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ॐ परमात्मा का प्रिय कौन 0
निराकार का अर्थ हुआ कि आप अकेले हैं; वहां कोई भी नहीं है। | को मान ही रखा है कि हम मन हैं। इसलिए मन को उतारकर रखना आपके सामने।
अपने को ही उतारकर रखना है। अपने से ही खाली हो जाना है। इसलिए अति कठिन है। कल्पना में भी दूसरा हो, तो हम | अपनी ही हत्या है। संबंधित हो पाते हैं। न भी हो वहां दूसरा, हमें सिर्फ खयाल हो कि इसलिए निराकार के साधकों ने, खोजियों ने कहा है कि जब तक दूसरा है, तो भी हम बात कर पाते हैं; तो भी हम रो पाते हैं; तो भी | | अमनी, नो-माइंड, अमन की स्थिति न हो जाए, तब तक निराकार हम नाच पाते हैं।
की बात का कोई अर्थ ही समझ में नहीं आएगा। यह मन, दूसरा हो, तो संबंधित हो जाता है, और गतिमान हो सगुण के साथ अड़चन मालूम पड़ती है, अहंकार के कारण। पाता है। दूसरा न हो, तो अवरुद्ध हो जाता है। कोई गति नहीं रह | साकार के साथ बुद्धि विवाद करती है। तो आदमी कहता है कि जाती है। इसलिए निराकार कठिन है।
नहीं, मेरे लिए तो निराकार है। यह साकार से बचने का उपाय है निराकार की कठिनाई निराकार की नहीं, आपके मन की | सिर्फ कि मेरे लिए तो निराकार है। कठिनाई है। अगर आप मन छोड़ने को राजी हों, तो निराकार फिर लेकिन पता है कि निराकार की पहली शर्त है कि अपने मन को कठिन नहीं है। फिर तो साकार कठिन है। अगर मन छोड़ने को | छोड़ें! उसी मन की मानकर तो साकार को छोड़ रहे हैं, और आप राजी हों, फिर साकार कठिन है। क्योंकि मन के बिना आकार | | निराकार की बात कर रहे हैं। और जब कोई आपको कहेगा कि नहीं बनता।
| निराकार का अर्थ हुआ कि अपने मन की आकार बनाने वाली इसका यह अर्थ हुआ कि सारा सवाल आपके मन का है। कीमिया को बंद करें, हटाएं इस मन को। तब आपको अड़चन शुरू इसलिए आप इसको ऐसा मत सोचें कि निराकार को चुनें कि हो जाएगी। आकार को चुनें। यह बात ही गलत है। आप तो यही सोचें कि मैं बहुत-से लोग हैं, जिन्होंने साकार को छोड़ दिया है निराकार के मन को छोड़ सकता हूं या नहीं छोड़ सकता हूं। अगर नहीं छोड़ पक्ष में; और निराकार में उतरने की उनकी कोई सुविधा नहीं बनती। सकता हूं, तो निराकार के धोखे में मत पड़ें। आपका निराकार झूठा जब भी कुछ छोड़ें, तो सोच लें कि जिस विपरीत के लिए छोड़ रहे होगा। फिर उचित है कि आप साकार से ही चलें। अगर आप मन हैं, उसमें उतर सकेंगे? अगर न उतर सकते हों, तो छोड़ने की जल्दी को छोड़ सकते हों, तो साकार की कोई भी जरूरत नहीं है। आप | | मत करें। निराकार में खड़े ही हो गए।
पर हम बहुत होशियार हैं। हमारी हालत ऐसी है, जैसे मैंने सुना साकार भी छूट जाता है, लेकिन क्रमशः। साकार की प्रक्रिया का | है कि एक शेखचिल्ली एक दुकान पर गया है। और उसने कहा कि अर्थ है कि धीरे-धीरे आपके मन को गलाएगा। और एक ऐसी घड़ी | यह मिठाई क्या भाव है? तो दुकानदार ने कहा, पांच रुपया सेर। तो आएगी कि मन पूरा गल जाएगा, और आप मन से छुटकारा पा उसने कहा, अच्छा, एक सेर दे दो। जाएंगे। जिस दिन मन छूटेगा, उसी दिन साकार भी छूट जाएगा। ___जब वह तौल चुका था और पुड़िया बांध चुका था और ग्राहक को जब तक मन है, तब तक साकार भी रहेगा।
दे रहा था, तब उसने कहा, अच्छा, इसे तो रहने दो। मेरा मन बदल तो साकार एक ग्रेजुअल प्रोसेस, एक क्रमिक विकास है। और गया। यह दूसरी मिठाई क्या भाव है? तो उसने कहा, यह ढाई रुपए निराकार छलांग है. सडेन. आकस्मिक। अगर आपकी तैयारी हो सेर है। तो उसने कहा. दो सेर. इसकी जगह वह तौल दो। आकस्मिक छलांग लगाने की, कि रख दिया मन और कूद गए, तो उसने दो सेर मिठाई तुलवा ली और चलने लगा। जब चलने निराकार कठिन नहीं है। पर रख सकेंगे मन? कपड़े जैसा नहीं है। | लगा, तो दुकानदार ने पूछा कि पैसे? तो उसने कहा कि मैंने तो यह कि उतारा और रख दिया। चमड़ी जैसा है; बड़ी तकलीफ होगी। | उस मिठाई के बदले में ली है; तो पैसे किस बात के? चमड़ी से भी ज्यादा तकलीफ होगी। अपनी चमड़ी निकालकर कोई | तो उस दुकानदार ने कहा, और उस मिठाई के पैसे? उसने कहा, रखता हो, उससे भी ज्यादा तकलीफ होती है, जब कोई अपने मन | जो मैंने ली ही नहीं, उसके पैसे मांगते हैं? को निकालकर रखता है। क्योंकि मन और भी चमड़ी से भी गहरा । साकार और निराकार के बीच में हम ऐसे ही गोते खाते रहते हैं। भीतर है। हड्डी-हड्डी, एक-एक कोष्ठ से जुड़ा है। और हमने अपने | जब निराकार का सवाल उठता है, तब हम कहते हैं कि नहीं, यह
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