आप रास्ते पर चलते लोगों को देखें। जितना अशांत आदमी तो पुरस्कार न पा सकेगा। | होगा, उतना ही रास्ते पर बेहोश चलता हुआ दिखाई पड़ेगा। अनेक नहीं; ऐसा नहीं है। परमात्मा के प्रिय होने का अर्थ समझ लें। | लोग खुद से बातचीत करते हुए चलते जाते हैं। होंठ हिल रहे हैं; परमात्मा के प्रिय होने का अर्थ है, एक शाश्वत नियम, ऋत। हाथ हिला रहे हैं। किससे बात कर रहे हैं? कोई वहां है नहीं उनके जिसको लाओत्से ने ताओ कहा है। परमात्मा के प्रिय होने का इतना साथ। खुद से ही, भीतर परेशान हैं। भीतर परेशानी की तरंगें चल ही अर्थ है कि वह तो हमें हर क्षण उपलब्ध है, लेकिन जब हम एक| | रही हैं। खास ढंग में होते हैं, तब हम उसके लिए खुले होते हैं और वह ___ अगर आप भी दस मिनट बैठकर अपना लिख डालें, आपके हमारे भीतर प्रवेश कर जाता है। और जब हम उस खास ढंग में नहीं | मन में क्या चलता है, तो आप खुद ही घबड़ा जाएंगे कि यह क्या होते हैं, तो वह हमारे पास ही खड़ा अटका रह जाता है, क्योंकि हम | मेरे भीतर चल रहा है! लगेगा, मैं पागल हं! आप, जो आपके अवरोध खड़ा करते हैं। भीतर चलता है, किसी को भी नहीं बताते। जिसको आप प्रेम करते ऐसे ही जैसे सूरज निकला है और मैं अपनी आंख बंद किए हैं, उसको भी नहीं बताते जो आपके भीतर चलता है। खड़ा हूं। तो सूरज निकला रहे, मैं अंधेरे में खड़ा रहूंगा। और ठीक | तो मनसविद कहते हैं कि अगर कोई आदमी अपने भीतर जो मेरी पलकों पर सूरज की किरणें नाचती रहेंगी। और प्रकाश इतने | | चलता है, सब बता दे, तो फिर दुनिया में मित्र खोजना मुश्किल है। करीब था, एक पलक झपने की बात थी और मैं प्रकाश से भर | | आप सब दबाए हैं भीतर; बाहर तो कुछ-कुछ थोड़ी-सी झलक देते जाता। लेकिन मैं आंख बंद किए हूं, तो मैं अंधेरे में खड़ा हूं। हैं। वह भी काफी दुखदायी हो जाती है। सम्हाले रहते हैं। सूरज को खुली आंखें प्रिय हैं, इसका मतलब समझ लेना। यह जो भीतर अशांति का तूफान चल रहा है, यह दीवाल है। इसका कुल मतलब इतना है कि खुली आंख हो, तो सूरज प्रवेश | इसके कारण आप परमात्मा से नहीं जुड़ पाते। आपके और कर पाता है। बंद आंख हो, तो सूरज प्रवेश नहीं कर पाता। और | | परमात्मा के बीच में एक तूफान है अशांति का, विचार का, सूरज आक्रामक नहीं है कि जबरदस्ती आपकी आंख खोल दे। विक्षिप्तता का, पागलपन का। यह हट जाए। अनाक्रमक है। कृष्ण कहते हैं, शांति को प्राप्त हुआ! 113
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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