________________
0 गीता दर्शन भाग-60
तो बढ़ेगा स्वानुभव से।
प्यारी लगती हो, आकृति प्यारी लगती हो, बुद्ध की प्रतिमा प्यारी तो कृष्ण कहते हैं, परोक्ष ज्ञान से, शास्त्र ज्ञान से मुझ परमेश्वर | | लगती हो, तो बस, इस शांत अवस्था में सिर्फ बुद्ध की प्रतिमा का के स्वरूप का ध्यान श्रेष्ठ है।
स्मरण करें। इस शून्य मन में सिर्फ बुद्धि की प्रतिमा बने। या तो बेहतर है कि तू सीधा न तो अभ्यास की उलझन में पड़, | | आपको अच्छा लगता हो ओम का उच्चार, तो सिर्फ ओम का क्योंकि मर्म को बिना समझे खतरा है। न शास्त्रों की समझ में पड़, | | उच्चार भीतर गूंजने दें। या आपको अच्छा लगता हो राम-राम तो क्योंकि कितना ही समझ ले, तो भी वह दूसरे का ज्ञान होगा। और | राम-राम का उच्चार भीतर गूंजने दें। कोई भी एक चीज पकड़ लें, सेकेंड हैंड होगा। तेरे लिए नया और ताजा नहीं होगा। अपना नहीं | | जो आपको प्यारी लगती हो और प्रभु का स्मरण दिलाती हो। है, वह ताजा भी नहीं है।
ऐसा हुआ है। मैंने सुना, एक सूफी फकीर हुआ। एक सम्राट और ज्ञान के संबंध में एक बात जान लेनी जरूरी है कि जो | उसकी सेवा में आता था। और उसने उसे कहा कि तू ईश्वर का अपना नहीं है, वह अपना है ही नहीं। वह कितना ही ठीक पकड़ में | स्मरण कर। उस सम्राट को एक हीरे से बहुत प्रेम था। वह हीरा आ जाए, तो भी वह दूसरे का है। और दूसरे के ज्ञान से आपकी | | उसने बड़ी मुश्किल, बड़े युद्धों के बाद पाया था। और वह चौबीस आंख काम नहीं कर सकती। दूसरे के पैर से आप चल नहीं सकते। घंटे उसको अपने पास रखता था। दूसरे की छाती से आप श्वास नहीं ले सकते। दूसरे की प्रज्ञा ___ जब वह परमात्मा के स्मरण को बैठा, तो परमात्मा का तो स्मरण आपकी प्रज्ञा नहीं बन सकती। आपकी प्रज्ञा तो तभी बनती है, जब | न आए, उसको उसी हीरे-हीरे का ही खयाल आए। और वह हीरा सीधा ध्यान परमात्मा की तरफ लगता है।
दिखाई पड़े। तो वह वापस फकीर के पास आया। उसने कहा कि परोक्ष ज्ञान से मुझ परमेश्वर के स्वरूप का ध्यान श्रेष्ठ है। बड़ी मुश्किल हो गई है। यह हीरा मुझे बाधा डालता है। मैं कैसे तो जितनी देर आप अभ्यास में लगाते हों, उससे बेहतर है, उतना | इसका त्याग करूं! समय आप शास्त्र में लगाएं। जितना आप शास्त्र में लगाते हों, उससे तो फकीर ने कहा, तू त्याग मत कर, क्योंकि त्याग से और ज्यादा भी बेहतर है कि उतना परमात्मा के ध्यान में लगाएं। बेहतर है, | | बाधा डालेगा। तू ऐसा कर कि परमात्मा को छोड़, तु हीरे की ही किताबें बंद कर दें, आंख बंद कर लें और परमात्मा का स्मरण करें। | याद कर। तू आंख बंद कर ले और हीरे को ही देख। और सिर्फ
क्या करेंगे परमात्मा के स्मरण में? कैसे होगा परमात्मा का | इतना ही खयाल कर कि यह हीरा परमात्मा का रूप है। ध्यान? क्या करना पड़ेगा? एक छोटा-सा खयाल समझ लें। वह सम्राट चकित हुआ। उसने सोचा, फकीर कहेगा, हीरे का
कुछ भी न करें। सिर्फ लेट जाएं या बैठ जाएं और बिलकुल त्याग कर। कहां की क्षुद्र चीज में उलझा है! ढीला छोड़ दें अपने को। कुछ भी न करें, श्वास भी न लें। अपने | लेकिन फकीर निश्चित समझदार रहा होगा। सम्राट ने हीरे पर आप जितनी चलती है, चलने दें। एक पांच मिनट तो सिर्फ इतना ध्यान करना शुरू कर दिया। जब हीरे पर ध्यान किया, तो हीरे ने ही ध्यान रखें कि मैं कुछ न करूं, सिर्फ पड़ा रहूं मुर्दे की भांति। | बाधा डालनी बंद कर दी, स्वभावतः। बाधा वह इसलिए डालता था
एक पांच मिनट में सिर्फ अपने को शांत कर लें। दस मिनट, कि कहां जा रहे हो? जब कहीं जाने की कोई बात न रही, तो हीरे पंद्रह मिनट, जितनी देर आपको लगे। सिर्फ शांत पड़ जाएं, जैसे ने बाधा डालनी बंद कर दी। और कुछ था नहीं उसका उलझाव; मर्दा हैं. आप हैं ही नहीं। सारी क्रिया को शिथिल छोड दिया. एक हीरा ही था। और हीरे में वह परमात्मा को अनुभव करने लगा। रिलैक्स कर दिया। और जब यह सब शिथिल और शांत हो जाए, | थोड़े ही दिनों में हीरा खो गया और परमात्मा ही शेष रह गया। सिर्फ श्वास ही सुनाई पड़े...। कभी-कभी कोई विचार मन में तैर तो जो भी आपका हीरा हो, आपकी पत्नी का चेहरा हो, आपके जाएगा। कभी कोई चींटी काटती है, तो पता चलेगा। कभी कोई | बेटे की आंख हो, आपके मित्र की छवि हो, कृष्ण का रूप हो, राम बाहर से आवाज आएगी, तो भनक पड़ेगी। मगर आप अपनी तरफ | का हो, जीसस का हो-आपका जहां सहज रुझान हो—कुछ भी से बिलकुल शांत पड़े हैं, जैसे हैं ही नहीं।
| हो। और कुछ भी न हो, तो अपनी ही फोटो। वह तो कम से कम ___ इस क्षण में सिर्फ एक ही भावना करें। आपके मन में जो भी इष्ट | | होगी। तो आईने में अपनी शक्ल देख ली। आंख बंद कर लिया हो, जिस परमात्मा का जैसा नाम आपको प्यारा लगता
और कहा कि यह परमात्मा का रूप है। उसी पर...। उससे भी