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________________ • कर्म-योग की कसौटी 0 पहुंच जाएंगे। कुछ घबड़ाना मत कि अपनी ही तस्वीर कैसे! | लेकिन आप अपने सिर पर भी रखकर बैठे रहें, तो भी ट्रेन पर __अपना ही नाम भी, अगर आपको वही प्यारा हो, तो फिर राम का ही बोझ पड़ रहा है। आप भी झेल रहे हैं, यह मुफ्त में। इसको नीचे नाम लेने की जरूरत नहीं है। क्योंकि जो प्यारा ही नहीं है, उसको रखा जा सकता है। यह ट्रेन लिए जा रही है। लेकर कुछ फायदा नहीं होगा। प्रेम के बिना कुछ फायदा नहीं होगा। परमात्मा के ऊपर सब छोड़ते ही आप निर्बोझ हो जाते हैं। इसका __ आपको अगर अपना ही नाम जंचता हो...। सबको जंचता है।। यह अर्थ नहीं कि जो बोझ था, वह आप ढो रहे थे। आप अकारण और दिल होता है कि कहां राम-राम कर रहे हैं! अपना ही नाम | ढो रहे थे। परमात्मा उसे ढो ही रहा है। दोहराएं। कोई हर्जा नहीं है, उसी को दोहराना। और समझना कि ___ इसलिए कृष्ण कहते हैं, सब कर्म को जो छोड़ देता मेरे ऊपर, यह परमात्मा का नाम है। और आप थोड़े ही दिन में पाओगे कि | वह श्रेष्ठतम है। उसे तो फिर ध्यान की भी जरूरत नहीं है। उसे तो आप खो गए और परमात्मा बच रहा। फिर कुछ भी करने की जरूरत नहीं है। एक ही बात कर ली कि सब परोक्ष ज्ञान से मुझ परमेश्वर के स्वरूप का ध्यान श्रेष्ठ है। ध्यान हो गया। एक करने से सब हो जाता है, कि वह परमात्मा पर छोड़ से भी श्रेष्ठ है सब कर्मों के फल का मेरे लिए त्याग करना। देता है। त्याग से तत्काल परम शांति होती है। होगी ही। क्योंकि ध्यान भी आपका कर्म है। आपको लगता है, मैं ध्यान कर लेकिन त्याग का मतलब आप यह मत समझ लेना कि घर छोड़ रहा हूं। इतनी अड़चन बनी रहती है। मैं ध्यानी हूं, और मैंने ध्यान | | दिया, मकान छोड़ दिया, कपड़े छोड़ दिए, भाग गए। वह त्याग का किया परमात्मा का। तो वह भीतर मैं की सक्षम रेखा बनी रहती है। मतलब नहीं है। उस त्याग में तो त्याग आपको पकड़े ही रहेगा। इसलिए कृष्ण कहते हैं, उससे भी श्रेष्ठ है सब कर्मों के फल का और आप जहां भी जाओगे, खबर करोगे कि मैं सब त्याग करके त्याग करना। और त्याग से तत्काल ही परम शांति होती है। सब आ रहा हूं। वह मैं त्याग करके आ रहा हूं, साथ जाएगा। कर्मों के त्याग से तत्काल ही परम शांति होती है। नहीं; त्याग का गहन अर्थ है कि मैं कर नहीं रहा हूं; मैं कर भी जैसे ही कोई सब प्रभु पर छोड़ देता है, अशांत होने का सारा | | नहीं सकता हूं; जो करने वाला है, वह वही है। मैं नाहक ही बीच कारण ही खो जाता है। अगर अशांति चाहिए, तो सब अपने सिर में...। पर रखना। दूसरों का भी उतारकर अपने सिर पर रख लेना। सारी | मैंने सुना है कि रथ निकलता था पुरी में और एक छोटा कुत्ता रथ दुनिया में जो-जो तकलीफें हैं, उनको अपने सिर पर रख लेना। तो के आगे चलने लगा। और सब लोग नमस्कार कर रहे थे और रथ अशांति आपकी आप कुशलता से बढ़ा सकोगे। | के सामने गिर-गिरकर साष्टांग दंडवत कर रहे थे। उस कुत्ते ने कहा __ और करीब-करीब इसी तरह लोग बढ़ाए हुए हैं। सारी दुनिया कि अरे! बेचारे! वह सबको मन ही मन आशीर्वाद देता रहा, खुश की तकलीफें, सारी दुनिया का बोझ, आप अकेले के सिर पर पड़ रहो। मगर क्यों इतने परेशान हो रहे हो! गया है। अगर यह बोझ कम करना हो और शांति चाहिए हो, तो उसकी अकड़ बढ़ती चली गई। उसे लगा कि मेरे लिए रथ यह परमात्मा पर छोड़ देना। निकल रहा है। मेरे लिए सारे लोग दंडवत कर रहे हैं। गजब हो और आप नाहक ही परेशान हो रहे हो। बोझ आपके सिर पर है | गया। वैसे मैं जानता तो था पहले ही से कि मेरी हालत इतनी ऊंची नहीं। आपकी हालत उस देहाती आदमी जैसी है, जो पहली दफा है! लेकिन दुनिया स्वीकार नहीं करती थी। अब सब ने स्वीकार कर ट्रेन में सवार हुआ था। तो उसने अपना सब बिस्तर-बोरिया अपने | लिया है। सिर पर रख लिया था। उसने सोचा कि टिकट तो मैंने केवल अपनी रात कुत्ता सो नहीं सका होगा। और हार्टफेल हो गया हो, तो ही दी है। और यह बिस्तर-बोरा ट्रेन में रखं, तो पता नहीं, कोई आ | | कुछ आश्चर्य नहीं। जाए और कहे कि कहां रखा है। इसे अपने सिर पर ही रखना ठीक | पर हम सब की हालत भी यही है। हम सब ऐसे ही चल रहे हैं है। और ह भी सोचा कि इतने आदमियों का बोझ वैसे कि रथ हमारे लिए चल रहा है। यह सारा जगत हमारे लिए चल ही ट्रेन पर है, मैं भी चढ़ा हूं, और इस वजन का, इस बिस्तर का | रहा है! बड़े परेशान हो रहे हैं। नाहक ही परेशान हो रहे हैं। बिना बोझ भी और बढ़ जाए, तो कहीं ट्रेन रुक ही न जाए। तो अपने सिर | कारण परेशान हो रहे हैं। पर रख लें। ईश्वर-समर्पण का अर्थ है कि ये परेशानियां मैं छोड़ता हूं। यह 101
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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