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0 गीता दर्शन भाग-60
हुआ, वह इसको कैसे हो सकता है? और हम जैसे बुद्धिमान को | जाएगी। आप उसको कहां सम्हालकर रखेंगे? वह तो आपका भी नहीं हुआ, तो ये कबीर जैसे गैर पढ़े-लिखे आदमी को हो गया! | | दीया जल जाए, आप में भी ज्योति जल जाए, तो!
काशी के पंडितों को बड़ा शक था कि यह कबीर को हो नहीं लेकिन हम संतों के आस-पास संप्रदाय बना लेते हैं। मंदिर खड़े सकता। कैसे हो
होगा? इतने शास्त्र हम जानते हैं और हम को नहीं कर लेते हैं. मस्जिद बना लेते हैं. गरुद्वारे खडे कर लेते हैं। और हुआ! किसी के पास धन है; वह सोचता है, इतना धन मेरे पास है | | संतों को उन्हीं में दफना देते हैं। बात खतम हो गई। उनसे छुटकारा
और मुझको नहीं हुआ और इसको हो गया! जरूर कहीं कोई हो गया! गड़बड़ है। यह जुलाहा या तो बहक गया, या दिमाग इसका खराब | संतों से छुटकारे के दो रास्ते हैं, या तो उनको सूली लगा दो, हो गया!
और या उनकी पूजा करने लगो। बस, दो ही उपाय हैं उनसे छुटकारे लेकिन कबीर जैसे लोग सुनते नहीं इस तरह के लोगों की। वे | के। सूली लगाने वाला भी कहता है, झंझट मिटी। पूजा करने वाला कहे ही चले जाते हैं, कहे ही चले जाते हैं। पहले लोग हंसते हैं, | भी कहता है कि चलो, फूल चढ़ा दिए दो, झंझट मिटी, तुमसे पहले लोग अविश्वास करते हैं। फिर नहीं मानते, तो कुछ न कुछ | छुटकारा हुआ। अब हम अपने काम पर जाएं! . मानने वाले भी मिल जाते हैं। और कबीर कहे ही चले जाते हैं, तो | जरूर इतने संत हुए हैं, लेकिन कहीं कोई प्रभाव दिखाई नहीं फिर कुछ लोग कहने लगते हैं कि हो ही गया होगा! इतने दिन तक पड़ता। इसका कारण यह नहीं है कि संतों को जो हुआ था, वह आदमी कहता है।
असत्य है। इसका कारण यह है कि हम असाध्य बीमारियां हैं। लेकिन कोई भी प्रयोग करने को राजी नहीं होता है कि यह जो कितने ही संत हों, हम अपनी बीमारी को इतने जोर से पंकड़े हुए हैं कह रहा है, वह हम भी करके देख लें। क्योंकि प्रयोग करके देखने कि हम उनको असफल करके ही रहते हैं। यह हमारी सफलता का का मतलब तो जीवन को बदलना है। वह कठोर बात है। वह परिणाम है, यह जो दिखाई पड़ रहा है! हम सफल हो रहे हैं। और श्रमसाध्य है। इसलिए हम सुन लेते हैं कबीर को और उनकी वाणी | हमारी संख्या बड़ी है, ताकत बड़ी है। को संगृहीत कर लेते हैं। और फिर विश्वविद्यालय में उस पर और मजा यह है कि अज्ञान में जीने के लिए कोई श्रम नहीं करना शोधकार्य और रिसर्च और डाक्टरेट बांटते रहते हैं। बस, इतना | पड़ता। इसलिए हम उसमें मजे से जी लेते हैं। ज्ञान में जीने के लिए उपयोग होता है!
श्रम करना पड़ता है। ज्ञान चढ़ाई है पर्वत के शिखर की तरफ। हम बड़े मजे की बात है कि जो पंडित कबीर को सुनने नहीं जा सकते समतल जमीन पर मजे से बैठे रहते हैं। समतल पर भी कहना ठीक थे. वे सब पंडित विश्वविद्यालयों में डाक्टरेट कबीर पर लेकर और नहीं है। हम तो खाई की तरफ लढकते रहते हैं। वहां कोई मेहनत बड़े-बड़े पदों पर बैठ जाते हैं। कबीर को कोई विश्वविद्यालय नहीं लगती। गड्ढे की तरफ गिरने में कोई मेहनत है?. डाक्टरेट देने को राजी नहीं हो सकता था। लेकिन कबीर पर सैकड़ों श्रम से हम बचते हैं। और अध्यात्म सबसे बड़ा श्रम है। इसलिए लोग शोध करके डाक्टर हो जाते हैं। और इन डाक्टरों में से एक | दुनिया में बुद्ध होते हैं, महावीर होते हैं, क्राइस्ट, मोहम्मद होते हैं, भी, कबीर अगर मौजूद हो, तो उसके पास जाने को तैयार नहीं हो खो जाते हैं। हम मजबूत हैं, वे हमें हिला भी नहीं पाते। हम अपनी सकता। क्योंकि ये पढ़े-लिखे सुसंस्कृत लोग, यह कबीर, गैर | जगह अडिग बने रहते हैं। पढ़ा-लिखा, जुलाहा, इसके पास...!
फिर अध्यात्म के साथ कुछ कारण हैं। पहला तो कारण यह है हमें लगता है, इतने संत हुए, फिर भी दुनिया संतत्व से खाली कि अध्यात्म कोई बाह्य संपत्ति नहीं है, जो संगृहीत हो सके। अगर क्यों है?
आपके पिता मरेंगे, तो जो मकान बनाएंगे, वह आपके पास छूट संत दुनिया को संतत्व से नहीं भर सकते। संत तो केवल खबर | जाएगा। जो धन इकट्ठा करेंगे, वह आपके नाम छूट जाएगा। कोई दे सकते हैं कि यह घटना भी संभव है। और संत अपने व्यक्तित्व क्रेडिट होगी बाजार में, उसको भी आप उपयोग कर लेंगे। लेकिन से यह प्रमाणित कर सकते हैं कि उनके जीवन में वह घट गया है, | अगर आपके पिता को कोई प्रार्थना का अनुभव हुआ, तो वह कहां जिसको परमात्मा कहते हैं। लेकिन वह तो संत के साथ तिरोहित | छूटेगा! अगर कोई ज्ञान की झलक मिली, तो वह कैसे छूटेगी! हो जाएगा। दीया टूटेगा कबीर का और लौ परमात्मा में लीन हो | उसकी कहीं कोई रेखा ही न बनेगी पदार्थ पर। वह तो पिता के साथ
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