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________________ ॐ परमात्मा का प्रिय कौन तो तुमको बताए देता हूं, लेकिन किसी को कहना मत। अगर देश में प्रचार भी किया। किंतु इस सब के बावजूद भी कहा, तो मैं बदल जाऊंगा। लेकिन मैंने उन बूढ़े सज्जन से पूछा कि आज भक्ति-भाव से देश रिक्त दिखाई पड़ता है। क्या इससे तुम्हें क्या फर्क पड़ेगा कि किसने दुनिया बनाई, किसने नहीं | कारण है? बनाई ? और मैं कह दूं, हां और न। इससे तुम्हें होगा क्या? मौत करीब आ रही है, एक क्षण का कोई भरोसा नहीं है, तुम्हारे हाथ-पैर हिलने शुरू हो गए हैं। और तुम अभी बच्चों की बातों में पड़े हो? | | नरसी को, या रैदास को, या दादू को, या कबीर को कुछ फिक्र करो अपनी! UI जो मिला है, वह उनके प्रचार से आपको नहीं मिल बुद्धिमान आदमी वह है, जो अपनी फिक्र कर रहा है। नासमझ | सकता। धर्म प्रचार से नहीं मिलता। धर्म कोई वह है, जो व्यर्थ की बातों में पड़ा है। और कई बार हम समझते हैं | | राजनीति नहीं है कि प्रचार से फैला दी जाए। कि व्यर्थ की बातें बड़ी कीमती हैं, बड़ी कीमती हैं। क्या कीमत है। कबीर प्रचार करते भी नहीं। कबीर तो केवल खबर दे रहे हैं कि इस बात की? जो उन्हें मिला है, वह तुम्हें भी मिल सकता है। लेकिन कबीर के एक बात सदा ध्यान में रखें कि जो भी आप मानना चाहते हों, । | कहने से नहीं मिल जाएगा। कबीर ने जो किया है, वह तुम्हें भी जो भी करना चाहते हों, जो भी धारणा बनाना चाहते हों, उससे करना पड़ेगा, तो ही मिलेगा। आपको क्या होगा? क्या आप बदल सकेंगे? आपकी नई जिंदगी | | भक्ति दी नहीं जा सकती। ज्ञान हस्तांतरित नहीं होता। यह कोई शुरू होगी? आपका पुराना कचरा बहेगा, जल जाएगा? आपको | | दे नहीं सकता कि लो, ले जाओ; यह ज्ञान रहा। बाप मरे, तो बेटे कोई नई ज्योति मिलेगी? इसका खयाल करें। | को दे दे। गुरु मरे, तो शिष्य को दे दे। ट्रांसफरेबल नहीं है। __ अगर निराकार से मिलती हो, तो निराकार की तरफ चल पड़ें। __ अनुभव तो कबीर के साथ कबीर का मर जाएगा। जिन्होंने कबीर अगर साकार से मिलती हो, तो साकार की तरफ चल पड़ें। जहां से | की बात सुनकर कर ली होगी, उनके भीतर फिर पैदा हो जाएगा। मिलती हो आनंद की किरण, वहां चल पड़ें। चलने से यात्रा पूरी | लेकिन यह कबीर वाला ज्ञान नहीं है। यह इनका अपना ज्ञान है, जो होगी, बैठकर सोचने से यात्रा पूरी नहीं होगी। पैदा होगा। कुछ लोग जिंदगीभर विचार ही करते रहते हैं कि साकार कि कबीर के दीए से अगर आप अपना दीया जला लें, तो ही! कबीर आकार कि निराकार; निर्गुण कि सगुण; कि कृष्ण, कि राम, कि के प्रचार से नहीं। कबीर के कहने से नहीं। कबीर की किताबों को क्राइस्ट! सम्हालकर पढ़ लेने से नहीं। उससे कुछ भी न होगा। आप मूल कब तक सोचते रहेंगे? सोचने से कोई यात्रा नहीं होती। चलें। बात तो चूक ही रहे हैं। और मैं मानता हूं, गलत भी चल पड़ें, तो हर्जा नहीं है; क्योंकि - इस मुल्क में इस मुल्क में ही नहीं, सारी जमीन पर, सभी गलत से भी सीखने मिलेगा। और गलत चल पड़े, तो कम से कम मुल्कों में भक्त हुए, ज्ञानी हुए। उन्होंने जो पाया, वह कहा भी। जो चले तो। चलना तो कम से कम आ ही जाएगा, गलत रास्ते पर ही नहीं कहा जा सकता था, उसको भी कहा। जिसको कहना बिलकुल सही। वह चलना हाथ में होगा, तो कभी सही रास्ते पर भी चल असंभव था, उसको भी शब्दों में बांधने की अथक कोशिश की। सकते हैं। लेकिन साहस बिलकुल चलने का नहीं है। और हम सिर पटका आपके सामने। आपने सुना भी। पहले तो आपने कभी सिर्फ सिर में ही, खोपड़ी के भीतर ही चलते रहते हैं। उस चलने से भरोसा नहीं किया कि ये जो कहते हैं, वह ठीक होगा। कुछ भी न होगा। कौन कबीर पर भरोसा करता है? मन में आपको ऐसा ही लगा रहता है कि पता नहीं, यह आदमी होश में है या बेहोश है? यह जो कह रहा है, सच है कि झूठ है? यह जो कह रहा है, यह सपना है एक मित्र ने पूछा है, अनेक-अनेक दुर्लभ भक्त या अनुभव है? आपको यह शक तो बना ही रहता है। हुए-चैतन्य, मीरा, कबीर, रैदास, तुलसी, | आप हजार तरकीब से यह तो कोशिश करते ही रहते हैं कि कहीं नरसी-और उन्होंने व्यापक पैमाने पर भक्ति का सारे न कहीं कोई भूल-चूक कबीर से हो गई है। क्योंकि जो हमको नहीं 107
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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