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0 कर्म-योग की कसौटी 0
सकता है, उतना ही अर्थ बदल जाएगा। जीसस की एक-एक | सारी दुनिया को नष्ट कर देंगे। और मेरा कोई वश नहीं रहा। कहानी में सात-सात अर्थ हैं। और सात मन की स्थितियां हैं। पहली | अभी वैज्ञानिक विचार करते हैं कि हमें अपना ज्ञान छिपाना स्थिति पर सिर्फ कहानी है। उसको बच्चा भी पढ़े तो आनंदित | चाहिए अब। वह राजनीतिज्ञों के हाथ में न पड़े, क्योंकि राजनीतिज्ञों होगा। एक कहानी का मजा आएगा। बात खतम हो जाएगी। से ज्यादा नासमझ आदमी खोजने मुश्किल हैं। उनके हाथ में ज्ञान लेकिन दूसरी स्थिति में खड़ा हुआ आदमी दूसरा अर्थ लेगा। तीसरी पड़ने का मतलब है, अज्ञानियों के, नेताओं के हाथ में ज्ञान पड़ स्थिति में खड़ा हुआ आदमी तीसरा अर्थ लेगा।
| गया। वे खतरा कर देंगे। वे उपद्रव कर देंगे। अब आज सारी दुनिया शास्त्र का अर्थ है, जो अज्ञानियों को ध्यान में रखकर लिखे गए| के पास ताकत विज्ञान ने दे दी है। और चाबी भी दे दी है। हैं। और कुंजियां इस भांति छिपाई गई हैं कि गलत आदमियों के | | शास्त्र का अर्थ है, कभी एक बार ऐसा पहले भी हो चुका है। हाथ में न पड़ जाएं। और उसी वक्त कुंजी हाथ में पड़े, जब वह | | अध्यात्म के जगत में हमने इतने ही मूल्यवान सूत्र खोज लिए थे। आदमी उसका ठीक उपयोग कर सके। उसके पहले हाथ में न पड़े। लेकिन वे हर किसी को दे देना खतरनाक है। तो उन्हें शास्त्रों में इतनी सारी व्यवस्था जहां की गई हो, उसका नाम शास्त्र है। हर | प्रकट भी किया है और छिपाया भी है। किसी किताब का नाम शास्त्र नहीं है।
शास्त्र का अर्थ है, जो प्रकट भी करता है और छिपाता भी है। शास्त्र बहुत वैज्ञानिक आयोजन है। और हजारों साल बाद भी | प्रकट उतना करता है, जितना आप आत्मसात कर लो। और उतना उसी ढंग से शास्त्र कारगर है।
| छिपाए रखता है, जितना अभी आपके काम का नहीं है। और जब लेकिन बड़ा मुश्किल है। इसलिए शास्त्र तो आप पढ़ लेते हैं, | आप एक कड़ी आत्मसात कर लेंगे, तो दूसरी कड़ी आपको दिखाई उसका अर्थ आपको पता चलता है कि नहीं, यह कहना मुश्किल | पड़नी शुरू हो जाएगी। एक सीढ़ी से ज्यादा आपको कभी दिखाई है। आपको उतना ही पता चलता है, जितना आपको पता चल | नहीं पड़ पाती। जब दूसरी सीढ़ी आप आत्मसात कर लोगे, तब सकता है। बस, उससे ज्यादा पता नहीं चलता। इसलिए फिर | | तीसरी आपको दिखाई पड़ेगी। हर कुंजी जब आप उपयोग कर शास्त्रों पर टीकाओं और व्याख्याओं की जरूरत पड़ी। क्योंकि | लोगे, तो दूसरी कुंजी आपके हाथ में दे जाएगी और दूसरा ताला जिनको ज्यादा पता चल गया उन शास्त्रों में जितना आपको पता | खुलने लगेगा। चलता था, उससे ज्यादा पता चल गया तो उन्होंने टीकाएं लिखी शास्त्र एक वैज्ञानिक व्यवस्था है। इसलिए शास्त्र साधारण हैं। लेकिन उन टीकाओं में भी उन्हीं नियमों का उपयोग किया गया | किताब का नाम नहीं है। आज तो किताबें बहुत हैं। पांच हजार है कि गलत आदमी के हाथ ज्ञान न पड़ जाए।
किताबें प्रति सप्ताह छपती हैं। इन किताबों की भीड़ में शास्त्र खो गलत आदमी अज्ञान में बेहतर है, क्योंकि अज्ञान में ज्यादा | गया। अब शास्त्र का कुछ पता लगाना मुश्किल है कि कौन-सा खतरा नहीं किया जा सकता।
शास्त्र है! आपने आमतौर से सुना होगा कि अज्ञान में खतरा होता है। लेकिन कृष्ण कहते हैं कि न मर्म को समझकर किया हुआ अज्ञान में ज्यादा खतरा नहीं होता। लेकिन अज्ञानी के हाथ में ज्ञान | अभ्यास, उससे तो परोक्ष ज्ञान श्रेष्ठ है। हो, तो फिर ज्यादा खतरा होता है। ऐसा जैसे कि बच्चे के हाथ में __परोक्ष ज्ञान का मतलब, दूसरों ने, लेकिन जिन्होंने जाना है, तलवार दे दी। और उन्होंने उठाकर पिता की ही गरदन काट दी। वे | उनका कहा हुआ ज्ञान। उसको ही स्वीकार कर लेना उचित है। सिर्फ देख रहे थे कि तलवार काम करती है कि नहीं करती है! परोक्ष ज्ञान से मुझ परमेश्वर के स्वरूप का ध्यान श्रेष्ठ है। असली है कि नकली है!
लेकिन परोक्ष ज्ञान उधार है। शास्त्र से कितना ही पता चल जाए, ___ आज विज्ञान में यही उपद्रव खड़ा हो गया है। आज विज्ञान ने | वह आपका स्वानुभव तो नहीं है। किसी को पता चला, पतंजलि फिर कुछ कुंजियां खोज लीं। आइंस्टीन मरने के पहले कहकर मरा | | को। किसी को पता चला, वशिष्ठ को। किसी को पता चला, शंकर है कि अगर मुझे दुबारा जन्म मिले, तो मैं वैज्ञानिक नहीं होना | | को, रामानुज को। आपने सुना, उन्हें पता चला है। आपने मान चाहता। मैं एक प्लंबर हो जाऊंगा, लेकिन अब वैज्ञानिक नहीं होना | | लिया। आपकी थोड़ी बुद्धि तो बढ़ी, लेकिन आप नहीं बढ़े। चाहता। क्योंकि जो मैंने दिया है, वह उनके हाथ में पड़ गया है, जो आपका संग्रह बढ़ा, जानकारी बढ़ी, लेकिन बोध नहीं बढ़ा। बोध
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