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________________ ॐ गीता दर्शन भाग-60 सब मेरे लिए नहीं चल रहा है। यह सब मैं नहीं चला रहा हूं। मैं व्यर्थ ही परेशान हो रहा हूं। इसलिए धार्मिक आदमी परम शांत हो जाता है, क्योंकि सब परमात्मा कर रहा है। वह अपने को करने के भाव से मुक्त कर लेता है। इसका यह अर्थ नहीं है कि वह अकर्मण्य हो जाता है। इसका सिर्फ इतना ही अर्थ है कि वह छोड़ देता है उस पर। वह काम लेना चाहे, तो काम ले। कर्म लेना चाहे, तो कर्म ले। और अकर्मण्य करके बिठालना चाहे, तो अकर्मण्य करके बिठाल दे। अपनी तरफ अब उसकी कोई भी स्वयं की चेष्टा नहीं है। अब वह बहता है नदी की धारा में, जहां नदी ले जाए। डुबा दे, तो वह डुबाना भी उसके लिए किनारा है। पांच मिनट रुकें। कोई बीच से न उठे। दो-तीन बातें खयाल रखें। कुछ लोग आकर बीच में बैठ जाते हैं; फिर बीच से उठकर जाने की कोशिश करते हैं। बाहर बैठें; जाना हो तो किनारे पर बैठे। और कीर्तन के समय कोई भी उठे न। पांच मिनट कीर्तन करने के बाद जाएं। 7021
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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